लोहिकांतिक: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> पाँचवें स्वर्ग के अंत में रहने वाले देव । ये तीर्थंकरों की वैराग्यबुद्धि में दृढ़ता लाने, उन्हें प्रबुद्ध करने तथा उनकी तपकल्याणकपूजा के लिए ब्रह्मलोक से आते हैं । ये ब्रह्मचारी होते हैं । देवों में श्रेष्ठ होते हैं । इनके शुभ लेश्याएँ होती हैं । ये बड़ी-बड़ी ऋद्धियों से भी युक्त होते हैं । पूर्वभव में संपूर्ण श्रुतज्ञान का अभ्यास करने के कारण इनकी शुभ भावनाएँ होती हैं । ये आठ प्रकार के होते हैं—सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतीय, तुषित, अव्याध और अरिस्ट । <span class="GRef"> महापुराण 17.47-50, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3. 268-269, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.49 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> पाँचवें स्वर्ग के अंत में रहने वाले देव । ये तीर्थंकरों की वैराग्यबुद्धि में दृढ़ता लाने, उन्हें प्रबुद्ध करने तथा उनकी तपकल्याणकपूजा के लिए ब्रह्मलोक से आते हैं । ये ब्रह्मचारी होते हैं । देवों में श्रेष्ठ होते हैं । इनके शुभ लेश्याएँ होती हैं । ये बड़ी-बड़ी ऋद्धियों से भी युक्त होते हैं । पूर्वभव में संपूर्ण श्रुतज्ञान का अभ्यास करने के कारण इनकी शुभ भावनाएँ होती हैं । ये आठ प्रकार के होते हैं—सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतीय, तुषित, अव्याध और अरिस्ट । <span class="GRef"> महापुराण 17.47-50, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3. 268-269, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.49 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:57, 14 November 2020
पाँचवें स्वर्ग के अंत में रहने वाले देव । ये तीर्थंकरों की वैराग्यबुद्धि में दृढ़ता लाने, उन्हें प्रबुद्ध करने तथा उनकी तपकल्याणकपूजा के लिए ब्रह्मलोक से आते हैं । ये ब्रह्मचारी होते हैं । देवों में श्रेष्ठ होते हैं । इनके शुभ लेश्याएँ होती हैं । ये बड़ी-बड़ी ऋद्धियों से भी युक्त होते हैं । पूर्वभव में संपूर्ण श्रुतज्ञान का अभ्यास करने के कारण इनकी शुभ भावनाएँ होती हैं । ये आठ प्रकार के होते हैं—सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतीय, तुषित, अव्याध और अरिस्ट । महापुराण 17.47-50, पद्मपुराण 3. 268-269, हरिवंशपुराण 2.49