निर्दोष
From जैनकोष
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/43 निश्चयेन निखिलदुरितमलकलंकपंकनिर्न्निक्तसमर्थसहजपरमवीतरागसुखसमुद्रमध्यनिर्मग्नस्फुटितसहजावस्थात्मसहजज्ञानगात्रपवित्रत्वान्निर्दोष:। =निश्चय से समस्त पापमल कलंकरूपी कीचड़ को धो डालने में समर्थ, सहज-परमवीतरागसुख समुद्र में मग्न प्रगट सहजावस्थास्वरूप जो सहजज्ञानशरीर, उनके द्वारा पवित्र होने के कारण आत्मा निर्दोष है।