महाहिमवत्
From जैनकोष
(1) छ: कुलाचलों में दूसरा कुलाचल । इसका विस्तार चार हजार दो सौ दस योजन तथा दस कला प्रमाण है । यह पृथिवी से दो सौ योजन ऊपर तथा पचास योजन पृथिवी के नीचे है । इसकी प्रत्यंचा का विस्तार तिरेपन हजार नौ सौ इकतीस योजन तथा कुछ अधिक छ: कला हे । इस प्रत्यंचा के धनुःपृष्ठ का विस्तार सत्तावन हजार दो सौ तिरानवे योजन तथा कुछ अधिक दस अंश है । इसके बाण की चौड़ाई सात हजार आठ सौ चौरानवें योजन तथा चौदह भाग है । चूलिका आठ हजार एक सौ अट्ठाईस योजन तथा साढ़े चार कला प्रमाण । इसकी दोनों भुजाएँ नौ हजार दो सी छिहत्तर योजन तथा साढ़े नौ कला प्रमाण है । इसके आठ फूट हैं-सिद्धायतन, महाहिमवत्, हैमवत, रोहित, ह्री, हरिकांत, हरिवर्ष और वैडूर्य । इन सब कूटों की ऊँचाई पचास योजन है । मूल में इनका विस्तार पचास योजन, मध्य में साढ़े सैंतीस योजन और ऊपर पच्चीस योजन है । महापुराण 63.163, पद्मपुराण - 105.117-158,हरिवंशपुराण 5.15, 63-73