द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार
From जैनकोष
- द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार
- द्वीप सागरों का सामान्य विस्तार
- लवणसागर व उसके पातालादि
- अढाई द्वीप के क्षेत्रों का विस्तार
- जंबू द्वीप के पर्वतों व कूटों का विस्तार
- लंबे पर्वत
- गोल पर्वत
- पर्वतीय व अन्य कूट
- नदी कुंड द्वीप व पांडुक शिला आदि
- अढ़ाई द्वीपों की सर्व वेदियाँ
- शेष द्वीपों के पर्वतों व कूटों का विस्तार
- धातकीखंड के पर्वत
- पुष्कर द्वीप के पर्वत व कूट
- नंदीश्वर द्वीप के पर्वत
- कुंडलवर पर्वत व उसके कूट
- रुचकवर पर्वत व उसके कूट
- स्वयंभूरमण पर्वत
- अढ़ाई द्वीप के वनखंडों का विस्तार
- अढ़ाई द्वीप की नदियों का विस्तार
- मध्यलोक की वापियों व कुंडों का विस्तार
- अढाई द्वीप के कमलों का विस्तार
- द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार
- द्वीप सागरों का सामान्य विस्तार
- जंबूद्वीप का विस्तार 100,000 योजन है। तत्पश्चात् सभी समुद्र व द्वीप उत्तरोत्तर दुगुने-दुगुने विस्तारयुक्त हैं। ( तत्त्वार्थसूत्र/3/8 ); ( तिलोयपण्णत्ति/5/32 )
- जंबूद्वीप का विस्तार 100,000 योजन है। तत्पश्चात् सभी समुद्र व द्वीप उत्तरोत्तर दुगुने-दुगुने विस्तारयुक्त हैं। ( तत्त्वार्थसूत्र/3/8 ); ( तिलोयपण्णत्ति/5/32 )
- लवणसागर व उसके पातालादि
- सागर
- द्वीप सागरों का सामान्य विस्तार
सं. |
स्थलविशेष |
विस्तारादि में क्या |
प्रमाण योजन |
|
दृष्टि सं.1–( तिलोयपण्णत्ति/4/2400-2407 ); ( राजवार्तिक/3/32/3/193/8 ); ( हरिवंशपुराण/5/434 ); ( त्रिलोकसार/915 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/10/22 )। |
|
|
1 |
पृथिवीतल पर |
विस्तार |
200,000 |
2 |
किनारों से 95000 योजन भीतर जाने पर तल में |
विस्तार |
10,000 |
3 |
किनारों से 95000 योजन भीतर जाने पर आकाश में |
विस्तार |
10,000 |
4 |
किनारों से 95000 योजन भीतर जाने पर आकाश में |
गहराई |
1000 |
5 |
किनारों से 95000 योजन भीतर जाने पर आकाश में |
ऊँचाई |
700 |
|
दृष्टि सं.2– |
|
|
6 |
लोग्गायणी के अनुसार उपरोक्त प्रकार आकाश में अवस्थित ( तिलोयपण्णत्ति/4/2445 ); ( हरिवंशपुराण/5/434 )। |
ऊँचाई |
11000 |
|
दृष्टि सं.3— |
|
|
7 |
सग्गायणी के अनुसार उपरोक्त प्रकार आकाश में अवस्थित ( तिलोयपण्णत्ति/4/2448 )। |
ऊँचाई |
10,000 |
8 |
तीनों दृष्टियों से उपरोक्त प्रकार आकाश में पूर्णिमा के दिन |
ऊँचाई |
देखें लोक - 4.1 |
- पाताल
पाताल विशेष |
विस्तार योजन |
गहराई |
दीवारों की मोटाई |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/ 3/32/ 4/133/ पृ. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/10/ गा. |
||
मूल में |
मध्य में |
ऊपर |
||||||||
ज्येष्ठ |
10,000 |
100,000 |
10,000 |
100,000 |
500 |
2412 |
14 |
444 |
816 |
5 |
मध्यम |
1000 |
10,000 |
1000 |
10,000 |
50 |
2414 |
26 |
451 |
816 |
13 |
जघन्य |
100 |
1000 |
100 |
1000 |
5 |
2433 |
31 |
456 |
816 |
12 |
- अढाई द्वीप के क्षेत्रों का विस्तार
- जंबू द्वीप के क्षेत्र
नाम |
विस्तार (योजन) |
जीवा |
पार्श्व भुजा (योजन) |
प्रमाण |
||||
दक्षिण |
उत्तर (योजन) |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.नं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
|||
भरत सामान्य |
526 |
अपने अपने पर्वतों को उत्तर जीवा |
14471 |
धनुष पृष्ठ |
105+192 |
18+40 |
604+771 |
2/10 |
दक्षिण भरत |
238 |
9748 |
धनुष पृष्ठ |
184 |
|
|
|
|
उत्तर भरत |
238 |
14471 |
1812 |
191 |
|
|
|
|
हैमवत् |
2105 |
37674 |
6755 |
1698 |
57 |
773 |
|
|
हरिवर्ष |
8421 |
7390 |
13361 |
1739 |
74 |
775 |
3/228 |
|
विदेह |
33684 |
मध्य में 100,000 उत्तर व दक्षिण में पर्वतों की जीवा |
33767 |
1775 |
91 |
605+777 |
7/3 |
|
रम्यक |
— |
हरिवर्षकवत् |
— |
2335 |
97 |
778 |
2/208 |
|
हैरण्यवत् |
— |
हैमवतवत् |
— |
2350 |
97 |
778 |
2/208 |
|
ऐरावत |
— |
भरतवत् |
— |
2365 |
97 |
778 |
2/208 |
|
देवकुरु व उत्तर कुरु– |
|
|
|
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.1 |
11592 |
53000 |
60418 |
2140 |
|
|
|
|
दृष्टि सं.2 |
11592 |
52000 |
60418 |
2129 |
|
|
|
|
दृष्टि सं.3 |
11842 |
53000 |
60418 |
× |
168 |
× |
6/2 |
|
—— ( राजवार्तिक/3/10/13/174/3 ) —— |
||||||||
32 विदेह |
पूर्वापर 2212 |
दक्षिण-उत्तर 16592 |
|
2271+2231 |
