वरुण: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<ol> | <ol> | ||
<li> लोकपाल देवों का एक भेद - देखें [[ लोकपाल ]]। </li> | <li> लोकपाल देवों का एक भेद - देखें [[ लोकपाल ]]। </li> | ||
Line 19: | Line 20: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.39 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.39 </span></p> | ||
<p id="2">(2) वृषभदेव के सातवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.65 </span></p> | <p id="2">(2) वृषभदेव के सातवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.65 </span></p> | ||
<p id="3">(3) वारुणीवर-द्वीप का रक्षक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.640 </span></p> | <p id="3">(3) वारुणीवर-द्वीप का रक्षक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.640 </span></p> | ||
Line 30: | Line 31: | ||
<p id="10">(10) मेघरथ-विद्याधर और उसकी स्त्री वरुणा का पुत्र । इंद्र ने इसे मेघपुर नगर के पश्चिम दिशा का लोकपाल बनाया था । पाश इसका शस्त्र था । रावण से विरोध हो जाने पर युद्ध में खरदूषण को इसी के सौ पुत्रों ने पकड़ा था । अंत में यह युद्ध में रावण के द्वारा पकड़े जाने पर अपनी पुत्री सत्यवती रावण को देकर लौट आया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.110-111, 16. 34-54, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 19.61, 98 </span></p> | <p id="10">(10) मेघरथ-विद्याधर और उसकी स्त्री वरुणा का पुत्र । इंद्र ने इसे मेघपुर नगर के पश्चिम दिशा का लोकपाल बनाया था । पाश इसका शस्त्र था । रावण से विरोध हो जाने पर युद्ध में खरदूषण को इसी के सौ पुत्रों ने पकड़ा था । अंत में यह युद्ध में रावण के द्वारा पकड़े जाने पर अपनी पुत्री सत्यवती रावण को देकर लौट आया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.110-111, 16. 34-54, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 19.61, 98 </span></p> | ||
<p id="11">(11) एक अस्त्र इससे आग्नेय अस्त्र का निवारण किया जाता है । रावण ने इंद्र लोकपाल के साथ हुए युद्ध में इसका उपयोग किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 12.325, 74.103 </span></p> | <p id="11">(11) एक अस्त्र इससे आग्नेय अस्त्र का निवारण किया जाता है । रावण ने इंद्र लोकपाल के साथ हुए युद्ध में इसका उपयोग किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 12.325, 74.103 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:57, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- लोकपाल देवों का एक भेद - देखें लोकपाल ।
- मल्लिनाथ का शासक यक्ष - देखें तीर्थंकर - 5.3 ।
- दक्षिण वारुणीवर द्वीप का रक्षक देव - देखें व्यंत - 4 ।
- किजयार्ध के दक्षिण में स्थित एक पर्वत देखें [[ ]]मनुष्य । 4 ।
- पद्मपुराण/19/59-61 रसातल का राजा था । रावण के साथ युद्ध होने पर हनुमान् ने इसके सौ पुत्रों को बाँध लिया और अंत में इसकी भी पकड़ लिया ।
- भद्रशाल वन में कुमुद व पलाशगिरि नामक दिग्गजेंद्र पर्वतों के स्वामी देव - देखें लोक - 3.12 ।
पुराणकोष से
(1) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.39
(2) वृषभदेव के सातवें गणधर । हरिवंशपुराण 12.65
(3) वारुणीवर-द्वीप का रक्षक देव । हरिवंशपुराण 5.640
(4) एक निमित्तज्ञ । इसने कंस को उसका हंता उत्पन्न हो चुकने की बात बतायी थी । महापुराण 70. 412, हरिवंशपुराण 35.37
(5) एक मुनि । चंपानगरी के सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति तीनों भाई सोमभूति की स्त्री नागश्री के मुनि को विष मिश्रित आहार देने से विरक्त होकर इन्हीं से दीक्षित हुए थे । महापुराण 72.235 हरिवंशपुराण 64.4-12, पांडवपुराण 23. 108-109
(6) समवसरण के तीसरे कोट के चार गोपुरों में पश्चिमी गोपुर के आठ नामों में सातवां नाम । हरिवंशपुराण 57.59
(7) भरतक्षेत्र में विजयार्ध के दक्षिण भाग के समीप स्थित एक पर्वत । विद्युद्दंष्ट्र पूर्व बैरवश संजयंत मुनि को भद्रशाल वन से उठाकर यहाँ छोड़ गया था । हरिवंशपुराण 27.11-14
(8) एक लोकपाल । यह नंदन वन के गांधर्व भवन में साढ़े तीन करोड़ देवागंनाओं के साथ क्रीडारत रहता है । हरिवंशपुराण 5.317-318
(9) जिनेंद्र का अभिषेक करने वाला एक देव । पद्मपुराण 3.185
(10) मेघरथ-विद्याधर और उसकी स्त्री वरुणा का पुत्र । इंद्र ने इसे मेघपुर नगर के पश्चिम दिशा का लोकपाल बनाया था । पाश इसका शस्त्र था । रावण से विरोध हो जाने पर युद्ध में खरदूषण को इसी के सौ पुत्रों ने पकड़ा था । अंत में यह युद्ध में रावण के द्वारा पकड़े जाने पर अपनी पुत्री सत्यवती रावण को देकर लौट आया था । पद्मपुराण 7.110-111, 16. 34-54, पांडवपुराण 19.61, 98
(11) एक अस्त्र इससे आग्नेय अस्त्र का निवारण किया जाता है । रावण ने इंद्र लोकपाल के साथ हुए युद्ध में इसका उपयोग किया था । पद्मपुराण 12.325, 74.103