सोमदेव: Difference between revisions
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<li>महातार्किक तथा राजनैतिक धर्माचार्य। यशोदेव के प्रशिष्य, नेमिदेव के शिष्य और महेंद्र देव के लघु सधर्मा। कर्णाटक् देश में चालुक्य राज के पुत्र वाद्यराज से रक्षित। कृति-नीति वाक्यामृत, यशस्तिलक चंपू, अध्यात्म तरंगिनी, स्याद्वोदोपनिषद्, षण्णवतिप्रकरण, त्रिवर्ग महेंद्र मांतलिजल्प, युक्तिचिंतामणिस्तव, योगमार्ग। समय-यशस्तिलक का रचना काल शक 881। तदनुसार वि.1000-1025 (ई.943-968)। (ती./3/71-73), (जै./1/427)। | <li>महातार्किक तथा राजनैतिक धर्माचार्य। यशोदेव के प्रशिष्य, नेमिदेव के शिष्य और महेंद्र देव के लघु सधर्मा। कर्णाटक् देश में चालुक्य राज के पुत्र वाद्यराज से रक्षित। कृति-नीति वाक्यामृत, यशस्तिलक चंपू, अध्यात्म तरंगिनी, स्याद्वोदोपनिषद्, षण्णवतिप्रकरण, त्रिवर्ग महेंद्र मांतलिजल्प, युक्तिचिंतामणिस्तव, योगमार्ग। समय-यशस्तिलक का रचना काल शक 881। तदनुसार वि.1000-1025 (ई.943-968)। (ती./3/71-73), (जै./1/427)। | ||
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<p id="1"> (1) चंपा नगरी का एक ब्राह्मण । इसकी पत्नी सोमिला थी । सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति ये इसके तीन पुत्र थे । <span class="GRef"> महापुराण 72.228-229 </span>देखें [[ सोमदत्त#4 | सोमदत्त - 4]]</p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) चंपा नगरी का एक ब्राह्मण । इसकी पत्नी सोमिला थी । सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति ये इसके तीन पुत्र थे । <span class="GRef"> महापुराण 72.228-229 </span>देखें [[ सोमदत्त#4 | सोमदत्त - 4]]</p> | ||
<p id="2">(2) जंबूद्वीप के मगध देश में स्थित शालिग्राम का रहने वाला एक ब्राह्मण । इसकी स्त्री अग्निका थी । इन दोनों के दो पुत्र थे—अग्निभूति और वायुभूति । इसने और इसकी पत्नी दोनों ने सत्यक मुनि पर उपसर्ग करने की चेष्टा की । वहीं पर स्थित एक यक्ष द्वारा दोनों कील दिये गये । अपने दोनों पुत्रों को जैनधर्म स्वीकार कर लेने का वचन देकर इसने मुक्त कराया था । बाद में यह और इसकी पत्नी दोनों सन्मार्ग से विचलित हो गये और इस पाप के कारण दोनों दीर्घकाल तक अनेक कुगतियों में भटकते रह । <span class="GRef"> महापुराण 72. 3-4, 15-23, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 109. 35-38, 18-126, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.99-500, 141-144, 147 </span></p> | <p id="2">(2) जंबूद्वीप के मगध देश में स्थित शालिग्राम का रहने वाला एक ब्राह्मण । इसकी स्त्री अग्निका थी । इन दोनों के दो पुत्र थे—अग्निभूति और वायुभूति । इसने और इसकी पत्नी दोनों ने सत्यक मुनि पर उपसर्ग करने की चेष्टा की । वहीं पर स्थित एक यक्ष द्वारा दोनों कील दिये गये । अपने दोनों पुत्रों को जैनधर्म स्वीकार कर लेने का वचन देकर इसने मुक्त कराया था । बाद में यह और इसकी पत्नी दोनों सन्मार्ग से विचलित हो गये और इस पाप के कारण दोनों दीर्घकाल तक अनेक कुगतियों में भटकते रह । <span class="GRef"> महापुराण 72. 3-4, 15-23, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 109. 35-38, 18-126, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.99-500, 141-144, 147 </span></p> | ||
<p id="3">(3) भरतक्षेत्र में मगधदेश के लक्ष्मीग्राम का ब्राह्मण । यह रुक्मिणी का पूर्वभव का पति था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 26-27, 39 </span></p> | <p id="3">(3) भरतक्षेत्र में मगधदेश के लक्ष्मीग्राम का ब्राह्मण । यह रुक्मिणी का पूर्वभव का पति था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 26-27, 39 </span></p> | ||
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Revision as of 16:59, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- महातार्किक तथा राजनैतिक धर्माचार्य। यशोदेव के प्रशिष्य, नेमिदेव के शिष्य और महेंद्र देव के लघु सधर्मा। कर्णाटक् देश में चालुक्य राज के पुत्र वाद्यराज से रक्षित। कृति-नीति वाक्यामृत, यशस्तिलक चंपू, अध्यात्म तरंगिनी, स्याद्वोदोपनिषद्, षण्णवतिप्रकरण, त्रिवर्ग महेंद्र मांतलिजल्प, युक्तिचिंतामणिस्तव, योगमार्ग। समय-यशस्तिलक का रचना काल शक 881। तदनुसार वि.1000-1025 (ई.943-968)। (ती./3/71-73), (जै./1/427)।
- वृहद् कथा सरिता सागर के रचयिता एक भट्टारक। समय-ई.1061-1081। (जीवंधर चंपू/प्र.18/A.N.Up.)। 3. एक जिनबिंब प्रतिष्ठाचार्य गृहस्थ, कृति-श्रुतमुनि कृत आस्रव त्रिभंगी का गुजराती भाष्य। समय-वि.श.15-16। (जै./1/461-463)।
पुराणकोष से
(1) चंपा नगरी का एक ब्राह्मण । इसकी पत्नी सोमिला थी । सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति ये इसके तीन पुत्र थे । महापुराण 72.228-229 देखें सोमदत्त - 4
(2) जंबूद्वीप के मगध देश में स्थित शालिग्राम का रहने वाला एक ब्राह्मण । इसकी स्त्री अग्निका थी । इन दोनों के दो पुत्र थे—अग्निभूति और वायुभूति । इसने और इसकी पत्नी दोनों ने सत्यक मुनि पर उपसर्ग करने की चेष्टा की । वहीं पर स्थित एक यक्ष द्वारा दोनों कील दिये गये । अपने दोनों पुत्रों को जैनधर्म स्वीकार कर लेने का वचन देकर इसने मुक्त कराया था । बाद में यह और इसकी पत्नी दोनों सन्मार्ग से विचलित हो गये और इस पाप के कारण दोनों दीर्घकाल तक अनेक कुगतियों में भटकते रह । महापुराण 72. 3-4, 15-23, पद्मपुराण 109. 35-38, 18-126, हरिवंशपुराण 43.99-500, 141-144, 147
(3) भरतक्षेत्र में मगधदेश के लक्ष्मीग्राम का ब्राह्मण । यह रुक्मिणी का पूर्वभव का पति था । हरिवंशपुराण 60. 26-27, 39