1 253 |
605 |
7/11+20 |
|
—— ( राजवार्तिक/3/10/13/176/18 ) —— |
- धातकीखंड के क्षेत्र
नाम |
लंबाई |
विस्तार |
प्रमाण |
||||
अभ्यंतर (योजन) |
मध्यम (योजन) |
बाह्य (योजन) |
|||||
भरत |
द्वीप के विस्तारवत् |
6614 |
12581 |
18547 |
( तिलोयपण्णत्ति/4/2564-2572 ); ( राजवार्तिक/3/33/2-7/192/2 ); (हरिवंशपुराण/5/502-504) ; ( त्रिलोकसार 929 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/6-17 ) |
||
हैमवत |
26458 |
50324 |
74190 |
||||
हरिवर्ष |
105833 |
2012298 |
296763 |
||||
विदेह |
423334 |
805194 |
1187054 |
||||
रम्यक |
— |
हरिवर्षवत् |
— |
||||
हैरण्यवत् |
— |
हैमवतवत् |
— |
||||
ऐरावत |
— |
भरतवत् |
— |
||||
नाम |
|
बाण |
जीवा |
धनुषपृष्ठ |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
हरिवंशपुराण/5/ श्लो. |
|
दोनों कुरु |
|
366680 |
223158 |
925486 |
2593 |
535 |
नाम |
पूर्व पश्चिम विस्तार |
दक्षिण-उत्तर लंबाई (योजन) |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
||
आदि |
मध्यम |
अंतिम |
|||
दोनों बाह्य विदेह के क्षेत्र—( तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.सं.); ( हरिवंशपुराण/5/548-549 ); ( त्रिलोकसार/931-933 ) |
|||||
कच्छा-गंधमालिनी |
प्रत्येक क्षेत्र=973 यो. = ( तिलोयपण्णत्ति/4/2607 ) |
509570 |
514154 |
518738 |
2622 |
सुकच्छा-गंधिला |
519693 |
524277 |
528861 |
2634 |
|
महाकच्छा-सुगंधा |
529100 |
533684 |
538268 |
2638 |
|
कच्छकावती-गंधा |
539222 |
543806 |
548390 |
2642 |
|
आवर्ता-वप्रकावती |
548629 |
553213 |
557797 |
2646 |
|
लांगलावती-महावप्रा |
558751 |
563335 |
567919 |
2650 |
|
पुष्कला-सुवप्रा |
568158 |
572742 |
577326 |
2656 |
|
वप्रा-पुष्कलावती |
578280 |
582864 |
587448 |
2658 |
|
दोनों अभ्यंतर विदेहों के क्षेत्र——( तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.सं.); ( हरिवंशपुराण/5/555 ); ( त्रिलोकसार/931-933 ) |
|||||
पद्मा-मंगलावती |
प्रत्येक क्षेत्र = 693 ( तिलोयपण्णत्ति/4/2607 ) |
294623 |
290039 |
285455 |
2670 |
सुपद्मा-रमणीया |
284501 |
279917 |
275333 |
2674 |
|
महापद्मा-सुरम्या |
275094 |
270510 |
265926 |
2678 |
|
पद्मकावती-रम्या |
264972 |
260388 |
255804 |
2682 |
|
शंखा-वत्सकावती |
255565 |
250981 |
246397 |
2686 |
|
नलिना-महावत्सा |
245443 |
240859 |
236275 |
2690 |
|
कुमुदा-महावत्सा |
236036 |
231452 |
226868 |
2694 |
|
सरिता-वत्सा |
225914 |
221330 |
216746 |
2698 |
- पुष्करार्ध के क्षेत्र
नाम |
लंबाई |
विस्तार |
प्रमाण |
|||||
अभ्यंतर (योजन) |
मध्यम (योजन) |
बाह्य (योजन) |
||||||
भरत |
द्वीप के विस्तारवत् |
( तिलोयपण्णत्ति/4/2805-2817 ); ( राजवार्तिक/3/34/2-5/196/19 ); ( हरिवंशपुराण/5/580-584 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/67-72 ) |
||||||
हैमवत |
||||||||
हरि |
||||||||
विदेह |
||||||||
रम्यक |
||||||||
हैरण्यवत् |
||||||||
ऐरावत |
||||||||
नाम |
|
बाण |
जीवा |
धनुषपृष्ठ |
प्रमाण |
|||
दोनो कुरु |
|
1486931 |
436916 |
3668335 |
उपरोक्त |
|||
नाम |
पूर्व पश्चिम विस्तार |
दक्षिण उत्तर लंबाई |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
|||||
आदिम |
मध्यम |
अंतिम |
||||||
दोनों बाह्य विदेहों के क्षेत्र—( तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.नं.); ( त्रिलोकसार/931-933 ) |
||||||||
कच्छा-गंधमालिनी |
|
2837 |
||||||
सुकच्छा-गंधिला |
|
2848 |
||||||
महाकच्छा-सुगंधा |
|
1971502 |
2852 |
|||||
कच्छकावती-गंधा |
|
2856 |
||||||
आवर्ता-वप्रकावती |
|
2860 |
||||||
लांगलावती-महावप्रा |
|
2864 |
||||||
पुष्कला-सुवप्रा |
|
2868 |
||||||
वप्रा-पुष्कलावती |
|
2872 |
||||||
दोनों अभ्यंतर विदेहों के क्षेत्र—( तिलोयपण्णत्ति/4/ गा.); ( त्रिलोकसार/931-933 ) |
||||||||
पद्मा-मंगलावती |
|
2880 |
||||||
सुपद्मा-रमणीया |
|
2884 |
||||||
महापद्मा-सुरम्या |
|
2888 |
||||||
रम्या-पद्मकावती |
|
2892 |
||||||
शंखा-वप्रकावती |
|
2896 |
||||||
महावप्रा-नलिना |
|
2900 |
||||||
कुमुदा-सुवप्रा |
|
2904 |
||||||
सरिता-वप्रा |
|
2908 |
- जंबू द्वीप के पर्वतों व कूटों का विस्तार
- लंबे पर्वत
नोट—पर्वतों की नींव सर्वत्र ऊँचाई से चौथाई होती हैं। ( हरिवंशपुराण/5/506 ); ( त्रिलोकसार/926 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/37 )।
