विरुद्धराज्यातिक्रम: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/27/367/4 </span><span class="SanskritText"> उचितन्यायादन्येन प्रकारेण दानग्रहणमतिक्रमः। विरुद्धं राज्यं विरुद्धराज्यं, विरुद्धराज्येऽतिक्रमः विरुद्धराज्यातिक्रमः। ‘तत्र ह्यल्पमूल्यलभ्यानि महार्घ्याणि द्रव्याणीति प्रयत्नः। </span>=<span class="HindiText"> विरुद्ध जो राज्यं वह विरुद्धराज्य है। राज्य में किसी प्रकार का विरोध होने पर मर्यादा का न पालना विरुद्धराज्यतिक्रम है। यदि वहाँ अल्पमूल्य में वस्तुएँ मिल गयीं तो उन्हें महँगा बेचने का प्रयत्न करना (अर्थात् ब्लैकमार्केट करना) विरुद्धराज्यातिक्रम है। न्याय मार्ग को | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/27/367/4 </span><span class="SanskritText"> उचितन्यायादन्येन प्रकारेण दानग्रहणमतिक्रमः। विरुद्धं राज्यं विरुद्धराज्यं, विरुद्धराज्येऽतिक्रमः विरुद्धराज्यातिक्रमः। ‘तत्र ह्यल्पमूल्यलभ्यानि महार्घ्याणि द्रव्याणीति प्रयत्नः। </span>=<span class="HindiText"> विरुद्ध जो राज्यं वह विरुद्धराज्य है। राज्य में किसी प्रकार का विरोध होने पर मर्यादा का न पालना विरुद्धराज्यतिक्रम है। यदि वहाँ अल्पमूल्य में वस्तुएँ मिल गयीं तो उन्हें महँगा बेचने का प्रयत्न करना (अर्थात् ब्लैकमार्केट करना) विरुद्धराज्यातिक्रम है। न्याय मार्ग को छोड़कर अन्य प्रकार से वस्तु ली गयी है, इसलिए यह अतिक्रम या अतिचार है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/7/27/3/554/11 </span>)। </span></p> | ||
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Revision as of 16:41, 25 September 2022
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/27/367/4 उचितन्यायादन्येन प्रकारेण दानग्रहणमतिक्रमः। विरुद्धं राज्यं विरुद्धराज्यं, विरुद्धराज्येऽतिक्रमः विरुद्धराज्यातिक्रमः। ‘तत्र ह्यल्पमूल्यलभ्यानि महार्घ्याणि द्रव्याणीति प्रयत्नः। = विरुद्ध जो राज्यं वह विरुद्धराज्य है। राज्य में किसी प्रकार का विरोध होने पर मर्यादा का न पालना विरुद्धराज्यतिक्रम है। यदि वहाँ अल्पमूल्य में वस्तुएँ मिल गयीं तो उन्हें महँगा बेचने का प्रयत्न करना (अर्थात् ब्लैकमार्केट करना) विरुद्धराज्यातिक्रम है। न्याय मार्ग को छोड़कर अन्य प्रकार से वस्तु ली गयी है, इसलिए यह अतिक्रम या अतिचार है। ( राजवार्तिक/7/27/3/554/11 )।
पुराणकोष से
अचौर्याणुव्रत का तीसरा अतीचार । अपने राज्य की आज्ञा को न मानकर राज्य विरुद्ध क्रय-विक्रय करना । हरिवंशपुराण 58.171