सिद्ध: Difference between revisions
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<p id="1">(1) शुद्ध चेतना रूप लक्षण से युक्त, संसार से मुक्त, अष्टकर्मों से रहित, अनंत सम्यक्त्व, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतवीर्य, अत्यंतसूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अव्याबाधत्व और अगुरुलघुत्व इन आठ गुणों से सहित, असंख्यात प्रदेशी, अमूर्तिक, अंतिम शरीर से किंचित् न्यून आकार के धारक, जन्म-जरा-मरण और अनिष्ट सयोग तथा इष्टवियोग, क्षुधा, तृषा, बीमारी आदि से उत्पन्न दु:खों से रहित, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव के भेद से पंच परावर्तनों से रहित, लोक के अग्रभाग में स्थित मुक्त जीव । ये पंच परमेष्ठियों में दूसरे परमेष्ठी होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 20.222-225, 21.112-119, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 14.98-99, 48-200-209, 89.27, 105, 173-174, 181, 191, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.28, 3. 66-67, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1.1, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.38-39, 11.109-110, 13. 106-108, 16. 177-178 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) शुद्ध चेतना रूप लक्षण से युक्त, संसार से मुक्त, अष्टकर्मों से रहित, अनंत सम्यक्त्व, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतवीर्य, अत्यंतसूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अव्याबाधत्व और अगुरुलघुत्व इन आठ गुणों से सहित, असंख्यात प्रदेशी, अमूर्तिक, अंतिम शरीर से किंचित् न्यून आकार के धारक, जन्म-जरा-मरण और अनिष्ट सयोग तथा इष्टवियोग, क्षुधा, तृषा, बीमारी आदि से उत्पन्न दु:खों से रहित, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव के भेद से पंच परावर्तनों से रहित, लोक के अग्रभाग में स्थित मुक्त जीव । ये पंच परमेष्ठियों में दूसरे परमेष्ठी होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 20.222-225, 21.112-119, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 14.98-99, 48-200-209, 89.27, 105, 173-174, 181, 191, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.28, 3. 66-67, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1.1, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.38-39, 11.109-110, 13. 106-108, 16. 177-178 </span></p> | ||
<p id="2">(2) मानुषोत्तर पर्वत की पश्चिम दिशा में विद्यमान अंजनमूलकूट का निवासी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.604 </span></p> | <p id="2">(2) मानुषोत्तर पर्वत की पश्चिम दिशा में विद्यमान अंजनमूलकूट का निवासी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.604 </span></p> | ||
<p id="3">(3) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.38, 25.108 </span></p> | <p id="3">(3) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.38, 25.108 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
देखें मोक्ष - 3।
पुराणकोष से
(1) शुद्ध चेतना रूप लक्षण से युक्त, संसार से मुक्त, अष्टकर्मों से रहित, अनंत सम्यक्त्व, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतवीर्य, अत्यंतसूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अव्याबाधत्व और अगुरुलघुत्व इन आठ गुणों से सहित, असंख्यात प्रदेशी, अमूर्तिक, अंतिम शरीर से किंचित् न्यून आकार के धारक, जन्म-जरा-मरण और अनिष्ट सयोग तथा इष्टवियोग, क्षुधा, तृषा, बीमारी आदि से उत्पन्न दु:खों से रहित, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव के भेद से पंच परावर्तनों से रहित, लोक के अग्रभाग में स्थित मुक्त जीव । ये पंच परमेष्ठियों में दूसरे परमेष्ठी होते हैं । महापुराण 20.222-225, 21.112-119, पद्मपुराण 14.98-99, 48-200-209, 89.27, 105, 173-174, 181, 191, हरिवंशपुराण 1.28, 3. 66-67, पांडवपुराण 1.1, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.38-39, 11.109-110, 13. 106-108, 16. 177-178
(2) मानुषोत्तर पर्वत की पश्चिम दिशा में विद्यमान अंजनमूलकूट का निवासी एक देव । हरिवंशपुराण 5.604
(3) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.38, 25.108