- लंबे पर्वत
नाम |
ऊँचाई |
नींव योजन |
विस्तार योजन |
दक्षिण जीवा यो. |
उत्तर जीवा योजन |
पार्श्व भुजा योजन |
प्रमाण |
||||
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/-/-/-/ |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ/गा. |
|||||||
कुलाचल– |
- गोल पर्वत—
नाम |
ऊँचाई योजन |
गहराई |
विस्तार योजन |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/10 वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
||
मूल में |
मध्य में |
ऊपर |
||||||||
वृषभगिरि |
100 |
|
100 |
75 |
50 |
270 |
|
|
710 |
|
नाभिगिरि— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.1 |
1000 |
|
1000 |
1000 |
1000 |
1704 |
7/182/12 |
|
718 |
3/210 |
दृष्टि सं.2 |
1000 |
|
1000 |
750 |
500 |
1706 |
|
|
|
|
सुमेरु— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
पर्वत |
99000 |
1000 |
10,000 |
देखें लोक - 3.6.1 |
1000 |
1781 |
7/177/32 |
283 |
606 |
4/22 |
चूलिका |
40 |
× |
12 |
8 |
4 |
1795 |
7/180/14 |
302 |
620 |
4/132 |
यमक— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.1 |
2000 |
|
1000 |
750 |
500 |
2077 |
|
|
|
|
दृष्टि सं.2 |
1000 |
|
1000 |
750 |
500 |
|
7/174/26 |
193 |
655 |
6/16 |
कांचनगिरि |
100 |
|
100 |
75 |
50 |
2094 |
7/175/1 |
|
659 |
6/45 |
दिग्गजेंद्र |
100 |
|
100 |
75 |
50 |
2104, 2113 |
|
|
661 |
4/76 |
- पर्वतीय व अन्य कूट—
कूटों के विस्तार संबंधी सामान्य नियम—सभी कूटों का मूल विस्तार अपनी ऊँचाई का अर्धप्रमाण है : ऊपरी विस्तार उससे आधा है। उनकी ऊँचाई अपने-अपने पर्वतों की गहराई के समान है।
अवस्थान |
ऊँचाई योजन |
विस्तार योजन |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/ सू. वा./पृ./प. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ. /गा. |
|||
मूल में |
मध्य में |
ऊपर |
||||||||
भरत विजयार्ध |
6 |
6 |
|
|
149 |
|
28 |
723 |
3/46 |
|
ऐरावत विजयार्ध |
— |
भरत विजयार्धवत् |
— |
|
|
112 |
723 |
3/46 |
||
हिमवान् |
25 |
25 |
18 |
12 |
1633 |
|
55 |
723 |
3/46 |
|
महाहिमवान् |
— |
हिमवान् से दुगुना |
— |
1725 |
|
72 |
723 |
3/46 |
||
निषध |
— |
हिमवान् से चौगुना |
— |
1759 |
|
90 |
723 |
3/46 |
||
नील |
— |
निषधवत् |
— |
2327 |
|
101 |
723 |
3/46 |
||
रुक्मि |
— |
महाहिमवान्वत् |
— |
2340 |
|
104 |
723 |
3/46 |
||
शिखरी |
— |
हिमवान्वत् |
— |
2355 |
|
105 |
723 |
3/46 |
||
हिमवान् का सिद्धायतन |
500 |
500 |
375 |
250 |
|
11/2/182/16 |
|
× |
× |
|
शेष पर्वत |
— |
हिमवान् के समान |
— |
|
|
|
|
|
||
( राजवार्तिक/3/11/4/183/5;6/183/18;8/183/25;10/183/32;12/184/5 ) |
||||||||||
चारों गजदंत |
पर्वत से चौथाई |
उपरोक्त नियमानुसार जानना |
2032, 2048, 2058, 2060 |
10/13/173/23 |
224 |
276 |
|
|||
पद्मद्रह |
— |
हिमवान् पर्वतवत् |
— |
|
|
|
|
|
||
अन्यद्रह |
— |
अपने-अपने पर्वतोंवत् |
— |
|
|
|
|
|
||
भद्रशालवन |
— |
(देखें लोक - 3.1215 |
— |
|
|
|
|
|
||
नंदनवन |
500 |
500 |
375 |
250 |
1997 |
|
331 |
626 |
|
|
सौमनसवन |
250 |
250 |
187 |
125 |
1971 |
|
|
|
|
|
नंदनवन का बलभद्रकूट |
— |
(देखें लोक - 2.6,2) |
— |
1997 |
|
|
|
|
||
सौमनसवन का बलभद्र कूट |
— |
(देखें लोक - 3.6,3) |
— |
|
|
|
|
|
||
दृष्टि सं.1 |
100 |
100 |
75 |
50 |
1978 |
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.2 |
1000 |
1000 |
750 |
500 |
1980 |
(10/13/179/16) |
|
|
|
- नदी कुंड द्वीप व पांडुक शिला आदि—
अवस्थान |
ऊँचाई |
गहराई |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/22/ वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
||||
नदी कुंडों के द्वीप– |
|
|
|
|
|
|
|
|
||||
गंगाकुंड |
2 कोस |
10 योजन |
8 योजन |
221 |
1/187/26 |
143 |
587 |
3/165 |
||||
सिंधुकुंड |
— |
गंगावत् |
— |
|
2/187/32 |
|
|
|
||||
शेष कुंडयुगल |
2 कोस |
10 योजन |
उत्तरोत्तर दूना |
|
3-14/188-189 |
|
|
|
||||
विस्तार |
||||||||||||
मूल |
मध्य |
ऊपर |
||||||||||
गंगा कुंड |
10 योजन |
4 यो. |
2 यो. |
1 यो. |
222 |
|
144 |
|
3/165 |
|||
|
|
लंबाई |
चौड़ाई |
|
|
|
|
|
||||
पांडुकशिला– |
|
|
|
|
|
|
|
|
||||
दृष्टि सं.1 |
8 योजन |
100 योजन |
50 योजन |
1819 |
|
349 |
