विस्तार
From जैनकोष
1. जीव की संकोच विस्तार शक्ति
तत्त्वार्थसूत्र/5/16
प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् ।
=दीप के प्रकाश के समान जीव के प्रदेशों का संकोच विस्तार होता है।
।–देखें जीव - 3।
2. Width or diameter. (जंबूदीवपण्णत्तिसंगहो/प्रस्तावना 108)।
3. Details( धवला 5/ प्रस्तावना 28)।