माल्यांग
From जैनकोष
माल्यांग जाति के कल्पवृक्ष । इनका उत्तरकुरु भोगभूमि में सदैव सद्भाव रहता है । कुरुभूमि में ये अवसर्पिणी के तीसरे काल तक रहते हैं । ये वृक्ष सब ऋतुओं के फूलों से युक्त होते हैं । यहाँ के निवासी इनकी अनेक प्रकार की मालाएँ और कर्णफूल आदि कर्णाभरण धारण करते हैं । इनका अपर नाम स्रजांग है । महापुराण 9. 34-36, 42, हरिवंशपुराण - 7.80,हरिवंशपुराण - 7.88 वीरवर्द्धमान चरित्र 18.91-92