635 |
|
||||
दृष्टि सं.2 |
4 योजन |
500 योजन |
250 योजन |
1821 |
180/20 |
|
|
4/142 |
||||
|
|
विस्तार |
|
|
|
|
|
|||||
|
|
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|
|
|
|
|
|||
पांडुक शिला के सिंहासन व आसन |
500 धनुष |
500 ध. |
275 ध. |
250 ध. |
|
|
|
|
|
- अढ़ाई द्वीपों की सर्व वेदियाँ—
वेदियों के विस्तार संबंधी सामान्य नियम—देवारण्यक व भूतारण्यक वनों के अतिरिक्त सभी कुंडों, नदियों, वनों, नगरों, चैत्यालयों आदि की वेदियाँ समान होती हुई निम्न विस्तार-सामान्यवाली हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/4/2388-2391 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/1/60-69 )
अवस्थान |
ऊँचाई |
गहराई |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/ सू./ वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
|||
सामान्य |
1/2 योजन |
ऊँचाई से चौथाई |
500 धनुष |
2390 |
|
119 |
|
1/69 |
|||
भूतारण्यक |
1 योजन |
ऊँचाई से चौथाई |
1000 धनुष |
2391 |
|
|
|
|
|||
देवारण्यक |
1 योजन |
ऊँचाई से चौथाई |
1000 धनुष |
|
|
|
|
|
|||
हिमवान् |
— |
सामान्य वेदीवत् — |
1629 |
|
|
|
|
||||
पद्मद्रह |
— |
सामान्य वेदीवत् — |
|
15/-/185/1 |
|
|
|
||||
शाल्मली वृक्षस्थल |
— |
सामान्य वेदीवत् — |
2168 |
|
|
|
|
||||
गजदंत |
— |
भूतारण्यक वत् — |
2100,2128 |
|
|
|
|
||||
भद्रशालवन |
— |
भूतारण्यक वत् — |
2006 |
|
|
|
|
||||
धातकीखंड की सर्व |
— |
उपरोक्त वत् — |
|
|
511 |
|
|
||||
पुष्करार्ध की सर्व |
— |
उपरोक्त वत् — |
|
|
|
|
|
||||
इष्वाकार |
— |
सामान्य वत् — |
2535 |
|
|
|
|
||||
मानुषोत्तर की– |
|
|
|
|
|
|
|
||||
तट वेदी |
— |
सामान्य वत् 1 को. — |
2754 |
|
|
|
|
||||
शिखर वेदी |
4000 |
|
|
|
|
|
|
||||
जंबूद्वीप की जगती |
|
गहराई |
विस्तार |
|
|
|
|
|
|||
|
|
1/2यो. |
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|
|
|
|
|
|
|
8 योजन |
12यो. |
8 यो. |
4 यो. |
15-27 |
9/1/370/26 |
378 |
885 |
1/26 |
||
|
|
प्रवेश |
आयाम |
|
|
|
|
|
|||
जगती के द्वार— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|||
दृष्टि सं.1 |
8 योजन |
4 योजन |
4 योजन |
43 |
|
|
|
|
|||
दृष्टि सं.2 |
750 योजन |
× |
500 योजन |
73 |
|
|
|
|
|||
लवणसागर |
— |
जंबूद्वीप की जगती वत् — |
|
|
|
|
|
- शेष द्वीपों के पर्वतों व कुटों विस्तार—
- धातकीखंड के पर्वत—
नाम |
ऊँचाई |
गहराई |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/33/ वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
||||
पर्वतों के विस्तार व ऊँचाई संबंधी सामान्य नियम— |
||||||||||||
कुलाचल |
जंबूद्वीपवत् |
स्वदीपवत् |
जंबूद्वीप से दूना |
2544-2546 |
5/195/20 |
497,509 |
|
|
||||
विजयार्ध |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से दूना |
2544-2546 |
5/195/20 |
497,509 |
|
|
||||
वक्षार |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से दूना |
2544-2546 |
5/195/20 |
497,509 |
|
|
||||
गजदंत दृष्टि सं.1 |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से दूना |
2544-2546 |
5/195/20 |
497,509 |
|
|
||||
दृष्टि सं.2 |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
2547 |
|
|
|
|
||||
उपरोक्त सर्व पर्वत- |
— |
जंबूद्वीप से दूना |
— |
|
|
|
|
|
||||
वृषभगिरि |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
|
|
511 |
|
|
||||
यमक |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
|
|
511 |
|
|
||||
कांचन |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
|
|
511 |
|
|
||||
दिग्गजेंद्र |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
|
|
511 |
|
|
||||
|
|
विस्तार |
|
|
|
|
|
|||||
दक्षिण उत्तर |
पूर्व पश्चिम |
|||||||||||
इष्वाकार |
400 योजन |
स्वद्वीपवत् |
1000 योजन |
2533 |
6/195/26 |
495 |
925 |
11/4 |
||||
विजयार्ध |
जंबूद्वीपवत् |
जंबूद्वीप से दूना |
स्वक्षेत्रवत् |
2607 + उपरोक्त सामान्य नियमवत् |
|
|
||||||
वक्षार |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से दूना |
408 + उपरोक्त सामान्य नियमवत् |
|
|
||||||
गजदंत— |
|
|
|
|
|
|
|
|
||||
अभ्यंतर |
जंबूद्वीपवत् |
256227 |
जंबूद्वीप से दूना |
2591 |
|
533 |
756 |
|
||||
बाह्य |
जंबूद्वीपवत् |
569257 |
जंबूद्वीप से दूना |
