अल्पबहुत्व: Difference between revisions
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<li> साधारण शरीर में निगोद जीवों का उत्पत्तिक्रम। निरन्तर व सान्तर कालों की अपेक्षा। (ष.ख.१/१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।</li> | <li> साधारण शरीर में निगोद जीवों का उत्पत्तिक्रम। निरन्तर व सान्तर कालों की अपेक्षा। (ष.ख.१/१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।</li> | ||
<li> उपरोक्त कालों से उत्पन्न होने वाले जीवों के प्रमाण की अपेक्षा दे. (ष.खं.१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।</li></ul></li></ol> | <li> उपरोक्त कालों से उत्पन्न होने वाले जीवों के प्रमाण की अपेक्षा दे. (ष.खं.१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।</li></ul></li></ol> | ||
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<li><span class="HindiText" id="1"><strong>अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ</strong> <br /></span> | |||
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<li><span class="HindiText" id="1.1"><strong> अल्पबहुत्व सामान्यका लक्षण </strong> <br /></span> | |||
<p><span class="GRef"> स.सि./१०/९/४७३ </span><span class="SanskritText"> क्षेत्रादिभेदभिन्नानां परस्परतः संख्या विशेषोऽल्पबहुत्वम्।</span> | |||
<span class="HindiText">= क्षेत्रादि भेदों की अपेक्षा भेद को प्राप्त हुए जीवों की परस्पर संख्या का विशेष प्राप्त करना अल्पबहुत्व है। (<span class="GRef"> रा.वा./१०/९/१४/६४७/२७ </span>)</span> | |||
<span class="GRef"> रा.वा./१/८/१०/४२/१९</span><span class="SanskritText"> संख्यातादिष्वन्यतमेन परिमाणेन निश्चिताना मन्योन्यविशेषप्रतिपत्यर्थ | |||
मल्पबहुत्ववचनं क्रियते-इमे एभ्योऽल्पा इमे बहवः इति।</span><span class="HindiText">= संख्यात आदि पदार्थों में अन्यतम किसी एक के परिमाण का निश्चय हो जाने पर उनकी परस्पर विशेष प्रतिपत्ति के लिए अल्पबहुत्व करने में आता है। जैसे यह इन की अपेक्षा अल्प है, यह अधिक है इत्यादि। (<span class="GRef"> स.सि./१/८/२९ </span>)</span> | |||
<span class="GRef"> ध.५/१,८,१/२४२/७</span><span class="PrakritText"> किमप्पाबहुअं। संखाधम्मो एदम्हादो एदं तिगुणं चदुगुणमिदि बुद्धिगेज्झो। | |||
</span><span class="HindiText">= प्रश्न - अल्पबहुत्व क्या है? उत्तर - यह उससे तिगुणा है, अथवा चतुर्गुणा है इस प्रकार बुद्धि के द्वारा ग्रहण करने योग्य संख्या के धर्म को अल्पबहुत्व कहते हैं। </span></li> |
Revision as of 08:04, 14 August 2021
पदार्थों का निर्णय अनेक प्रकार से किया जाता है-उनका अस्तित्व व लक्षण आदि जानकर, उनकी संख्या या प्रमाण जानकर तथा उनका अवस्थान आदि जानकर। तहाँ पदार्थों की गणना क्योंकि संख्या को उल्लंघन कर जाती है और असंख्यात व अनन्त कहकर उनका निर्देश किया जाता है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि किसी भी प्रकार उस अनन्त या असंख्य में तरतमता या विशेषता दर्शायी जाए ताकि विभिन्न पदार्थों की विभिन्न गणनाओं का ठीक-ठीक अनुमान हो सके। यह अल्पबहुत्व नाम का अधिकार जैसा कि इसके नाम से ही विदित है इसी प्रयोजन की सिद्धि करता है।
- अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
- ओघ आदेश प्ररूपणाएँ
