त्रिलोकमंडन
From जैनकोष
प.पु./सर्ग/श्लोक अपने पूर्व के मुनिभव में अपनी झूठी प्रशंसा को चुपचाप सुनने के फल से हाथी हुआ। रावण ने इसको मदमस्त अवस्था में पकड़कर इसका त्रिलोकमण्डन नाम रखा (८/४३२) एक समय मुनियों से अणुव्रत ग्रहणकर चार वर्ष तक उग्र तप किया (८७-१-७)। अन्त में सल्लेखना धारणकर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ। (८७-७)।