जातिमद
From जैनकोष
उत्तम जाति में उत्पन्न होने का अभिमान । भरतेश के प्रश्न करने पर वृषभदेव ने ब्राह्मण वर्ण के बारे में कहा था कि चतुर्थकाल तक तो ये उचित आचार का पालन करते रहेंगे पर पंचम काल में ये जातिवाद के अभिमान वश सदाचार से भ्रष्ट होकर समीचीन मार्ग के विरोधी हो जायेंगे । महापुराण 41.45-48