अनुपसंहारी हेत्वाभास: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.273/425/22 तथैवानुपसंहारी केवलान्वयिपक्षकः। </p> | <p class="SanskritText">श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.273/425/22 तथैवानुपसंहारी केवलान्वयिपक्षकः। </p> | ||
<p class="HindiText"> | <p class="HindiText">व्यतिरेक नहीं पाया जाकर जिसका केवल अन्वय ही वर्तता है उसकी पक्ष या साध्य बनाकर जिस अनुमान में हेतु दिये जाते हैं, वे हेतु अनुपसंहारी हेत्वाभास हैं।</p> | ||
Revision as of 09:39, 29 September 2022
श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.273/425/22 तथैवानुपसंहारी केवलान्वयिपक्षकः।
व्यतिरेक नहीं पाया जाकर जिसका केवल अन्वय ही वर्तता है उसकी पक्ष या साध्य बनाकर जिस अनुमान में हेतु दिये जाते हैं, वे हेतु अनुपसंहारी हेत्वाभास हैं।