सत्यघोष
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
महापुराण/59/श्लोक सं.
सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन राजा का श्रीभूति नामक मंत्री था। परंतु इसने अपने को सत्यघोष प्रसिद्ध कर रखा था (146-147)। एक समय भद्रमित्र सेठ के रत्न लेकर मुकर गया (151)। तब रानी ने चतुराई से इसके घर से रत्न मँगवाये (168-169)। इसके फल में राजा द्वारा दंड दिया जाने पर आर्तध्यान से मरकर सर्प हुआ। (175-177) अनेकों भवों के पश्चात् विद्युद्दंष्ट्र विद्याधर हुआ। तब इसने सिंहसेन के जीव संजयंत मुनि पर उपसर्ग किया- विशेष देखें विद्युद्दंष्ट्र ।
इसी के रत्न उपरोक्त सत्यघोष ने मार लिये थे। इसकी सत्यता से प्रसन्न होकर राजा ने इसको मंत्री पद पर नियुक्त कर सत्यघोष नाम रखा- देखें चंद्रमित्र ।
सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन राजा का श्रीभूति नामक मंत्री था। परंतु इसने अपने को सत्यघोष प्रसिद्ध कर रखा था (146-147)। एक समय भद्रमित्र सेठ के रत्न लेकर मुकर गया (151)। तब रानी ने चतुराई से इसके घर से रत्न मँगवाये (168-169)। इसके फल में राजा द्वारा दंड दिया जाने पर आर्तध्यान से मरकर सर्प हुआ। (175-177) अनेकों भवों के पश्चात् विद्युद्दंष्ट्र विद्याधर हुआ। तब इसने सिंहसेन के जीव संजयंत मुनि पर उपसर्ग किया- विशेष देखें विद्युद्दंष्ट्र ।
इसी के रत्न उपरोक्त सत्यघोष ने मार लिये थे। इसकी सत्यता से प्रसन्न होकर राजा ने इसको मंत्री पद पर नियुक्त कर सत्यघोष नाम रखा- देखें चंद्रमित्र ।
पुराणकोष से
जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन का श्रीभूति ब्राह्मण मंत्री । यह सेठ भद्रमित्र के धरोहर के रूप में रखे हुए रत्न देने से मुकर गया था । भद्रासन के रोने चिल्लाने पर रानी रामदत्ता ने इसके साथ जुआ खेला और जुए में इसका यज्ञोपवीत तथा अँगूठी जीतकर युक्तिपूर्वक भद्रमित्र के रत्न इसके घर से मँगा लिए तथा भद्रमित्र को दे दिये । राजा ने भद्रमित्र को राजश्रेष्ठी बनाया और उसका उपनाम सत्यघोष रखा तथा इस मंत्री को तीन दंड दिये—
1. इसका सब धन छीन लिया गया।
2. वज्रमुष्टि पहलवान ने तीस घूंसे मारे
3. कांसे की तीन थाली गोबर खिलाया गया ।
अंत में राजा से वैर बाँधकर यह आर्तध्यान से मरा और राजा के भंडार में अगंधन नामक सर्प हुआ । (महापुराण 59. 146-177)