2592 |
|
534 |
756 |
|
||||
|
|
गहराई |
विस्तार |
|
|
|
|
|
||||
सुमेरु पर्वत— |
|
1000 |
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|
|
|
|
|
||
पृथिवी पर |
84000 |
94000 |
देखें लोक - 3.6/3 |
1000 |
2577 |
6/195/28 |
513 |
|
11/18 |
|||
पाताल में |
दृष्टि सं.1 की अपेक्षा विस्तार = 10,000 |
2577 |
|
513 |
|
|
||||||
चूलिका |
— जंबूद्वीप के मेरुवत् — |
|
|
|
|
|
नाम |
ऊँचाई व चौड़ाई |
दक्षिण उत्तर विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
|
||
आदिम |
मध्यम |
अंतिम |
||||
दोनों बाह्य विदेहों के वक्षार— |
देखें पूर्वोक्त सामान्य नियम |
|
|
|
|
त्रिलोकसार/931-933 |
चित्र व देवमाल कूट |
518738 |
519216 |
519693 |
2632 |
||
नलिन व नागकूट |
538268 |
538745 |
539222 |
2640 |
||
पद्म व सूर्यकूट |
557797 |
558274 |
558751 |
2648 |
||
एकशैल व चंद्रनाग |
577326 |
577803 |
578280 |
2656 |
||
दोनों अभ्यंतर विदेहों के वक्षार |
|
|
|
|
||
श्रद्धावान् व आत्मांजन |
285455 |
284978 |
284501 |
2672 |
||
अंजन व विजयवान् |
265926 |
265449 |
264972 |
2680 |
||
आशीविष व वैश्रवण |
246397 |
245920 |
245443 |
2688 |
||
सुखावह व त्रिकूट |
226868 |
226391 |
225914 |
2696 |
- पुष्कर द्वीप के पर्वत व कूट
नाम |
ऊँचाई यो. |
लंबाई यो. |
विस्तार यो. |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/34/ वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
||||||||
पर्वतों के विस्तार व ऊँचाई संबंधी सामान्य नियम |
||||||||||||||||
कुलाचल |
जंबूद्वीपवत् |
स्वद्वीप प्रमाण |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2789-2790 |
5/197/2 |
588-589 |
|
|
||||||||
विजयार्ध |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2789 |
|
588 |
|
|
||||||||
वक्षार |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2789 |
|
588 |
|
|
||||||||
गजदंत |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2789 |
|
588 |
|
|
||||||||
नाभिगिरि |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2789 |
|
588 |
|
|
||||||||
उपरोक्त सर्वपर्वत |
|
|
|
|
|
|
|
|
||||||||
दृष्टि सं.2 |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
2791 |
|
|
|
|
||||||||
वृषभगिरि |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
|
|
|
|
|
||||||||
यमक |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
|
|
|
|
|
||||||||
कांचन |
— |
जंबूद्वीपवत् |
— |
|
|
|
|
|
||||||||
दिग्गजेंद्र |
— |
जंबूद्वीपवत् — |
|
|
|
|
|
|||||||||
मेरु व इष्वाकार |
— |
धातकीवत् — |
|
|
|
|
|
|||||||||
विस्तार |
||||||||||||||||
दक्षिण उत्तर यो. |
पूर्व पश्चिम यो. |
|||||||||||||||
विजयार्ध |
उपरोक्त |
उपरोक्त नियम |
स्वक्षेत्र वत् |
2826 |
+ उपरोक्त सामान्य नियम |
|
||||||||||
वक्षार |
जंबूद्वीपवत् |
निम्नोक्त |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2827 |
+ उपरोक्त सामान्य नियम |
|
||||||||||
गजदंत— |
|
|
|
|
|
|
|
|
||||||||
अभ्यंतर |
जंबूद्वीपवत् |
1626116 |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2813 |
|
|
257 |
|
||||||||
बाह्य |
जंबूद्वीपवत् |
2042219 |
जंबूद्वीप से चौगुना |
2814 |
|
|
257 |
|
||||||||
|
|
विस्तार |
|
|
|
|
|
|||||||||
|
|
गहराई |
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|
|
|
|
|
||||||
मानुषोत्तरपर्वत |
1721 |
चौथाई |
1022 |
723 |
424 |
2749 |
6/197/8 |
591 |
9340+942 |
11/59 |
||||||
मानुषोत्तर के कूट– |
लोक/6/4/3 में कथित नियमानुसार |
|
|
|
|
|
||||||||||
दृष्टि सं.1 |
430 |
|
430 |
|
215 |
|
|
|
|
|
||||||
दृष्टि सं.2 |
500 |
|
500 |
375 |
250 |
|
6/197/16 |
600 |
|
|
नाम |
ऊँचाई व चौड़ाई |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
|
|||||
आदिम |
मध्यम |
अंतिम |
|||||||
दोनों बाह्य विदेहों के वक्षार— |
|||||||||
चित्रकूट व देवमाल |
देखें पूर्वोक्त सामान्य नियम |
1940770 |
1941725 |
1942679 |
2846 |
त्रिलोकसार/931-933 |
|||
पद्म व वैडूर्य कूट |
1980950 |
1981904 |
1982859 |
2854 |
|||||
नलिन व नागकूट |
2021129 |
2022084 |
2023038 |
2862 |
|||||
एक शैल व चंद्रनाग |
2061309 |
2062263 |
2063218 |
2870 |
|||||
दोनों अभ्यंतर विदेहों के वक्षार— |
|||||||||