- प्ररूपणाओं विधयक नियम तथा काल व क्षेत्र के आधार पर गणना करने की विधि। देखें - संख्या - 2
- सारणी में प्रयुक्त संकेतों के अर्थ।
- षट् द्रव्यों का षोडशपदिक अल्प बहुत्व।
- जीव द्रव्यप्रमाण में ओघ प्ररूपणा।
- गतिमार्गणा
- इन्द्रिय मार्गणा
- काय मार्गणा
- गति इन्द्रिय व काय की संयोगी परस्थान प्ररूपणा।
- योग मार्गणा
- वेद मार्गणा
- कषाय मार्गणा
- ज्ञान मार्गणा
- संयम मार्गणा
- दर्शन मार्गणा
- लेश्या मार्गणा
- भव्य मार्गणा
- सम्यक्त्व मार्गणा
- संज्ञी मार्गणा
- आहारक मार्गणा
- प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
- सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा
- संहरण सिद्ध व जन्म सिद्ध की अपेक्षा।
- क्षेत्र की अपेक्षा (केवल संहरण सिद्धोंमें)।
- काल की अपेक्षा।
- अन्तर की अपेक्षा।
- गति की अपेक्षा।
- वेदनानुयोग की अपेक्षा।
- तीर्थंकर व सामान्य केवली की अपेक्षा।
- चारित्र की अपेक्षा।
- प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध की अपेक्षा।
- ज्ञान की अपेक्षा।
- अवगाहना की अपेक्षा।
- युगपत् प्राप्त सिद्धोंकी संख्या की अपेक्षा।
- १-१, २-२ आदि करके संचय होनेवाले जीवोंकी अल्प बहुत्वप्ररूपणा
- २३ वर्गणाओं सम्बन्धी प्ररूपणाएँ
- पंच शरीर बद्ध वर्गणाओं की प्ररूपणा
- पंच वर्गणाओं के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा।
- पंच वर्गणाओं की अवगाहना की अपेक्षा।
- पंच शरीरबद्ध विस्रसोपचयों की अपेक्षा।
- प्रत्येक वर्गणा में समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- शरीरबद्ध विस्रसोपचयों की स्व व परस्थान की अपेक्षा।
- पंच शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- औदारिक शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- इन्द्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- पाँचों शरीरों में प्रथम समयप्रबद्ध से लेकर अन्तिम समयप्रबद्ध तक बन्धे प्रदेश-प्रमाण की अपेक्षा। दे.(ष.ख.१४/५,६/सू.२६३-२८६/३३९-३५२)।
- पाँचों शरीरों की ज.व उ. स्थिति या निषेकों के प्रमाण की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.३२०-३३९/३६६-३६९)
- पाँचों शरीरों के ज.उ.व उभय स्थितिगत निषेकों में प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा। दे.(ष.ख.१४/५,६/सू.३४०-३८९/३७२-३८७)।
- उपरोक्त प्रदेशाग्रों में एक व नाना गुणहानि स्थानान्तरों की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.३९०-४०६/३८७-३९२)।
- उपरोक्त निषेकों के ज.उ.व उभय प्रदेशाग्र प्रमाण की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.४०७-४१५/३९२-३९५)।
- पाँचों शरीरों में बन्धे प्रदेशाग्रों के अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.५१५-५१९/४३७-४३८)।
- पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों को संघातन, परिशातन, उभय व अनुभयादि कृतियों की अपेक्षा। दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।
- पंच शरीरोंकी अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
- पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों की संघातन परिशातन आदि कृतियों में गृहीत परमाणुओं के प्रमाण की अपेक्षा।दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।
- ज.उ.अवगाहना क्षेत्रों की अपेक्षा। दे. (ध.११/पृ.२८)।
- पाँचों शरीरों के स्वामियों की ओघ व आदेश प्ररूपणा
