आक्रंदन
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/11/329 परितापजाताश्रुपातप्रचुरविप्रलापादिभिर्व्यक्तक्रंदनमाक्रंदम्।
= परितापके कारण जो आँसू गिरनेके साथ विलाप आदि होता है, उससे खुलकर रोना आक्रंदन कहलाता है।
(राजवार्तिक अध्याय 6/11/4/419/26)
पुराणकोष से
असातावेदनीय कर्म का एक आस्रव-कारण― निज और पर के विषय में संताप आदि के कारण अश्रुपात सहित रुदन करना । हरिवंशपुराण 58.93