अब मेरे समकित सावन आयो: Difference between revisions
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Latest revision as of 01:06, 17 February 2008
(राग मलार)
अब मेरे समकित सावन आयो ।।टेक ।।
बीति कुरीति मिथ्या मति ग्रीषम, पावस सहज सुहायो ।।
अनुभव दामिनि दमकन लागी, सुरति घटा घन छायो ।
बोलै विमल विवेक पपीहा, सुमति सुहागिनि भायो ।।१ ।।अब मेरे. ।।
गुरुधुनि गरज सुनत सुख उपजै, मोर सुमन विहसायो ।
साधक भाव अंकूर उठे बहु, जित तित हरष सवायो ।।२ ।।अब मेरे. ।।
भूल धूल कहिं भूल न सूझत, समरस जल झर लायो ।
`भूधर' को निकसै अब बाहिर, निज निरचू घर पायो ।।३ ।।अब मेरे.