धर्म बिन कोई नहीं अपना
From जैनकोष
धर्म बिन कोई नहीं अपना
सब सम्पत्ति धन थिर नहिं जगमें, जिसा रैन सपना ।।धर्म. ।।टेक ।।
आगैं किया सो पाया भाई, याही है निरना ।
अब जो करैगा सो पावैगा, तातैं धर्म करना ।।१ ।।धर्म. ।।
ऐसै सब संसार कहत है, धर्म कियैं तिरना ।
परपीड़ा बिसनादिक सेवैं, नरकविषैं परना ।।२ ।।धर्म. ।।
नृपके घर सारी सामग्री, ताकैं ज्वर तपना ।
अरु दारिद्रीकैं हू ज्वर है, पाप उदय थपना ।।३ ।।धर्म. ।।
नाती तो स्वारथ के साथी, तोहि विपत भरना ।
वन गिरि सरिता अगनि युद्धमैं, धर्महिका सरना ।।४ ।।धर्म. ।।
चित बुधजन सन्तोष धारना, पर चिन्ता हरना ।
विपति पड़ै तो समता रखना, परमातम जपना ।।५ ।।धर्म. ।।