श्रद्धावान् व आत्मांजन |
देखें पूर्वोक्त सामान्य नियम |
1482057 |
1481102 |
1480148 |
2882 |
त्रिलोकसार/931-933 |
|||
अंजन व विजयावान |
1441877 |
1440923 |
1439968 |
2890 |
|||||
आशीर्विष व वैश्रवण |
1401698 |
1400743 |
1399789 |
2898 |
|||||
सुखावह व त्रिकूट |
1361519 |
1360564 |
1359609 |
2906 |
- नंदीश्वर द्वीप के पर्वत
नाम |
ऊँचाई यो. |
गहराई यो. |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/5/ गा. |
राजवार्तिक/3/35/ -/ पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
||
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|||||||
अंजनगिरि |
84000 |
1000 |
84000 |
84000 |
84000 |
58 |
198/8 |
652 |
968 |
दधिमुख |
10,000 |
1000 |
10,000 |
10,000 |
10,000 |
65 |
198/25 |
670 |
968 |
रतिकर |
1000 |
250 |
1000 |
1000 |
1000 |
68 |
198/31 |
674 |
968 |
- कुंडलवर पर्वत व उसके कूट
नाम |
ऊँचाई यो. |
गहराई यो. |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/5/ गा. |
राजवार्तिक/3/35/ -/ पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
||
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|||||||
पर्वत— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.1 |
75000 |
1000 |
10220 |
7230 |
4240 |
118 |
199/8 |
687 |
943 |
दृष्टि सं.2 |
42000 |
1000 |
— |
मानुषोत्तरवत् |
— |
130 |
|
|
|
इसके कूट |
— |
मानुषोत्तर के दृष्टि सं. 2 वत् |
— |
124,131 |
199/12 |
|
960 |
||
द्वीप के स्वामी |
— |
सर्वत्र उपरोक्त से दूने |
— |
137 |
|
697 |
|
||
देवों के कूट |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
- रुचकवर पर्वत व उसके कूट—
नाम |
ऊँचाई यो. |
गहराई यो. |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/5/ गा. |
राजवार्तिक/3/35/ -/ पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
||
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|||||||
पर्वत— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.1 |
84000 |
1000 |
84000 |
84000 |
84000 |
142 |
|
|
943 |
दृष्टि सं.2 |
84000 |
1000 |
42000 |
42000 |
42000 |
|
199/23 |
700 |
|
इसके कूट— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.1 |
— |
मानुषोत्तर की दृष्टि सं.2 वत् |
— |
146 |
|
|
960 |
||
दृष्टि सं.2 |
500 |
|
1000 |
750 |
500 |
146,171 |
200/20 |
701 |
|
32 कूट |
500 |
|
1000 |
1000 |
1000 |
|
199/25 |
|
|
- स्वयंभूरमण पर्वत
नाम |
ऊँचाई यो. |
गहराई यो. |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/5/ गा. |
राजवार्तिक/3/35/ -/ पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
||
मूल |
मध्य |
ऊपर |
|||||||
पर्वत— |
|
1000 |
|
|
|
239 |
|
|
|
- अढ़ाई द्वीप के वनखंडों का विस्तार
- जंबूद्वीप के वनखंड
नाम |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/18/13/ पृ. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
|
जंबूद्वीप जगती के अभ्यंतर भाग में |
2 को. |
87 |
|
|
|
|
|
विजयार्ध के दोनों पार्श्वों में |
2 को. |
171 |
|
|
|
|
|
हिमवान् के दोनों पार्श्वों में |
2 को. |
1630 |
|
115 |
730 |
|
|
नाम |
विस्तार |
|
|
|
|
|
|
पूर्वापर |
उत्तर दक्षिण |
||||||
देवारण्यक |
2922 यो. |
16592 यो. |
2220 |
177/2 |
282 |
|
7/15 |
भूतारण्यक |
— देवारण्यकवत् — |
|
|
|
|
|
नाम |
विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/10/13/ पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
||
मेरु के पूर्व या पश्चिम में |
मेरु के उत्तर या दक्षिण में |
उत्तर दक्षिण कुल विस्तार |
||||||
भद्रशाल |
22000 यो. |
250 यो. |
यो.विदेहक्षेत्रवत् |
2002 |
178/3 |
237 |
610+612 |
4/43 |
वलय व्यास |
बाह्य व्यास |
अभ्यंतर व्यास |
||||||
नंदनवन |
500 यो. |
9954 यो. |
8954 यो. |
1189 |
179/7 |
290 |
610 |
4/82 |
सौमनसवन |
500 यो. |
4272 यो. |
3272 यो. |
1938+1986 |
180/1 |
296 |
610 |
4/127 |
पांडुकवन |
494 यो. |
1000 यो. |
|
1810+1814 |
180/12 |
300 |
610 |
4/131 |
- धातकीखंड के वनखंड
सामान्य नियम—सर्व वन जंबूद्वीप वालों से दूने विस्तार वाले हैं। ( हरिवंशपुराण/5/509 )
नाम |
पूर्वापर विस्तार यो. |
उत्तर दक्षिण विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/33/ 6/ पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
