अन्तर उज्जवल करना रे भाई!
From जैनकोष
(राग सोरठ)
अन्तर उज्जल करना रे भाई! ।।टेक ।।
कपट कृपान तजै नहिं तबलौ, करनी काज न सरना रै ।।
जप-तप-तीरथ-यज्ञ-व्रतादिक आगम अर्थ उचरना रे ।
विषय-कषाय कीच नहिं धोयो, यों ही पचि पचि मरना रे ।।१ ।।अन्तर. ।।
बाहिर भेष क्रिया उर शुचिसों, कीये पार उतरना रे ।
नाहीं है सब लोक-रंजना, ऐसे वेदन वरना रे ।।२ ।।अन्तर. ।।
कामादिक मनसौं मन मैला, भजन किये क्या तिरना रे ।
`भूधर' नील वसन पर कैसैं, केसर रंग उछरना रे ।।३ ।।अन्तर. ।।