अप्रशस्त
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 7/14/352/7 प्राणिपीडाकर यत्तदप्रशस्तम्।= जिससे प्राणियोंको पीड़ा होती है, उसे (ऐसे कार्यको) अप्रशस्त कहते हैं।सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/28/445 अप्रशस्तमपुण्यास्रवकारणत्वात्।= जो पापास्रवका कारण है, वह (ध्यान) अप्रशस्त है।