जगत जन जूवा हारि चले: Difference between revisions
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Latest revision as of 01:19, 17 February 2008
(राग विहाग)
जगत जन जूवा हारि चले ।।टेक ।।
काम कुटिल संग बाजी मांडी, उन करि कपट छले ।।जगत. ।।
चार कषायमयी जहँ चौपरि, पासे जोग रले ।
इस सरवस उत कामिनी कौड़ी, इह विधि झटक चले ।।१ ।।जगत. ।।
कूर खिलार विचार न कीन्हों, ह्वै है ख्वार भले ।
बिना विवेक मनोरथ काके, `भूधर' सफल फले ।।२ ।।जगत. ।।