महाकाल
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
1. पिशाच जातीय चौदह पिशाचों के भेद में एक पिशाच व्यंतर का भेद–देखें पिशाच ।
2.एक चंद्र परिवार में 88 ग्रह होते हैं| उनमें से एक ग्रह का नाम महाकाल है| –अधिक जानकारी के लिए देखें ग्रह ।
3. उत्तर कालोद समुद्र का रक्षक देव– देखें व्यंतर - 4।
4. चक्रवर्ती की नव निधियों में से एक–देखें शलाका पुरुष -II.9।
5. नव नारदों में षष्ट नारद–अधिक जानकारी के लिए देखें शलाका पुरुष -VI।
पुराणकोष से
(1) उज्जयिनी का एक वन । हरिवंशपुराण 33. 102
(2) उज्जयिनी का एक श्मशान । मुनि वरधर्म ने यहाँ ध्यान किया था । हरिवंशपुराण 33. 109-11
(3) सातवां नरकभूमि के अप्रतिष्ठान इंद्रक बिल की पश्चिम दिशा में स्थित महानरक । हरिवंशपुराण 4.158
(4) भरतेश की नौ निधियों में दूसरी निधि । इससे परीक्षकों द्वारा निर्णय करने योग्य पंचलौह आदि अनेक प्रकार के लोहों का सद्भाव रहता है । इसी निधि से उनके यहाँ असि, मषि आदि छ: कर्मों के साधनभूत द्रव्य और संपदाएं निरंतर उत्पन्न की जाती थी । महापुराण 37.73, 77, हरिवंशपुराण 11. 110, 115
(5) मधुपिंगल का जीव― एक असुर देव । इसने वैरवश राजा मगर और सुलसा को यज्ञ में होम दिया था । इसने माया से अश्वमेघ, अजमेघ, गोमेघ और राजसूय यज्ञ भी करके दिखाये थे । महापुराण 67.170-174, 212, 252, हरिवंशपुराण 17. 157, 23. 126, 141-142, 145-146
(6) कालोदधि द्वीप का रक्षक देव । हरिवंशपुराण 5. 638
(7) काल गुफा का निवासी एक राक्षस । प्रद्युम्न ने इसे पराजित कर इससे वृषभ नाम का रथ तथा रत्नमय कवच प्राप्त किये थे । महापुराण 72.111
(8) एक गुहा । प्रद्युम्न ने तलवार, ढाल, छत्र तथा चमर इसी गुहा में प्राप्त किये थे । हरिवंशपुराण 47. 33
(9) एक व्यंतर देव । यह इसी नाम की गुहा में रहता था । इसने वैर वश श्रीपाल को इस गुहा में गिराया था । महापुराण 47.103-104
(10) व्यंतर देवों का सोलहवाँ इंद्र और प्रतींद्र । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.61-62
(11) छठा नारद । हरिवंशपुराण 60-548 देखें नारद