- जीवभावों के अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा
- संयमविशुद्धि या लब्धिस्थानों की अपेक्षा।
- १४ जीवसमासों में संक्लेश व विशुद्धिस्थानों की अपेक्षा।
- दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्यके अवस्थानों की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा।
- उपशमन व क्षपण काल की अपेक्षा।
- कषाय काल की अपेक्षा।
- नोकषाय बन्धकाल की अपेक्षा।
- मिथ्यात्व-काल विशेष की अपेक्षा। (अर्थात् भिन्न-भिन्न जीवोंके मिथ्यात्व-काल का अल्पबहुत्व)।
- अधःप्रवृत्तिकरण की विशुद्धियों में तरतमता की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१६/३७५-३७८)।
- संयमासंयम लब्धिस्थानों में तरतमता की अपेक्षा। दे. (ध. ६/१,९-८,१४/२७६/७)।
- जीवों के योग स्थानों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
- कर्मों के सत्त्व व बन्धस्थानों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
- जीवों के स्थिति बन्धस्थानों की अपेक्षा।
- स्थिति बन्ध में जघन्य व उत्कृष्ट स्थानों की अपेक्षा।
- स्थितिबन्ध के निषेकों की अपेक्षा।
- अनिवृत्ति गुणस्थान में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/२९७/४)।
- उपशान्तकषाय से उतरे अनिवृत्तिकरण में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३२४/३)।
- चारित्रमोह क्षपक अनिवृत्तिकरण के स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३५०/२) (विशेष दे. #3.11)।
- मोहनीय कर्म के स्थितिसत्त्वस्थानों की अपेक्षा।
- बन्धसमुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा।
- हत्समुत्पत्तिक अनुभागसत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा।
- अष्टकर्मप्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा।
- उपरोक्त विषयक आदेश प्ररूपणाएँ। दे. (म.बं.५/$४३९-४४२/२३१-२३३)।
- उपरोक्त विषयक आदेश प्ररूपणा। दे. (म.बं.५/$४४४-४५०/२३५-२३९)।
- एक समयप्रबद्ध प्रदेशाग्र में सर्व व देशघाती अनुभाग के विभाग की अपेक्षा।
- एक समयप्रबद्ध प्रदेशाग्रों में निषेक सामान्य के विभाग की अपेक्षा।
- एक समयप्रबद्ध में अष्टकर्म प्रकृतियों के प्रदेशाग्र विभाग की अपेक्षा।
- जीवसमासों में विभिन्न प्रदेशबन्धों की अपेक्षा।
- आठ अपकर्षों की अपेक्षा आयुबन्धक जीवों की प्ररूपणा।
- आठ अपकर्षों में आयुबन्ध के काल की अपेक्षा।
- अष्टकर्म संक्रमण व निर्जरा की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा
- भिन्न गुणधारी जीवों में गुणश्रेणी रूप प्रदेश निर्जरा की ११ स्थानीय सामान्य प्ररूपणा।
- भिन्न गुणधारी जीवों में गुणश्रेणी प्रदेश निर्जरा के काल की ११ स्थानीय प्ररूपणा।
- पाँच प्रकार के संक्रमणों द्वारा हत् कर्मप्रदेशों के परिमाण में अल्पबहुत्व।
- प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्ति विधान में अपूर्वकरण के काण्डक घात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,५/२२८/१)।
- द्वितीयोपशम प्राप्ति विधान में उपरोक्त विकल्प। दे. (ध.६/१,९,८,१४/२८९/१०)।
- अश्वकर्ण प्रस्थापक चारित्रमोह क्षपक के अनुभागसत्त्व की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१२/२६३/६)।
- अपूर्वस्पर्धक करण में अनुभाग काण्डकघात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१६/३६६/११)।
- चारित्रमोह क्षपक के अपूर्वकरण में स्थिति काण्डकघात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१६/३४४/८)।
