विरुद्धोपलब्धि हेतु
From जैनकोष
हेतु के प्रधान दो भेद होते हैं - उपलब्धि और अनुपलब्धि। उपलब्धिरूप हेतु के दो भेद हैं - अविरुद्ध और विरुद्ध। विरुद्धरूप उपलब्धि के छह भेद निम्न प्रकार हैं।
परीक्षामुख/3/72-77 नास्त्यत्र शीलस्पर्श औष्ण्यात् ।72। नास्त्यत्र शीतस्पर्शो धूमात् ।73। नास्मिन् शरीरिणि सुखमस्ति हृदयशल्यात् ।74। नोदेष्यति मुहूर्तांते शकटं रेवत्युदयात् ।75। नोदगाद्भरणिर्मुहूर्तात्पूर्वं पुष्योदयात् ।76। नास्त्यत्र भित्तौ परभागाभावोऽर्वाग्भागदर्शनात् ।77।
प्रतिषेध रूप या विरुद्धरूप उपलब्धि
- इस स्थान पर शीतस्पर्श नहीं है क्योंकि उष्णता मौजूद है।72।
- यहाँ शीतस्पर्श नहीं है क्योंकि शीतस्पर्श रूप साध्य से विरुद्ध अग्नि का कार्य यहाँ धुँआ मौजूद है।73। ( परीक्षामुख/3/93 )
- इस प्राणी में सुख नहीं, क्योंकि सुख से विरुद्ध दु:ख का कारण इसके मानसिक व्यथा मालूम होती है।74।
- एक मुहूर्त के बाद रोहिणी का उदय न होगा, क्योंकि इस समय रोहिणी से विरुद्ध अश्विनी नक्षत्र से पहले उदय होने वाली रेवती नक्षत्र का उदय है।75।
- मुहूर्त के पहले भरणी का उदय नहीं हुआ क्योंकि इस समय भरणी से विरुद्ध पुनर्वसु के पीछे होने वाले पुष्य का उदय है।76।
- इस भित्ति में उस ओर के भाग का अभाव नहीं है क्योंकि उस ओर के भाग के साथ इस ओर का भाग साफ दीख रहा है।77|