सत्यकीर्ति
From जैनकोष
(1) मलय देश के भद्रिलपुर नगर के राजा मेघरथ का मंत्री । इसने राजा मेघरथ को जिनेंद्र द्वारा कथित दान का स्वरूप समझाते हुए कहा था― राजन् ! अनुग्रह के लिए अपना धन या अपनी कोई वस्तु दूसरों को देना दान है । देने वाले को पुण्यवृद्धि तथा लेने वाले को गुणवृद्धि होने से दोनों का अनुग्रह (उपकार) होता है । ‘‘अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानं’’ यहाँ स्व का अर्थ धन है । मंत्री के इस प्रकार समझाने पर भी राजा नहीं माना और उसने कन्यादान, हस्तिवान, सुवर्णदान, अश्वदान, गोदान, दासीदान, तिलदान, रथदान, भूमिदान और गृहदान को दान कहकर उनका प्रचलन किया था । महापुराण 56.64, 88-89, 96
(2) लक्ष्मण और उनकी पटरानी भगवती का पुत्र । पद्मपुराण - 94.34