||
आदिम यो. |
मध्यम यो. |
अंतिम यो. |
|||||
बाह्य |
5844 |
587448 |
590238 |
593027 |
2609+2660 |
|
|
अभ्यंतर |
5844 |
216746 |
213956 |
211167 |
2609+2700 |
|
|
मेरु से पूर्व या पश्चिम |
मेरु के उत्तर या दक्षिण में |
उत्तर दक्षिण कुल विस्तार |
|||||
|
107879 |
नष्ट |
1225 |
|
2528 |
|
531 |
वलयव्यास |
बाह्यव्यास |
अभ्यंतरव्यास |
|||||
नंदन |
500 |
9350 |
8350 |
|
|
195/31 |
520 |
सौमनस |
500 |
3800 |
2800 |
|
|
196/1 |
524 |
पांडुक |
494 |
1000 |
12 चूलिका |
|
|
|
527 |
- पुष्करार्ध द्वीप के वनखंड
नाम |
पूर्वापर विस्तार |
उत्तर दक्षिण विस्तार |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
||
आदिम |
मध्यम |
अंतिम |
|||
देवारण्यक— |
|
|
|
|
|
बाह्य |
11688 |
2082114 |
2087693 |
2093272 |
2828+2874 |
अभ्यंतर |
11688 |
1340713 |
1335134 |
1329555 |
2828+2910 |
मेरु से पूर्व या पश्चिम |
मेरु के उत्तर या दक्षिण में |
उत्तर दक्षिण कुल विस्तार |
|
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
|
भद्रशाल |
215758 |
नष्ट |
2451 |
|
2821 |
नंदन आदि वन |
— |
धातकीखंडवत् |
— |
(देखें लोक - 4.4,4) |
|
- नंदीश्वरद्वीप के वन
वापियों के चारों ओर वनखंड हैं, जिनका विस्तार (100,000×50,000) योजन है।
- अढ़ाई द्वीप की नदियों का विस्तार
- जंबूद्वीप की नदियाँ
- धातकीखंड की नदियाँ
- पुष्करद्वीप की नदियाँ
- मध्यलोक की वापियों व कुंडों का विस्तार
- जंबूद्वीप संबंधी—
- अन्य द्वीप संबंधी
- अढाई द्वीप के कमलों का विस्तार
नाम |
स्थल विशेष |
चौड़ाई |
गहराई |
ऊँचाई |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/22- वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
|||
नदियों के विस्तार व गहराई आदि संबंधी सामान्य नियम–भरत व ऐरावत क्षेत्र की नदियों का विस्तार प्रारंभ 6 यो. और अंत में उससे दसगुणा होता है। आगे-आगे के क्षेत्रों में विदेह पर्यंत वह प्रमाण दुगुना-दुगुना होता गया है। ( त्रिलोकसार/600 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/194 )। नदियों का विस्तार उनकी गहराई से 50 गुना होता है। ( हरिवंशपुराण/5/507 )। |
||||||||||||
वृषभाकार प्रणाली— |
||||||||||||
गंगा-सिंधु |
हिमवान् |
6 यो. |
2 को.प्रवेश |
2 को.प्रवेश |
214 |
|
140 |
584 |
3/150 |
|||
आगे के नदी युगल |
विदेह तक उत्तरोत्तर दुगुने |
|
|
|
151 |
599 |
3/152 |
|||||
|
ऐरावत तक उत्तरोत्तर आधे |
|
|
|
159 |
599 |
3/153 |
|||||
गंगा— |
उद्गम |
6 यो. |
1/2 को. |
|
197 |
|
136 |
600 |
3/194 |
|||
|
पर्वत से गिरने वाली धार |
|
|
पर्वत की ऊँचाई |
213 |
|
|
586 |
|
|||
|
दृष्टि सं.1 |
10 |
|
पर्वत की ऊँचाई |
|
|
|
|
|
|||
|
दृष्टि सं.2 |
25 |
|
पर्वत की ऊँचाई |
217 |
|
|
|
3/168 |
|||
|
गुफा द्वार पर |
8 यो. |
|
|
236 |
|
148 |
|
7/93 |
|||
|
समुद्र प्रवेश पर |
62 यो |
|
5 को. |
246 |
1/187/29 |
149 |
600 |
3/177 |
|||
सिंधु |
— गंगानदीवत् — |
252 |
2/187/32 |
151 |
600 |
3/194 |
||||||
रोहितास्या |
— गंगा से दूना — |
1696 |
3/188/9 |
151 |
599 |
3/180 |
||||||
रोहित |
— रोहितास्यावत् — |
1737 |
4/188/17 |
151 |
599 |
3/180 |
||||||
हरिकांता |
— रोहित से दुगुना — |
1748 |
5/188/21 |
151 |
599 |
3/181 |
||||||
हरित |
— हरिकांतावत् — |
1773 |
6/188/29 |
151 |
599 |
3/181 |
||||||
सीतोदा |
— हरिकांता से दूना — |
2074 |
7/188/33 |
151 |
599 |
3/182 |
||||||
सीता |
— सीतोदावत् — |
2122 |
8/189/9 |
151 |
599 |
3/182 |
||||||
उत्तर की छ: नदियाँ |
— क्रम से हरितादिवत् — |
|
9-24/189 |
159 |
|
|
||||||
विदेह की 64 नदियाँ |
— गंगानदीवत् — |
— |
(देखें लोक - 3.10) |
|
|
— |
||||||
विभंगा |
कुंड के पास |
50 को. |
16592 |
|
2218 |
|
|
605 |
|
|||
|
महानदी के पास |
500 को. |
|
|
2219 |
|
|
|
|
|||
|
दृष्टि सं.2 |
|
|
3/10/13/-176/13 |
|
|
7/27 |
नाम |
पूर्व पश्चिम |
उत्तर दक्षिण लंबाई |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
||||||
आदिम |
मध्यम |
अंतिम |
|||||||
सामान्य नियम—सर्व नदियाँ जंबूद्वीप से दुगुने विस्तार वाली हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/4/2546 ) |
|||||||||
दोनों बाह्य विदेहों की विभंगा— |
|||||||||
द्रहवती व ऊर्मिमालिनी |
सर्वत्र 250 यो. ( तिलोयपण्णत्ति/4/2608 ) |
528861 |
528980 |
529100 |
