द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि
From जैनकोष
- द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि
- द्वीप-समुद्रों के नाम
- जंबूद्वीप के क्षेत्रों के नाम
- जंबू द्वीप के पर्वतों के नाम
- कुलाचल आदि के नाम
- नाभिगिरि तथा उनके रक्षक देव
- विदेह के वक्षारों के नाम
- गजदंतों के नाम
- यमक पर्वतों के नाम
- दिग्गजेंद्रों के नाम
- जंबूद्वीप के पर्वतीय कूट व तन्निवासी देव
- भरत विजयार्ध
- ऐरावत विजयार्ध
- विदेह के 32 विजयार्ध
- हिमवान्
- महाहिमवान्
- निषध पर्वत
- नील पर्वत
- रुक्मि पर्वत
- शिखरी पर्वत
- विदेह के 16 वक्षार
- सौमनस गजदंत
- विद्युत्प्रभ गजदंत
- गंधमादन गजदंत
- माल्यवान्
- सुमेरु पर्वत के वनों में कूटों के नाम व देव
- जंबूद्वीप में द्रहों व वापियों के नाम
- महाद्रहों के कूटों के नाम
- जंबूद्वीप की नदियों के नाम
- लवणसागर के पर्वत पाताल व तन्निवासी देवों के नाम
- मानुषोत्तर पर्वत के कूटों पर देवों के नाम
- नंदीश्वर द्वीप को वापियाँ व उनके देव
- कुंडलवर पर्वत के कूटों व देवों के नाम
- रुचकवर पर्वत के कूटों व देवों के नाम
- पर्वतों आदि के वर्ण
- द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि
- द्वीप-समुद्रों के नाम
- मध्य भाग से प्रारंभ करने पर मध्यलोक में क्रम से
- जंबू द्वीप- लवणसागर;
- धातकीखंड-कालोदसागर;
- पुष्करवरद्वीप पुष्करवर समुद्र;
- वारुणीवरद्वीप-वारुणीवरसमुद्र;
- क्षीरवरद्वीप- क्षीरवरसमुद्र;
- घृतवर द्वीप - घृतवर समुद्रः
- क्षोद्रवर (इक्षुवर) द्वीप- क्षौद्रवर (इक्षुवर) समुद्र;
- नंदीश्वरद्वीप-नंदीश्वरसमुद्र;
- अरुणीवरद्वीप- अरुणीवरसमुद्र;
- अरुणाभासद्वीप- अरुणाभाससमुद्र;
- कुंडलवरद्वीप - कुंडलवरसमुद्र;
- शंखवरद्वीप- शंखवरसमुद्र;
- रुचकवरद्वीप - रुचकवरसमुद्र;
- भुजगवरद्वीप - भुजगवरसमुद्र;
- कुशवरद्वीप - कुशवरसमुद्र;
- क्रौंचवरद्वीप - क्रौंचवरसमुद्र ये 16 नाम मिलते हैं। (मूलाचार/1074-1078); ( सर्वार्थसिद्धि /3/7/211/3 में केवल नं. 9 तक दिये हैं); ( राजवार्तिक/3/7/2/169/30 में नं. 8 तक दिये हैं); ( हरिवंशपुराण/5/613-620 ); ( त्रिलोकसार/304-307 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/84-89 );
- संख्यात द्वीप-समुद्र आगे जाकर पुनः एक जंबूद्वीप है। (इसके आगे पुनः उपर्युक्त नामों का क्रम चल जाता है।) तिलोयपण्णत्ति/5/179 ); ( हरिवंशपुराण/5/166, 397 );
- मध्य लोक के अंत से प्रारंभ करने पर -
- स्वयंभूरमण समुद्र- स्वयंभूरमण द्वीप;
- अहींद्रवर सागर - अहींद्रवर द्वीप;
- देववर समुद्र - देववर द्वीप;
- यक्षवर समुद्र - यक्षवर द्वीप;
- भूतवर समुद्र - भूतवर द्वीप;
- नागवर समुद्र - नागवर द्वीप;
- वैडूर्य समुद्र - वैडूर्य द्वीप;
- वज्रवर समुद्र - वज्रवरद्वीप;
- कांचन समुद्र - कांचन द्वीप;
- रुप्यवर समुद्र -रुप्यवर द्वीप;
- हिंगुल समुद्र - हिंगुल द्वीप;
- अंजनवर समुद्र - अंजनवर द्वीप;
- श्यामसमुद्र-श्यामद्वीप;
- सिंदूर समुद्र - सिंदूर द्वीप;
- हरितास समुद्र- हरितास द्वीप;
- मनःशिलसमुद्र - मनःशिल द्वीप;। ( हरिवंशपुराण/5/622-625 ); ( त्रिलोकसार/305-307 )।
- सागरों के जल का स्वाद- चार समुद्र अपने नामों के अनुसार रसवाले, तीन उदक रस अर्थात् स्वाभाविक जल के स्वाद से संयुक्त, शेष समुद्र ईख समान रस से सहित हैं। तीसरे समुद्र में मधुरूप जल है। वारुणीवर, लवणाब्धि, घृतवर और क्षीरवर, ये चार समुद्र प्रत्येक रस; तथा कालोद, पुष्करवर और स्वयंभूरमण, ये तीन समुद्र उदकरस हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/5/29-30 ); (मूलाचार/1079-1080); ( राजवार्तिक/3/32/8/194/17 ); ( हरिवंशपुराण/5/628-629 ); ( त्रिलोकसार/319 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/94-95 )।
- मध्य भाग से प्रारंभ करने पर मध्यलोक में क्रम से
- जंबूद्वीप के क्षेत्रों के नाम
- जंबूद्वीप के महाक्षेत्रों के नाम
जंबूद्वीप में 7 क्षेत्र हैं - भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत्, व ऐरावत। (देखें लोक - 3.1.2)।
- विदेह क्षेत्र के 32 क्षेत्र व उनके प्रधान नगर
- क्षेत्रों संबंधी प्रमाण - ( तिलोयपण्णत्ति/4/2206 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/176/176/15 +177/8, 19, 27); ( हरिवंशपुराण/5/244-252 ) ( त्रिलोकसार/687-690 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ का पूरा 8वाँ व 9वाँ अधिकार)।
- नगरी संबंधी प्रमाण - ( तिलोयपण्णत्ति/4/2293-2301 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/167/16 +177/9,20,28); ( हरिवंशपुराण/5/257-264 ); ( त्रिलोकसार/712-715 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ का पूरा 8-9वाँ अधिकार)।
- जंबूद्वीप के महाक्षेत्रों के नाम
- द्वीप-समुद्रों के नाम
अवस्थान |
क्रम |
क्षेत्र |
नगरी |
उत्तरी पूर्व विदेह में पश्चिम से पूर्व की ओर |
1 |
कच्छा |
क्षेमा तिलोयपण्णत्ति/4/2268 |
2 |
सुकच्छा |
क्षेमपुरी |
|
3 |
महाकच्छा |
रिष्टा (अरिष्टा) |
|
4 |
कच्छावती |
अरिष्टपुरी |
|
5 |
आवर्ता |
खड्गा |
|
6 |
लांगलावर्ता |
मंजूषा |
|
7 |
पुष्कला |
औषध नगरी |
|
8 |
पुष्कलावती (पुंडरीकनी) |
पुंडरीकिणी |
|
दक्षिण पूर्व विदेह में पूर्व से पश्चिम की ओर |
1 |
वत्सा |
सुसीमा |
2 |
सुवत्सा |
कुंडला |
|
3 |
महावत्सा |
अपराजिता |
|
4 |
वत्सकावती (वत्सवत्) |
प्रभंकरा (प्रभाकरी) |
|
5 |
रम्या |
अंका (अंकावती) |
|
6 |
सुरम्या (रम्यक) |
पद्मावती |
|
7 |
रमणीया |
शुभा |
|
8 |
मंगलावती |
रत्नसंचया |
|
दक्षिण पश्चिम विदेह में पूर्व से पश्चिम की ओर |
1 |
पद्मा |
अश्वपुरी |
2 |
सुपद्मा |
सिंहपुरी |
|
3 |
महापद्मा |
महापुरी |
|
4 |
पद्मकावती (पद्मवत्) |
विजयपुरी |
|
5 |
शंखा |
अरजा |
|
6 |
नलिनी |
विरजा |
|
7 |
कुमुदा |
शोका |
|
8 |
सरित |
वीतशोका |
|
उत्तरी पश्चिम विदेह में पश्चिम से पूर्व की ओर |
1 |
वप्रा |
विजया |
2 |
सुवप्रा |
वैजयंता |
|
3 |
महावप्रा |
जयंता |
|
4 |
वप्रकावती (वप्रावत) |
अपराजिता |
|
5 |
गंधा (वल्गु) |
चक्रपुरी |
|
6 |
सुगंधा-सुवल्गु |
खड्गपुरी |
|
7 |
गंधिला |
अयोध्या |
|
8 |
गंधमालिनी |
अवध्या |
- जंबू द्वीप के पर्वतों के नाम
- कुलाचल आदि के नाम
- जंबूद्वीप में छह कुलाचल हैं - हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी (देखें लोक - 3.1-2)।
- सुमेरु पर्वत के अनेकों नाम हैं। (देखें सुमेरु - 2)
- कांचन पर्वतों का नाम कांचन पर्वत ही है। विजयार्ध पर्वतों के नाम प्राप्त नहीं हैं। शेष के नाम निम्न प्रकार हैं -
- नाभिगिरि तथा उनके रक्षक देव
पर्वतों के नाम देवों के नाम
- कुलाचल आदि के नाम
नं. |
क्षेत्र का नाम |
तिलोयपण्णत्ति/4/1704, 1745,2335,2350 |
राजवार्तिक/3/107/172/21 +10/172/31 +16/181/17+19/181/23 |
हरिवंशपुराण/5/161; त्रिलोकसार/719 |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/209 |
तिलोयपण्णत्ति/ पूर्वोक्त राजवार्तिक/ पूर्वोक्त हरिवंशपुराण/5/164 |
1 |
हैमवत् |
शब्दवान् |
श्रद्धावान् |
श्रद्धावान् |
श्रद्धावती |
शाती (स्वाति) |
2 |
हरि |
विजयवान् |
विकृतवान् |
विजयवान् |
निकटावती |
चारण (अरुण) |
3 |
रम्यक् |
पद्म |
गंधवां |
पद्मवान |
गंधवती |
पद्म |
4 |
हैरण्यवत् |
गंधमादन |
माल्यवान् |
गंधवान् |
माल्यवान् |
प्रभास |
- विदेह के वक्षारों के नाम
( तिलोयपण्णत्ति/4/2210-2214 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/175/32 +177/6, 17,25); ( हरिवंशपुराण/5/228-232 ); ( त्रिलोकसार/666-669 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ 8 वाँ 9वाँ अधिकार )।
अवस्थान |
क्रम |
तिलोयपण्णत्ति |
शेषप्रमाण |
उत्तरीयपूर्व विदेह में पश्चिम से पूर्व की ओर |
1 |
चित्रकूट |
चित्रकूट |
2 |
नलिनकूट |
पद्यकूट |
|
3 |
पद्मकूट |
नलिनकूट |
|
4 |
एक शैल |
एक शैल |
|
दक्षिण पूर्व विदेह में पूर्व से पश्चिम की ओर |
5 |
त्रिकूट |
त्रिकूट |
6 |
वैश्रवणकूट |
वैश्रवणकूट |
|
7 |
अंजन शैल |
अंजन शैल |
|
8 |
आत्मांजन |
आत्मांजन |
|
दक्षिण अपर विदेह में पूर्व से पश्चिम की ओर |
9 |
श्रद्धावान् |
|
10 |
विजयवान् |
|
|
11 |
आशीर्विष |
आशीर्विष |
|
12 |
सुखावह |
सुखावह |
|
उत्तर अपर विदेह में पश्चिम से पूर्व की ओर |
13 |
चंद्रगिरि (चंद्रमाल) |
चंद्रगिरि |
14 |
सूर्यगिरि (सूर्यमाल) |
सूर्यगिरि |
|
15 |
नागगिरि (नागमाल) |
नागगिरि |
|
16 |
देवमाल |
|
नोट नं. 9 पर जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो में श्रद्धावती। नं. 10 पर राजवार्तिक में विकृतवान्, त्रिलोकसार में विजयवान् और जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो में विजटावती है। नं. 16 पर हरिवंशपुराण में मेघमाल है।
- गजदंतों के नाम
वायव्य आदि दिशाओं में क्रम से सौमनस, विद्युत्प्रभ, गंधमादन, व माल्यवान् ये चार हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/4/2015 ) मतांतर से गंधमादन, माल्यवान्, सौमनस व विद्युत्प्रभ ये चार हैं। ( राजवार्तिक/310/13/173/27,28 +175/11,17); ( हरिवंशपुराण/5/210-212 ); ( त्रिलोकसार/663 )।
- यमक पर्वतों के नाम
अवस्थान |
क्रम |
दिशा |
तिलोयपण्णत्ति/4/2077 ‒2124 हरिवंशपुराण/5/191 ‒192 त्रिलोकसार/654 ‒655 |
राजवार्तिक/3/10/13/174/25;175/26 जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/6/15, 18, 87 |
देवकुरु |
1 |
पूर्व |
यमकूट |
चित्रकूट |
2 |
पश्चिम |
मेघकूट |
विचित्र कूट |
|
उत्तरकुरु |
3 |
पूर्व |
चित्रकूट |
यमकूट |
4 |
पश्चिम |
विचित्र कूट |
मेघकूट |
- दिग्गजेंद्रों के नाम
देवकुरु में सीतोदा नदी के पूर्व व पश्चिम में क्रम से स्वस्तिक, अंजन, भद्रशाल वन में सीतोदा के दक्षिण व उत्तर तट पर अंजन व कुमुद; उत्तरकुरु में सीता नदी के पश्चिम व पूर्व में अवतंस व रोचन, तथा पूर्वी भद्रशाल वन में सीता नदी के उत्तर व दक्षिण तट पर पद्मोत्तर व नील नामक दिग्गजेंद्र पर्वत हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/4/2103 +2122+2130+2134); ( राजवार्तिक/3/10/13/178/6 ); ( हरिवंशपुराण/5/205-209 ); ( त्रिलोकसार/661-662 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/4/74-75 )।
- जंबूद्वीप के पर्वतीय कूट व तन्निवासी देव
- भरत विजयार्ध—(पूर्व से पश्चिम की ओर) ( तिलोयपण्णत्ति/4/148 +167); ( राजवार्तिक/3/10/4/172/10 ); ( हरिवंशपुराण/5/26 ); ( त्रिलोकसार/732-733 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/2/49 )।
- ऐरावत विजयार्ध—(पूर्व से पश्चिम की ओर) ( तिलोयपण्णत्ति/4/2367 ); ( हरिवंशपुराण/5/110-112 ); ( त्रिलोकसार/733-735 )
- विदेह के 32 विजयार्ध—( तिलोयपण्णत्ति/4/2260,2302-2303 )
- हिमवान्–(पूर्व से पश्चिम की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/1632 +1651); ( राजवार्तिक/3/11/2/182/24 ); ( हरिवंशपुराण/5/53-55 ); ( त्रिलोकसार/721 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/40 )
- महाहिमवान्–(पूर्व से पश्चिम की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/1724-1726 ); ( राजवार्तिक/3/11/4/183/4 ); ( हरिवंशपुराण/5/71-72 ); ( त्रिलोकसार/724 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/41 )।
- निषध पर्वत–(पूर्व से पश्चिम की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/1758-1760 ); ( राजवार्तिक/3/11/6/183/17 ); ( हरिवंशपुराण/5/88-89 ) ( त्रिलोकसार/725 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/42 )।
- नील पर्वत–(पूर्व से पश्चिम की ओर) ( तिलोयपण्णत्ति/4/2328 +2331); ( राजवार्तिक/3/11/8/183/24 ); ( हरिवंशपुराण/5/99-101 ); ( त्रिलोकसार/726 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/43 )।
- रुक्मि पर्वत–(पूर्व से पश्चिम की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/2341 +1243); ( राजवार्तिक/3/11/10/183/31 ); ( हरिवंशपुराण/5/102-104 ); ( त्रिलोकसार/727 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/44 )।
- शिखरी पर्वत–(पूर्व से पश्चिम की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/2353-2359 +1243); ( राजवार्तिक/3/11/12/184/4 ); ( हरिवंशपुराण/5/105-108 ); ( त्रिलोकसार/728 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/45 )।
- विदेह के 16 वक्षार–( तिलोयपण्णत्ति/4/2310 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/177/11 ); ( हरिवंशपुराण/5/234-235 ); ( त्रिलोकसार/743 )।
- सौमनस गजदंत–(मेरु से कुलगिरि की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/2031 +2043-2044); ( राजवार्तिक/3/10/13/175/13 ); ( हरिवंशपुराण/5/221,227 ); ( त्रिलोकसार/739 )।
- विद्युत्प्रभ गजदंत–(मेरु से कुलगिरि की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/2045-2046 +2053+2054); ( राजवार्तिक/3/10/13/175/18 ); ( हरिवंशपुराण/5/222,227 ); ( त्रिलोकसार/739-740 )।
- गंधमादन गजदंत–(मेरु से कुलगिरि की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/2057-2059 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/173/24 ); ( हरिवंशपुराण/5/217-218 +227); ( त्रिलोकसार/740-741 )।
- माल्यवान्–(मेरु से कुलगिरि की ओर)–( तिलोयपण्णत्ति/4/2060-2062 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/173/30 ); ( हरिवंशपुराण/5/219-220 +224); ( त्रिलोकसार/738 )।
- सुमेरु पर्वत के वनों में कूटों के नाम व देव ( तिलोयपण्णत्ति/4/1969-1977 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/179/19 ); ( हरिवंशपुराण/5/329 ); ( त्रिलोकसार/627 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/4/105 )।
- जंबूद्वीप में द्रहों व वापियों के नाम
- हिमवान् आदि कुलाचलों पर—[क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिंच्छ, केसरी, महापुंडरीक व पुंडरीक द्रह है। तिलोयपण्णत्ति में रुक्मि पर्वत पर महापुंडरीक के स्थान पर पुंडरीक तथा शिखरी पर्वत पर पुंडरीक के स्थान पर महापुंडरीक कहा है। (देखें लोक - 3.1,4 व लोक/3/9)।
- सुमेरु पर्वत के वनों में–आग्नेय दिशा को आदि करके ( तिलोयपण्णत्ति/4/1946,1962-1963 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/179/26 ); ( हरिवंशपुराण/5/334-346 ); ( त्रिलोकसार/628-629 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/4/110-113 )।
- हिमवान् आदि कुलाचलों पर—[क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिंच्छ, केसरी, महापुंडरीक व पुंडरीक द्रह है। तिलोयपण्णत्ति में रुक्मि पर्वत पर महापुंडरीक के स्थान पर पुंडरीक तथा शिखरी पर्वत पर पुंडरीक के स्थान पर महापुंडरीक कहा है। (देखें लोक - 3.1,4 व लोक/3/9)।
- देवकुरु व उत्तरकुरु में ( तिलोयपण्णत्ति/4/2091,2126 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/174/29 +175/5,6,9,28); ( हरिवंशपुराण/5/194-196 ); ( त्रिलोकसार/657 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/6/28,83 )।
- महाद्रहों के कूटों के नाम
- पद्मद्रह के तट पर ईशान आदि चार विदिशाओं में वैश्रवण, श्रीनिचय, क्षुद्रहिमवान् व ऐरावत ये तथा उत्तर दिशा में श्रीसंचय ये पाँच कूट हैं। उसके जल में उत्तर आदि आठ दिशाओं में जिनकूट, श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, शिखरी व उत्पल ये आठ कूट हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/4/1660-1665 )।
- महापद्म आदि द्रहों के कूटों के नाम भी इसी प्रकार हैं। विशेषता यह है कि हिमवान् के स्थान पर अपने-अपने पर्वतों के नाम वाले कूट हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/4/1730-1734,1765-1769 )।
- जंबूद्वीप की नदियों के नाम
- भरतादि महाक्षेत्रों में
क्रम से गंगा-सिद्धधु; रोहित-रोहितास्या; हरित्-हरिकांता; सीता-सीतोदा; नारी-नरकांता; सूवर्णकूला-रूप्यकूला; रक्ता-रक्तोदा ये चार नदियाँ हैं। (देखें लोक - 3.1-7 व लोक/3/11)।
- विदेह के 32 क्षेत्रों में (गंगा-सिंधु नाम की 16 और रक्ता-रक्तोदा नाम की 16 नदियाँ हैं। (देखें लोक - 3.11)।
- विदेह क्षेत्र की 12 विभंगा नदियों के नाम
( तिलोयपण्णत्ति/4/2215-2216 ); ( राजवार्तिक/3/10/13/175/33 +177/7,17,25); ( हरिवंशपुराण/5/239-243 ); ( त्रिलोकसार/666-669 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/8-9 वाँ अधिकार)।
- भरतादि महाक्षेत्रों में
- लवणसागर के पर्वत पाताल व तन्निवासी देवों के नाम
( तिलोयपण्णत्ति/4/2410 +2460-2469); ( हरिवंशपुराण/5/443,460 ); ( त्रिलोकसार/897 +905-907); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/10/630-33 )। - मानुषोत्तर पर्वत के कूटों पर देवों के नाम
( तिलोयपण्णत्ति/4/2766 +2776-2782); ( राजवार्तिक/3/34/6/197/14 ); ( हरिवंशपुराण/5/602-610 ); ( त्रिलोकसार/942 )। - नंदीश्वर द्वीप को वापियाँ व उनके देव
पूर्वादि क्रम से ( तिलोयपण्णत्ति/5/63-78 ); ( राजवार्तिक/3/35/-/198/1 ); ( हरिवंशपुराण/5/659-665 ); ( त्रिलोकसार/969-970 )। - कुंडलवर पर्वत के कूटों व देवों के नाम
दृष्टि सं.1–( तिलोयपण्णत्ति/5/122-125 ); ( त्रिलोकसार/944-945 );।
दृष्टि सं.2–( तिलोयपण्णत्ति/5/133 ); ( राजवार्तिक/3/35/-/199/10 ); ( हरिवंशपुराण/5/690-694 )। - रुचकवर पर्वत के कूटों व देवों के नाम
- दृष्टि सं.1 की अपेक्षा
( तिलोयपण्णत्ति/5/145-163 ); ( राजवार्तिक/3/35/-/199/28 ); ( हरिवंशपुराण/5/705-717 ); ( त्रिलोकसार/848-958 )।
- दृष्टि सं.1 की अपेक्षा
- दृष्टि सं.2 की अपेक्षा
( तिलोयपण्णत्ति/5/169-177 ); ( राजवार्तिक/3/35/-/199/24 ); ( हरिवंशपुराण/5/702-727 )। - पर्वतों आदि के वर्ण
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
(दक्षिणार्ध) भरत |
(दक्षिणार्ध) भरत |
3 |
खंड प्रपात |
नृत्यमाल |
4 |
मणिभद्र* |
मणिभद्र* |
5 |
विजयार्ध कुमार |
विजयार्ध कुमार |
6 |
पूर्णभद्र* |
पूर्णभद्र* |
7 |
तिमिस्र गुहा |
कृतमाल |
8 |
(उत्तरार्ध) भरत |
(उत्तरार्ध) भरत |
9 |
वैश्रवण |
वैश्रवण |
*नोट― त्रिलोकसार में मणिभद्र के स्थान पर पूर्णभद्र और पूर्णभद्र के स्थान पर मणिभद्र है। |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
(उत्तरार्ध) ऐरावत |
(उत्तरार्ध) ऐरावत |
3 |
खंड प्रपात* |
कृतमाल* |
4 |
मणिभद्र |
मणिभद्र |
5 |
विजयार्ध कुमार |
विजयार्ध कुमार |
6 |
पूर्णभद्र |
पूर्णभद्र |
7 |
तिमिस्र गुहा* |
नृत्यमाल* |
8 |
(दक्षिणार्ध) ऐरावत |
(दक्षिणार्ध) ऐरावत |
9 |
वैश्रवण |
वैश्रवण |
*नोट― त्रिलोकसार में नं. 3 व 7 पर क्रम से खंडप्रपात व तिमिस्र गुहा नाम कूट और कृतमाल व नृत्यमाल देव बताये हैं। |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
देवों के नाम |
2 |
(दक्षिणार्ध) स्वदेश |
भरत विजयार्ध |
3 |
खंड प्रपात |
वत् जानने |
4 |
पूर्णभद्र |
|
5 |
विजयार्धकुमार |
|
6 |
मणिभद्र |
देवों के नाम |
7 |
तिमिस्रगुहा |
भरत विजयार्ध |
8 |
(उत्तरार्ध) स्वदेश |
वत् जानने |
9 |
वैश्रवण |
|
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
हिमवान् |
हिमवान् |
3 |
भरत |
भरत |
4 |
इला |
इलादेवी |
5 |
गंगा |
गंगादेवी |
6 |
श्री |
श्रीदेवी |
7 |
रोहितास्या |
रोहितास्या देवी |
8 |
सिंधु |
सिंधु देवी |
9 |
सुरा |
सुरा देवी |
10 |
हैमवत |
हैमवत |
11 |
वैश्रवण |
वैश्रवण |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
महाहिमवान् |
महाहिमवान् |
3 |
हैमवत |
हैमवत |
4 |
रोहित |
रोहित |
5 |
हरि (ह्री) |
हरि (ह्री) |
6 |
हरिकांत |
हरिकांत |
7 |
हरिवर्ष |
हरिवर्ष |
8 |
वैडूर्य |
वैडूर्य |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
निषध |
निषध |
3 |
हरिवर्ष |
हरिवर्ष |
4 |
पूर्व विदेह* |
पूर्व विदेह* |
5 |
हरि (ह्री)* |
हरि (ह्री)* |
6 |
विजय* |
विजय* |
7 |
सीतोदा |
सीतोदा |
8 |
अपर विदेह |
अपर विदेह |
9 |
रुचक |
रुचक |
*नोट– राजवार्तिक व त्रिलोकसार में नं.6 पर धृत या धृति नामक कूट व देव कहे हैं। तथा जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो में नं. 4,5,6 पर क्रम से धृति, पूर्व विदेह और हरिविजय नामक कूटदेव कहे हैं। |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
नील |
नील |
3 |
पूर्व विदेह |
पूर्व विदेह |
4 |
सीता |
सीता |
5 |
कीर्ति |
कीर्ति |
6 |
नारी |
नारी |
7 |
अपर विदेह |
अपर विदेह |
8 |
रम्यक |
रम्यक |
9 |
अपदर्शन |
अपदर्शन |
नोट– राजवार्तिक व त्रिलोकसार में नं.6 पर नरकांता नामक कूट व देवी कहा है। |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
रुक्मि (रूप्य) |
रुक्मि (रूप्य) |
3 |
रम्यक |
रम्यक |
4 |
नरकांता* |
नरकांता* |
5 |
बुद्धि |
बुद्धि |
6 |
रूप्यकूला |
रूप्यकूला |
7 |
हैरण्यवत |
हैरण्यवत |
8 |
मणिकांचन (कांचन) |
मणिकांचन (कांचन) |
नोट– राजवार्तिक व त्रिलोकसार में नं.4 पर नारी नामक कूट व देव कहा है। |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
शिखरी |
शिखरी |
3 |
हैरण्यवत |
हैरण्यवत |
4 |
रस देवी |
|
5 |
रक्ता |
रक्तादेवी |
6 |
लक्ष्मी* |
लक्ष्मी देवी* |
7 |
कांचन (सुवर्ण)* |
कांचन* |
8 |
रक्तवती* |
रक्तवती देवी |
9 |
गंधवती* (गांधार) |
गंधवती देवी* |
10 |
रैवत (ऐरावत)* |
रैवत* |
11 |
मणिकांचन* |
मणिकांचन* |
*नोट– राजवार्तिक में नं. 6,7,8,9,10,11 पर क्रम से प्लक्षणकुला, लक्ष्मी, गंधदेवी, ऐरावत, मणि व कांचन नामक कूट व देव देवी कहे हैं। |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
स्व वक्षार का नाम |
कूट सदृश नाम |
3 |
पहले क्षेत्र का नाम |
कूट सदृश नाम |
4 |
पिछले क्षेत्र का नाम |
कूट सदृश नाम* |
*नोट– हरिवंशपुराण में न.4 कूट पर दिक्कुमारी देवी का निवास बताया है। |
क्रम |
कूट |
देव |
|
( तिलोयपण्णत्ति ; हरिवंशपुराण ; त्रिलोकसार ) |
|
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
सौमनस |
सौमनस |
3 |
देवकुरु |
देवकुरु |
4 |
मंगल |
मंगल |
5 |
विमल |
वत्समित्रा देवी |
6 |
कांचन |
सुवत्सा (सुमित्रा देवी) |
7 |
विशिष्ट |
विशिष्ट |
|
( राजवार्तिक ) |
|
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
सौमनस |
सौमनस |
3 |
देवकुरु |
देवकुरु |
4 |
मंगलावत |
मंगल |
5 |
पूर्वविदेह |
पूर्वविदेह |
6 |
कनक |
सुवत्सा |
7 |
कांचन |
वत्समित्रा |
8 |
विशिष्ट |
विशिष्ट |
क्रम |
कूट |
देव |
( तिलोयपण्णत्ति ; हरिवंशपुराण ; व त्रिलोकसार ) |
||
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
विद्युत्प्रभ |
विद्युत्प्रभ |
3 |
देवकुरु |
देवकुरु |
4 |
पद्म |
पद्म |
5 |
तपन |
वारिषेणादेवी |
6 |
स्वस्तिक |
बला देवी* |
7 |
शतउज्ज्वल (शतज्वाल) |
शतउज्ज्वल (शतज्वाल) |
8 |
सीतोदा |
सीतोदा |
9 |
हरि |
हरि |
( राजवार्तिक ) |
||
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
विद्युत्प्रभ |
विद्युत्प्रभ |
3 |
देवकुरु |
देवकुरु |
4 |
पद्म |
पद्म |
5 |
विजय |
वारिषेणादेवी |
6 |
अपर विदेह |
बलादेवी |
7 |
स्वस्तिक |
स्वस्तिक |
8 |
शतज्वाल |
शतज्वाल |
9 |
सीतोदा |
सीतोदा |
10 |
हरि |
हरि |
नोट– हरिवंशपुराण में बलादेवी के स्थान पर अचलादेवी कहा है। |
क्रम |
कूट |
देव |
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
गंधमादन |
गंधमादन |
3 |
देवकुरु* |
देवकुरु* |
4 |
गंधव्यास (गंधमालिनी) |
गंधव्यास |
5 |
लोहित* |
भोगवती |
6 |
स्फटिक* |
भोगहंति (भोगंकरा) |
7 |
आनंद |
आनंद |
*नोट– त्रिलोकसार में सं.3 पर उत्तरकुरु कहा है। और राजवार्तिक में लोहित के स्थान पर स्फटिक व स्फटिक के स्थान पर लोहित कहा है। |
क्रम |
कूट |
देव |
( तिलोयपण्णत्ति ; हरिवंशपुराण ; त्रिलोकसार ) |
||
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
माल्यवान् |
माल्यवान् |
3 |
उत्तरकुरु |
उत्तरकुरु |
4 |
कच्छ |
कच्छ |
5 |
सागर |
भोगवतीदेवी (सुभोगा) |
6 |
रजत |
भोगमालिनी देवी |
7 |
पूर्णभद्र |
पूर्णभद्र |
8 |
सीता |
सीतादेवी |
9 |
हरिसह |
हरिसह |
( राजवार्तिक ) |
||
1 |
सिद्धायतन |
जिनमंदिर |
2 |
माल्यवान् |
माल्यवान् |
3 |
उत्तरकुरु |
उत्तरकुरु |
4 |
कच्छ |
कच्छ |
5 |
विजय |
विजय |
6 |
सागर |
भोगवती |
7 |
रजत |
भोगमालिनी |
8 |
पूर्णभद्र |
पूर्णभद्र |
9 |
सीता |
सीता |
10 |
हरि |
हरि |
सं. |
कूट |
देव |
( तिलोयपण्णत्ति ) सौमनस वन में |
||
1 |
नंदन |
मेघंकरा |
2 |
मंदर |
मेघवती |
3 |
निषध |
सुमेघा |
4 |
हिमवान् |
मेघमालिनी |
5 |
रजत |
तीयंधरा |
6 |
रुचक |
विचित्रा |
7 |
सागरचित्र |
पुष्पमाला |
8 |
वज्र |
अनिंदिता |
(शेष ग्रंथ) नंदन वन में |
||
1 |
नंदन |
मेघंकरी |
2 |
मंदर |
मेघवती |
3 |
निषध |
सुमेघा |
4 |
हैमवत* |
मेघमालिनी |
5 |
रजत* |
तीयंधरा |
6 |
रुचक* |
विचित्रा |
7 |
सागरचित्र |
पुष्पमाला* |
8 |
वज्र |
अनिंदिता |
*नोट— हरिवंशपुराण में सं.4 पर हिमवत्; सं.6 पर रजत; सं.8 पर चित्रक नाम दिये हैं। जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो में सं.4 पर हिमवान्, सं.5 पर विजय नामक कूट कहे हैं। तथा सं.7 पर देवी का नाम मणिमालिनी कहा है। |
|
सौमनसवन ( तिलोयपण्णत्ति ) |
नंदनवन ( राजवार्तिक ) |
1 |
उत्पलगुल्मा |
उत्पलगुल्मा |
2 |
नलिना |
नलिना |
3 |
उत्पला |
उत्पला |
4 |
उत्पलोज्ज्वला |
उत्पलोज्ज्वला |
5 |
भृंगा |
भृंगा |
6 |
भृंगनिभा |
भृंगनिभा |
7 |
कज्जला |
कज्जला |
8 |
कज्जलप्रभा |
कज्जलप्रभा |
9 |
श्रीभद्रा |
श्रीकांता |
10 |
श्रीकांता |
श्रीचंद्रा |
11 |
श्रीमहिता |
श्रीनिलया |
12 |
श्रीनिलया |
श्रीमहिता |
13 |
नलिना (पद्म) |
नलिना (पद्म) |
14 |
नलिनगुल्मा (पद्मगुल्मा) |
नलिनगुल्मा (पद्मगुल्मा) |
15 |
कुमुदा |
कुमुदा |
16 |
कुमुद्रप्रभा |
कुमुद्रप्रभा |
नोट— हरिवंशपुराण , त्रिलोकसार , व जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो में नंदनवन की अपेक्षा तिलोयपण्णत्ति वाले ही नाम दिये हैं। |
सं. |
देवकुरु में दक्षिण से उत्तर की ओर |
उत्तरकुरु में उत्तर से दक्षिण की ओर |
1 |
निषध |
नील |
2 |
देवकुरु |
उत्तरकुरु |
3 |
सूर |
चंद्र |
4 |
सुलस |
ऐरावत |
5 |
विद्युत् (तड़ित्प्रभ) |
माल्यवान् |
अवस्थान |
सं. |
नदियों के नाम |
|||
तिलोयपण्णत्ति |
राजवार्तिक |
त्रिलोकसार |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो |
||
उत्तरीपूर्व विदेह में पश्चिम से पूर्व की ओर |
1 |
द्रहवती |
ग्राहवती |
गाधवती |
ग्रहवती |
2 |
ग्राहवती |
हृदयावती |
द्रहवती |
द्रहवती |
|
|
3 |
पंकवती |
पंकावती |
पंकवती |
पंकवती |
दक्षिणी पूर्व विदेह में पूर्व से पश्चिम की ओर |
1 |
तप्तजला |
तप्तजला |
तप्तजला |
तप्तजला |
2 |
मत्तजला |
मत्तजला |
मत्तजला |
मत्तजला |
|
3 |
उन्मत्तजला |
उन्मत्तजला |
उन्मत्तजला |
उन्मत्तजला |
|
दक्षिणी अपर विदेह में पूर्व से पश्चिम की ओर |
1 |
क्षीरोदा |
क्षीरोदा |
क्षीरोदा |
क्षीरोदा |
2 |
सीतोदा |
सीतोदा |
सीतोदा |
सीतोदा |
|
3 |
औषध वाहिनी |
सेतांतर वाहिनी |
सोतो वाहिनी |
सोतो वाहिनी |
|
उत्तरी अपर विदेह में पश्चिम से पूर्व की ओर |
1 |
गंभीरमालिनी |
गंभीरमा |
गंभीरमा |
गंभीरमा |
2 |
फेनमालिनी |
फेनमा |
फेनमा |
फेनमा |
|
|
3 |
ऊर्मिमालिनी |
ऊर्मिमा |
ऊर्मिमा |
ऊर्मिमा |
दिशा |
सागर के अभ्यंतर भाग की ओर |
मध्यवर्ती पाताल का नाम |
सागर के बाह्यभाग की ओर |
||
पर्वत |
देव |
पर्वत |
देव |
||
पूर्व |
कौस्तुभ |
कौस्तुभ |
पाताल |
कौस्तुभावास |
कौस्तुभावास |
दक्षिण |
उदक |
शिव |
कदंब |
उदकावास |
शिवदेव |
पश्चिम |
शंख |
उदकावास |
बड़वामुख |
महाशंख |
उदक |
उत्तर |
दक |
लोहित (रोहित) |
यूपकेशरी |
दकवास |
लोहितांक |
नोट— त्रिलोकसार में पूर्वादि दिशाओं में क्रम से बड़वामुख, कदंबक, पाताल व यूपकेशरी नामक पाताल बताये हैं। |
दिशा |
सं. |
कूट |
देव |
पूर्व |
1 |
वैडूर्य |
यशस्वान् |
2 |
अश्मगर्भ |
यशस्कांत |
|
3 |
सौगंधी |
यशोधर |
|
दक्षिण |
4 |
रुचक |
नंद (नंदन) |
5 |
लोहित |
नंदोत्तर |
|
6 |
अंजन |
अशनिघोष |
|
पश्चिम |
7 |
अंजनमूल |
सिद्धार्थ |
8 |
कनक |
वैश्रवण (क्रमण) |
|
9 |
रजत |
मानस (मानुष्य) |
|
उत्तर |
10 |
स्फटिक |
सुदर्शन |
11 |
अंक |
मेघ (अमोघ) |
|
12 |
प्रवाल |
सुप्रबुद्ध |
|
आग्नेय |
13 |
तपनीय |
स्वाति |
14 |
रत्न |
वेणु |
|
ईशान |
15 |
प्रभंजन* |
वेणुधारी |
16 |
वज्र |
हनुमान |
|
वायव्य |
17 |
वेलंब* |
वेलंब |
नैर्ऋत्य |
18 |
सर्वरत्न* |
वेणुधारी (वणुनीत) |
नोट— राजवार्तिक व हरिवंशपुराण में सं.15,17 व 18 के स्थान पर क्रम से सर्वरत्न, प्रभंजन व वेलंब नामक कूट हैं। तथा वेणुतालि, प्रभंजन व वेलंब ये क्रम से उनके देव हैं। |
दिशा |
सं. |
तिलोयपण्णत्ति व त्रिलोकसार |
राजवार्तिक |
हरिवंशपुराण |
पूर्व |
1 |
नंदा |
नंदा |
सौधर्म |
|
2 |
नंदवती |
नंदवती |
ऐशान |
|
3 |
नंदोत्तरा |
नंदोत्तरा |
चमरेंद्र |
|
4 |
नंदिघोष |
नंदिघोष |
वैरोचन |
दक्षिण |
1 |
अरजा |
विजया |
वरुण |
|
2 |
विरजा |
वैजयंती |
यम |
|
3 |
अशोका |
जयंती |
सोम |
|
4 |
वीतशोका |
अपराजिता |
वैश्रवण |
पश्चिम |
1 |
विजया |
अशोका |
वेणु |
|
2 |
वैजयंती |
सुप्रबुद्धा |
वेणुताल |
|
3 |
जयंती |
कुमुदा |
वरुण (घरण) |
|
4 |
अपराजिता |
पुंडरीकिणी |
भूतानंद |
उत्तर |
1 |
रम्या |
प्रभंकरा |
वरुण |
|
2 |
रमणीय |
सुमना |
यम |
|
3 |
सुप्रभा |
आनंदा |
सोम |
|
4 |
सर्वतोभद्र |
सुदर्शना |
वैश्रवण |
नोट—दक्षिण के कूटों पर सौधर्म इंद्र के लोकपाल, तथा उत्तर के कूटों पर ऐशान इंद्र के लोकपाल रहते हैं। |
दिशा |
कूट |
देव |
|
दृष्टि सं.1 |
दृष्टि सं.2 |
||
पूर्व |
वज्र |
स्व स्व कूट सदृश नाम |
विशिष्ट (त्रिशिरा) |
|
वज्रप्रभ |
पंचिशिर |
|
|
कनक |
महाशिर |
|
|
कनकप्रभ |
महावान् |
|
दक्षिण |
रजत |
पद्म |
|
|
रजतप्रभ (रजताभ) |
पद्मोत्तर |
|
|
सुप्रभ |
महापद्म |
|
|
महाप्रभ |
वासुकी |
|
पश्चिम |
अंक |
स्थिरहृदय |
|
|
अंकप्रभ |
महाहृदय |
|
|
मणि |
श्री वृक्ष |
|
|
मणिप्रभ |
स्वस्तिक |
|
उत्तर |
रुचक* |
सुंदर |
|
|
रुचकाभ* |
विशालनेत्र |
|
|
हिमवान्* |
पांडुक* |
|
|
मंदर* |
पांडुर* |
|
नोट– राजवार्तिक व हरिवंशपुराण में उत्तर दिशा के कूटों का नाम क्रम से स्फटिक, स्फटिकप्रभ, हिमवान् व महेंद्र बताया है। अंतिम दो देवों के नामों में पांडुक के स्थान पर पांडुर और पांडुर के स्थान पर पांडुक बताया है। |
दिशा |
सं. |
तिलोयपण्णत्ति ; त्रिलोकसार |
देवियों का काम |
राजवार्तिक ; हरिवंशपुराण |
देवियों का काम |
||
कूट |
देवी |
कूट |
देवी |
||||
पूर्व |
1 |
कनक |
विजया |
जन्म कल्याणक पर झारी धारण करना |
वैडूर्य |
विजया |
जन्म कल्याण पर झारी धारण करना |
2 |
कांचन |
वैजयंती |
कांचन |
वैजयंती |
|||
3 |
तपन |
जयंती |
कनक |
वैजयंती |
|||
4 |
स्वतिकदिशा |
अपराजिता |
अरिष्टा |
अपराजिता |
|||
5 |
सुभद्र |
नंदा |
दिक्स्वतिक |
नंदा |
|||
6 |
अंजनमूल |
नंदवती |
नंदन |
नंदोत्तरा |
|||
7 |
अंजन |
नंदोत्तर |
अंजन |
आनंदा |
|||
8 |
वज्र |
नंदिषेणा |
अंजनमूल |
नंदिवर्धना |
|||
दक्षिण |
1 |
स्फटिक |
इच्छा |
जन्म कल्याणक पर दर्पण धारण करना |
अमोघ |
सुस्थिता |
दर्पण धारण करना |
2 |
रजत |
समाहार |
सुप्रबुद्ध |
सुप्रणिधि |
|||
3 |
कुमुद |
सुप्तकीर्णा |
मंदिर |
सुप्रबुद्धा |
|||
4 |
नलिन |
यशोधरा |
विमल |
यशोधरा |
|||
5 |
पद्म |
लक्ष्मी |
रुचक |
लक्ष्मीवती |
|||
6 |
चंद्र |
शेषवती |
रुचकोत्तर |
कीर्तिमती |
|||
7 |
वैश्रवण |
चित्रगुप्ता |
चंद्र |
वसुंधरा |
|||
8 |
वैडूर्य |
वसुंधरा |
सुप्रतिष्ठ |
चित्रा |
|||
पश्चिम |
1 |
अमोघ |
इला |
जन्म कल्याणक पर छत्र धारण करना |
लोहिताक्ष |
इला |
जन्म कल्याणक पर छत्र धारण करना |
2 |
स्वस्तिक |
सुरादेवी |
जगत्कुसुम |
सुरा |
|||
3 |
मंदर |
पृथिवी |
पद्म |
पृथिवी |
|||
4 |
हैमवत् |
पद्मा |
नलिन (पद्म) |
पद्मावती |
|||
5 |
राज्य |
एकनासा |
कुमुद |
कानना (कांचना) |
|||
6 |
राज्योत्तम |
नवमी |
सौमनस |
नवमिका |
|||
7 |
चंद्र |
सीता |
यश |
यशस्वी (शीता) |
|||
8 |
सुदर्शन |
भद्रा |
भद्र |
भद्रा |
|||
उत्तर |
1 |
विजय |
अलंभूषा |
जन्म कल्याणक पर चँवर धारण करना |
स्फटिक |
अलभूषा |
जन्म कल्याणक पर चँवर धारण करना |
2 |
वैजयंत |
मिश्रकेशी |
अंक |
मिश्रकेशी |
|||
3 |
जयंत |
पुंडरीकिणी |
अंजन |
पुंडरीकिणी |
|||
4 |
अपराजित |
वारुणी |
कांचन |
वारुणी |
|||
5 |
कुंडलक |
आशा |
रजत |
आशा |
|||
6 |
रुचक |
सत्या |
कुंडल |
ह्री |
|||
7 |
रत्नकूट |
ह्री |
रुचिर (रुचक) |
श्री |
|||
8 |
सर्वरत्न |
श्री |
सुदर्शन |
धृति |
|||
उपरोक्त की अभ्यंतर दिशाओं में |
1 |
विमल |
कनका |
दिशाएँ निर्मल करना |
× |
× |
|
2 |
नित्यालोक |
शतपदा (शतहृदा) |
|||||
3 |
स्वयंप्रभ |
कनकचित्रा |
|||||
4 |
नित्योद्योत |
सौदामिनी |
|||||
उपरोक्त की अभ्यंतर दिशाओं में |
1 |
रुचक |
रुचककीर्ति |
जातकर्म करना |
|
|
|
2 |
मणि |
रुचककांता |
|||||
3 |
राज्योत्तम |
रुचकप्रभा |
|||||
4 |
वैडूर्य |
रुचका |
दिशा |
सं. |
( तिलोयपण्णत्ति ) |
देवी का काम |
राजवार्तिक ; हरिवंशपुराण |
देवी का काम |
||
कूट |
देवी |
कूट |
देवी |
||||
चारों दिशाओं में |
1 |
नंद्यावर्त |
पद्मोत्तर |
दिग्गजेंद्र |
|
||
|
2 |
स्वस्तिक |
सुभद्र |
सहस्ती |
|
||
|
3 |
श्रीवृक्ष |
नील |
|
|||
|
4 |
वर्धमान |
अंजनगिरि |
|
|||
अभ्यंतर दिशा में 32 देखें पूर्वोक्त दृष्टि सं - 1 में प्रत्येक दिशा के आठ कूट |
|||||||
विदिशा में प्रदक्षिणा रूप से |
1 |
वैडूर्य |
रुचका |
जातकर्म करने वाली महत्त |
|
||
|
2 |
मणिभद्र |
विजया |
रत्न |
विजया |
|
|
|
3 |
रुचक |
रुचकाभा |
|
|||
|
4 |
रत्नप्रभ |
वैजयंती |
|
|||
|
5 |
रत्न |
रुचकांता |
मणिप्रभ |
रुचककांता |
|
|
|
6 |
शंखरत्न |
जयंती |
सर्वरत्न |
जयंती |
|
|
|
7 |
रुचकोत्तम |
रुचकोत्तमा |
रुचकप्रभा |
|
||
|
8 |
रत्नोच्चय |
अपराजिता |
|
|||
उपरोक्त के अभ्यंतर भाग में चारों दिशाओं में |
1 |
विमल |
कनका |
दिशाओं में उद्योत करना |
चित्रा |
|
|
|
2 |
नित्यालोक |
शतपदा (शतह्रदा) |
कनकचित्रा |
|
||
|
3 |
स्वयंप्रभ |
कनकचित्रा |
त्रिशिरा |
|
||
|
4 |
नित्योद्योत |
सौदामिनी |
सूत्रमणि |
|
सं. |
नाम |
प्रमाण |
वर्ण |
|||||
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.सं. |
राजवार्तिक/3/ सू./वा. /पृ./पंक्ति |
हरिवंशपुराण/5/ श्लो. |
त्रिलोकसार/ गा.सं. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अधि./गा. |
उपमा |
वर्ण |
||
1 |
हिमवान् |
95 |
12/-/184/11 तत्त्वार्थसूत्र/3/12 |
|
566 |
3/3 |
सुवर्ण |
पीत ( राजवार्तिक ) |
2 |
महाहिमवान् |
95 |
12/-/184/11 तत्त्वार्थसूत्र/3/12 |
|
|
3/3 |
चांदी |
शुक्ल ( राजवार्तिक ) |
3 |
निषध |
95 |
12/-/184/11 तत्त्वार्थसूत्र/3/12 |
|
566 |
3/3 |
तपनीय |
तरणादित्य (रक्त) |
4 |
नील |
95 |
12/-/184/11 तत्त्वार्थसूत्र/3/12 |
|
566 |
3/3 |
वैडूर्य |
मयूरग्रीव ( राजवार्तिक ) |
5 |
रुक्मि |
95 |
12/-/184/11 तत्त्वार्थसूत्र/3/12 |
|
566 |
3/3 |
रजत |
शुक्ल |
6 |
शिखरी |
95 |
12/-/184/11 तत्त्वार्थसूत्र/3/12 |
|
566 |
3/3 |
सुवर्ण |
पीत ( राजवार्तिक ) |
7 |
विजयार्ध |
107 |
10/4/171/15 |
21 |
|
2/32 |
रजत |
शुक्ल |
8 |
विजयार्ध के कूट |
|
|
|
670 |
|
सुवर्ण |
पीत |
9 |
सुमेरु— |
—— देखें लोक - 3.6,4 तथा 3/7 —— |
|
पांडुकशिला |
1820 |
10/13/180/18 |
347 |
633 |
4/13 |
अर्जुन सुवर्ण |
श्वेत |
|
पांडुकंबला |
1830 |
10/13/180/18 |
347 |
633 |
4/13 |
रजत |
विद्रुम (श्वेत) |
|
रक्तकंबला |
1834 |
10/13/180/18 |
347 |
633 |
4/13 |
रुधिर |
लाल |
|
अतिरक्त |
1832 |
10/13/180/18 |
347 |
633 |
4/13 |
सुवर्ण तपनीय |
रक्त |
10 |
नाभिगिरि |
|
|
|
719 |
|
दधि |
श्वेत |
|
मतांतर |
|
|
|
|
3/210 |
सुवर्ण |
पीत |
11 |
वृषभगिरि |
2290 |
|
|
710 |
|
सुवर्ण |
पीत |
12 |
गजदंत— |
|
|
|
|
|
|
|
|
सौमनस |
2016 |
10/13/175/11 |
212 |
663 |
|
चाँदी |
स्फटिक राजवार्तिक |
|
विद्युत्प्रभ |
2016 |
10/13/175/17 |
212 |
663 |
|
तपनीय |
रक्त |
|
गंधमादन |
2016 |
10/13/173/19 |
210 |
663 |
|
कनक |
पीत |
|
माल्यवान् |
2016 |
|
211 |
663 |
|
वैडूर्य |
(नीला) |
13 |
कांचन |
|
10/13/175/1 |
202 |
659 |
|
कांचन |
पीत |
14 |
वक्षार |
|
|
|
670 |
|
सुवर्ण |
पीत |
15 |
वृषभगिरि |
2290 |
|
|
710 |
|
सुवर्ण |
पीत |
16 |
गंगाकुंड में— |
|
|
|
|
|
|
|
|
शैल |
221 |
|
|
|
|
वज्र |
श्वेत |
|
गंगाकूट |
223 |
|
|
|
|
सुवर्ण |
पीत |
17 |
पद्मद्रह का कमल– |
|
|
|
|
|
|
|
|
मृणाल |
1667 |
17/-/185/9 |
|
|
|
रजत |
श्वेत |
|
कंद |
1667 |
17/-/185/9 |
|
|
|
अरिष्टमणि |
ब्राउन |
|
नाल |
1667 |
17/-/185/9 |
|
570 |
3/75 |
वैडूर्य |
नील |
|
पत्ते |
|
22/2/188/3 |
|
|
|
लोहिताक्ष |
रक्त |
|
कर्णिका |
|
22/2/188/3 |
|
|
|
अर्कमणि |
केशर |
|
केसर |
|
22/2/188/3 |
|
|
|
तपनीय |
रक्त |
18 |
जंबूवृक्षस्थल— |
|
|
|
|
|
|
|
|
सामान्य स्थल |
2152 |
|
175 |
|
|
सुवर्ण |
पीत |
|
इसकी वापियों के कूट |
|
10/13/174/22 |
|
|
|
अर्जुन |
श्वेत |
|
स्कंध |
2155 |
|
|
|
|
पुखराज |
पीत |
|
पीठ |
2152 |
|
|
|
|
रजत |
श्वेत |
19 |
वेदियाँ— |
|
|
|
|
|
|
|
|
जंबूद्वीप की जगती |
19 |
|
|
|
|
सुवर्ण |
पीत |
|
भद्रशालवन (वेदी) |
2114 |
10/13/178/5 |
|
|
|
सुवर्ण |
पद्मवर ( राजवार्तिक ) |
|
नंदनवन वेदी |
1989 |
10/13/179/9 |
|
|
|
सुवर्ण |
पद्मवर ( राजवार्तिक ) |
|
सौमनसवन (वेदी) |
1938 |
10/13/180/2 |
|
|
|
सुवर्ण |
पद्मवर ( राजवार्तिक ) |
|
पांडुकवन वेदी |
|
10/13/180/12 |
|
|
|
|
पद्मवर ( राजवार्तिक ) |
|
जंबूवृक्ष वेदी |
|
7/1/169/18 |
|
|
|
(जांबूनद सुवर्ण) |
रक्ततायुक्त पीत |
|
जंबूवृक्ष की 12 वेदियाँ |
2151 |
7/1/169/20 तथा 10/13/174/17 |
|
641 |
|
सुवर्ण |
पद्मवर |
|
सर्व वेदियाँ |
|
|
|
671 |
1/52,64 |
सुवर्ण |
पीत |
20 |
नदियों का जल— |
|
|
|
|
|
|
|
|
गंगा-सिंधु |
|
|
|
|
3/169 |
हिम |
श्वेत |
|
रोहित-रोहितास्या |
|
|
|
|
3/169 |
कुंदपुष्प |
श्वेत |
|
हरित-हरिकांता |
|
|
|
|
3/169 |
मृणाल |
हरित |
|
सीता-सीतोदा |
|
|
|
|
3/169 |
शंख |
श्वेत |
21 |
लवणसागर के पर्वत— |
2461 |
|
460 |
908 |
|
रजत |
धवल |
|
पूर्व दिशा वाले |
|
|
|
|
10/30 |
सुवर्ण |
पीत |
|
दक्षिण दिशा वाले |
|
|
|
|
10/31 |
अंकरत्न |
|
|
पश्चिम दिशा वाले |
|
|
|
|
10/32 |
रजत |
श्वेत |
|
उत्तर दिशा वाले |
|
|
|
|
10/33 |
वैडूर्य |
नील |
22 |
इष्वाकार |
|
|
|
925 |
|
सुवर्ण |
पीत |
23 |
मानुषोत्तर |
2751 |
|
595 |
927 |
|
सुवर्ण |
पीत |
24 |
अंजनगिरि |
57 |
|
654 |
968 |
|
इंद्रनीलमणि |
काला |
25 |
दधिमुख |
65 |
|
669 |
968 |
|
दही |
सफेद |
26 |
रतिकर |
67 |
|
673 |
968 |
|
सुवर्ण |
रक्ततायुक्त पीत |
27 |
कुंडलगिरि |
|
|
|
943 |
|
सुवर्ण |
रक्ततायुक्त पीत |
28 |
रुचकवर पर्वत |
141 |
3/35/-199/22 |
|
943 |
|
सुवर्ण |
रक्ततायुक्त पीत |