- त्रिकरण विधान की अवस्था विशेषों के उत्कीरण कालों तथा स्थिति बन्ध व सत्त्व आदि विकल्पों की अपेक्षा प्ररूपणाएँ।
- प्रथमोपशम सम्यक्त्व की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,७/२३६/८)।
- प्रथमोपशम व वेदक सम्यक्त्व तथा संयमासंयम को युगपत् ग्रहण करने की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८/११/२४७/१)।
- पुरुषवेद सहित क्रोध के उदय से आरोहण व अवरोहण करने वाले चारित्रमोहोपशामक अपूर्वकरण के भिन्न-भिन्न प्रकृतियों के आश्रय सर्व विकल्प रूप उत्कीरण कालों की अपेक्षा। दे.(ध.६/१,९,८,१४/३३५/११)।
- दर्शनमोह क्षपक की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१२/२६३/६)।
- अनुवृत्तिकरण गुणस्थान में चारित्रमोह की यथायोग्य प्रकृतियों के उपशमन की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३०३/६)।
- अष्टकर्म बन्ध उदय सत्त्वादि १० करणों की अपेक्षा भुजगारादि पदो में अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणाएँ
- उदीरणा की अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- उदय अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- उपशमना अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- संक्रमण अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- बन्ध अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- मोहनीयकर्म विशेष के सत्त्व की अपेक्षा।
- अष्टकर्मबन्ध वेदना में स्थिति, अनुभाग, प्रदेश व प्रकृति बन्धों की अपेक्षा ओघ व आदेश स्व-पर स्थान अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ।
- प्रयोग व समवदान आदि षट्कर्मों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा।
- १४ मार्गणाओं में जीवों की तथा उनमें स्थिति कर्मों की उपरोक्त षट् कर्मों की अपेक्षा प्ररूपणा। दे. (ध.१३/५,४,३१/१७५-१९५)।
- निगोद जीवों की उत्पत्ति आदि विषयक अल्पबहुत्व प्ररूपणा
- साधारण शरीर में निगोद जीवों का उत्पत्तिक्रम। निरन्तर व सान्तर कालों की अपेक्षा। (ष.ख.१/१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।
- उपरोक्त कालों से उत्पन्न होने वाले जीवों के प्रमाण की अपेक्षा दे. (ष.खं.१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।
- अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
- अल्पबहुत्व सामान्यका लक्षण
स.सि./१०/९/४७३ क्षेत्रादिभेदभिन्नानां परस्परतः संख्या विशेषोऽल्पबहुत्वम्। = क्षेत्रादि भेदों की अपेक्षा भेद को प्राप्त हुए जीवों की परस्पर संख्या का विशेष प्राप्त करना अल्पबहुत्व है। ( रा.वा./१०/९/१४/६४७/२७ ) रा.वा./१/८/१०/४२/१९ संख्यातादिष्वन्यतमेन परिमाणेन निश्चिताना मन्योन्यविशेषप्रतिपत्यर्थ मल्पबहुत्ववचनं क्रियते-इमे एभ्योऽल्पा इमे बहवः इति।= संख्यात आदि पदार्थों में अन्यतम किसी एक के परिमाण का निश्चय हो जाने पर उनकी परस्पर विशेष प्रतिपत्ति के लिए अल्पबहुत्व करने में आता है। जैसे यह इन की अपेक्षा अल्प है, यह अधिक है इत्यादि। ( स.सि./१/८/२९ ) ध.५/१,८,१/२४२/७ किमप्पाबहुअं। संखाधम्मो एदम्हादो एदं तिगुणं चदुगुणमिदि बुद्धिगेज्झो। = प्रश्न - अल्पबहुत्व क्या है? उत्तर - यह उससे तिगुणा है, अथवा चतुर्गुणा है इस प्रकार बुद्धि के द्वारा ग्रहण करने योग्य संख्या के धर्म को अल्पबहुत्व कहते हैं।
- अल्पबहुत्व सामान्यका लक्षण
- सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा