आसुरी: Difference between revisions
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== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p class="SanskritText">भगवती आराधना / मुल या टीका गाथा 183 अणुबंधरोसविग्गहसंसत्तवो णिमित्तपडिसेवी। णिक्किवणिराणुतावी आसुरियं भावणं होदि। </p> | <p class="SanskritText">भगवती आराधना / मुल या टीका गाथा 183 अणुबंधरोसविग्गहसंसत्तवो णिमित्तपडिसेवी। णिक्किवणिराणुतावी आसुरियं भावणं होदि। </p> | ||
<p class="HindiText">= जिसका कोप अन्य भवमें भी गमन करनेवाला है, और | <p class="HindiText">= जिसका कोप अन्य भवमें भी गमन करनेवाला है, और कलह करना जिसका स्वभाव बन गया है, वह मुनि रोष और कलहके साथ ही तप करता है ऐसे तपसे उसको असुरगतिकी प्राप्ति होती है।</p> | ||
<p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 68 खुद्दी कोही माणी मायी तह संकिलिट्ठतव चरिते। अणुबंधवद्धवेरराई असुरेसुंव वज्जदे जीवो ॥68॥</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 68 खुद्दी कोही माणी मायी तह संकिलिट्ठतव चरिते। अणुबंधवद्धवेरराई असुरेसुंव वज्जदे जीवो ॥68॥</p> | ||
<p class="HindiText">= दुष्ट, क्रोधी, मानी, मायाचारी, तप तथा चारित्र पालनेमें क्लेशित परिणामोंसे सहित और | <p class="HindiText">= दुष्ट, क्रोधी, मानी, मायाचारी, तप तथा चारित्र पालनेमें क्लेशित परिणामोंसे सहित और जिसने वैर करनेमें बहुत प्रीति की है ऐसा जीव आसुरी भावना से असुरजातिके अंबरीष नामा भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होता है ॥68॥</p> | ||
Revision as of 08:12, 14 May 2021
सिद्धांतकोष से
भगवती आराधना / मुल या टीका गाथा 183 अणुबंधरोसविग्गहसंसत्तवो णिमित्तपडिसेवी। णिक्किवणिराणुतावी आसुरियं भावणं होदि।
= जिसका कोप अन्य भवमें भी गमन करनेवाला है, और कलह करना जिसका स्वभाव बन गया है, वह मुनि रोष और कलहके साथ ही तप करता है ऐसे तपसे उसको असुरगतिकी प्राप्ति होती है।
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 68 खुद्दी कोही माणी मायी तह संकिलिट्ठतव चरिते। अणुबंधवद्धवेरराई असुरेसुंव वज्जदे जीवो ॥68॥
= दुष्ट, क्रोधी, मानी, मायाचारी, तप तथा चारित्र पालनेमें क्लेशित परिणामोंसे सहित और जिसने वैर करनेमें बहुत प्रीति की है ऐसा जीव आसुरी भावना से असुरजातिके अंबरीष नामा भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होता है ॥68॥
पुराणकोष से
चमरचंचपुर नगर के विद्याधर इंद्राशनि की रानी और अशनिघोष की जननी । नपु0 62.221,284