माल्यांग: Difference between revisions
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<p> माल्यांग जाति के कल्पवृक्ष । इनका उत्तरकुरु भोगभूमि में सदैव सद्भाव रहता है । कुरुभूमि में ये अवसर्पिणी के तीसरे काल तक रहते हैं । ये वृक्ष सब ऋतुओं के फूलों से युक्त होते हैं । यहाँ के निवासी इनकी अनेक प्रकार की मालाएँ और कर्णफूल आदि कर्णाभरण धारण करते हैं । इनका अपर नाम स्रजांग है । <span class="GRef"> महापुराण 9. 34-36, 42, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.80, 88 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.91-92 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> माल्यांग जाति के कल्पवृक्ष । इनका उत्तरकुरु भोगभूमि में सदैव सद्भाव रहता है । कुरुभूमि में ये अवसर्पिणी के तीसरे काल तक रहते हैं । ये वृक्ष सब ऋतुओं के फूलों से युक्त होते हैं । यहाँ के निवासी इनकी अनेक प्रकार की मालाएँ और कर्णफूल आदि कर्णाभरण धारण करते हैं । इनका अपर नाम स्रजांग है । <span class="GRef"> महापुराण 9. 34-36, 42, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.80, 88 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.91-92 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
माल्यांग जाति के कल्पवृक्ष । इनका उत्तरकुरु भोगभूमि में सदैव सद्भाव रहता है । कुरुभूमि में ये अवसर्पिणी के तीसरे काल तक रहते हैं । ये वृक्ष सब ऋतुओं के फूलों से युक्त होते हैं । यहाँ के निवासी इनकी अनेक प्रकार की मालाएँ और कर्णफूल आदि कर्णाभरण धारण करते हैं । इनका अपर नाम स्रजांग है । महापुराण 9. 34-36, 42, हरिवंशपुराण 7.80, 88 वीरवर्द्धमान चरित्र 18.91-92