उत्तमपात्र
From जैनकोष
श्रमण । ये हिंसा से विरत, परिग्रह-रहित, राग-द्वेष से हीन, तपश्चरण में लीन, सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र से युक्त, तत्त्वों के चिंतन में तत्पर और सुख-दुख में निर्विकारी होते हैं । पद्मपुराण - 14.53-58, हरिवंशपुराण - 7.108
श्रमण । ये हिंसा से विरत, परिग्रह-रहित, राग-द्वेष से हीन, तपश्चरण में लीन, सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र से युक्त, तत्त्वों के चिंतन में तत्पर और सुख-दुख में निर्विकारी होते हैं । पद्मपुराण - 14.53-58, हरिवंशपुराण - 7.108