2636 |
||||
ग्रहवती व फेनमालिनी |
548390 |
548509 |
548629 |
2644 |
|||||
गंभीरमालिनी व पंकावती |
567919 |
568038 |
568158 |
2652 |
|||||
दोनों अभ्यंतर विदेहों की विभंगा— |
|||||||||
क्षीरोदा व उन्मत्तजला |
सर्वत्र 250 यो. ( तिलोयपण्णत्ति/4/2608 ) |
275333 |
275214 |
275094 |
2676 |
||||
मत्तजला व सीतोदा |
255804 |
255685 |
255565 |
2684 |
|||||
तप्तजला व औषधवाहिनी |
236275 |
236156 |
236036 |
2692 |
नाम |
उत्तर दक्षिण लंबाई |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
|||||
आदिम |
मध्यम |
अंतिम |
|||||
सामान्य नियम—सर्व नदियाँ जंबूद्वीप वाली से चौगुने विस्तार युक्त है। ( तिलोयपण्णत्ति/4/2788 ) |
|||||||
दोनों बाह्य विदेहों की विभंगा— |
|||||||
द्रहवती व ऊर्मिमालिनी |
1961576 |
1961815 |
1962053 |
2850 |
|||
ग्रहवती व फेनमालिनी |
2001755 |
2001994 |
2002233 |
2858 |
|||
गंभीरमालिनी व पंकावती |
2041935 |
2042174 |
2042412 |
2866 |
|||
दोनों अभ्यंतर विदेहों की विभंगा— |
|||||||
क्षीरोदा व उन्मत्तजला |
1461251 |
1461013 |
1460774 |
2886 |
|||
मत्तजला व सीतोदा |
1421072 |
1420833 |
1420595 |
2894 |
|||
तप्तजला व अंतर्वाहिनी |
1380892 |
1380654 |
1380415 |
2902 |
नाम |
लंबाई |
चौड़ाई |
गहराई |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/ सू./ वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
||||
सामान्य नियम—सरोवरों का विस्तार अपनी गहराई से 50 गुना है ( हरिवंशपुराण/5/507 ) द्रहों की लंबाई अपने-अपने पर्वतों की ऊँचाई से 10 गुनी है, चौड़ाई 5 गुनी और गहराई दसवें भाग है। ( त्रिलोकसार/568 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/71 ) |
||||||||||||
जंबूद्वीप जगती के मूलावाली— |
||||||||||||
उत्कृष्ट |
200 ध. |
100 ध. |
20 ध. |
23 |
|
|
|
|
||||
मध्यम |
150 ध. |
75 ध. |
15 ध. |
23 |
|
|
|
|
||||
जघन्य |
100 ध. |
50 ध. |
10 ध. |
23 |
|
|
|
|
||||
पद्मद्रह |
1000 ध. |
500 ध. |
10 |
1658 |
( तत्त्वार्थसूत्र/3/15-16 ) |
126 |
|
|
||||
महापद्म |
— पद्म से दुगुना — |
1727 |
|
129 |
|
|
||||||
तिगिंच्छ |
— पद्म से चौगुना — |
1761 |
|
129 |
देखें उपरोक्त सामान्य नियम |
देखें उपरोक्त सामान्य नियम |
||||||
केसरी |
— तिगिंछवत् — |
2323 |
|
129 |
||||||||
पुंडरीक |
— महापद्मवत् — |
2344 |
|
129 |
||||||||
महापुंडरीक |
— पद्मवत् — |
2355 |
|
129 |
||||||||
देवकुरु के द्रह |
— पद्मद्रहवत् — |
2090 |
10/13/174/30 |
195 |
656 |
6/57 |
||||||
उत्तरकुरु के द्रह |
— देवकुरुवत् — |
2126 |
|
|
|
|
||||||
नंदनवन की वापियाँ |
50 यो. |
25 यो. |
10 यो. |
|
|
|
|
|
||||
सौमनसवन की वापियाँ |
|
|
|
|
|
|
|
|
||||
दृष्टि सं.1 |
25 यो. |
25 यो. |
5 यो. |
1947 |
|
|
|
|
||||
दृष्टि सं.2 |
— |
नंदनवत् |
— |
|
10/13/180/7 |
|
|
|
||||
गंगा कुंड— |
गोलाई का व्यास |
गहराई |
|
|
|
|
|
|||||
दृष्टि सं.1 |
10 यो. |
10 यो. |
216+221 |
|
|
|
|
|||||
दृष्टि सं.2 |
60 यो. |
10 यो. |
218 |
22/1/187/25 |
142 |
587 |
|
|||||
दृष्टि सं.3 |
62 यो. |
10 |
219 |
|
|
|
|
|||||
सिंधुकुंड |
— गंगाकुंडवत् — |
|
22/5/187/32 |
|
|
|
||||||
आगे सीतासीतोदा तक |
— उत्तरोत्तर दुगुना — |
|
22/3-8/189 |
|
|
|
||||||
आगे रक्तारक्तोदा तक |
— उत्तरोत्तर आधा — |
|
22/9-14/189 |
|
|
|
||||||
32 विदेहों की नदियों के कुंड |
63 यो. |
10 यो. |
|
10/13/176/24 |
|
|
|
|||||
विभंगा के कुंड |
120 यो. |
10 यो. |
|
10/13/176/10 |
|
|
|
नाम |
लंबाई |
चौड़ाई |
गहराई |
तिलोयपण्णत्ति/5/ गा. |
राजवार्तिक/3/ सू./ वा./पृ./पं. |
हरिवंशपुराण/5/ गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
धातकीखंड के पद्म आदि द्रह |
— जंबूद्वीप से दूने — |
|
33/5/195/23 |
|
|
|
||
नंदीश्वरद्वीप की वापियाँ |
100,000 |
100,000 |
1000 |
60 |
35/-/198/11 |
657 |
971 |
|
नाम |
ऊँचाई या विस्तार |
कमल सामान्य को. |
नाल को. |
मृणाल को. |
पत्ता को. |
कणिका को. |
तिलोयपण्णत्ति/4/ गा. |
राजवार्तिक/3/ 17/-/185/ पंक्ति |
हरिवंशपुराण/5 / गा. |
त्रिलोकसार/ गा. |
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ अ./गा. |
पद्म द्रह का |
ऊँचाई— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
मूल कमल |
दृष्टि सं.1 |
4 |
*42 |
|
|
1 |
1667 |
|
128 |
570-571 |
6/74 |
|
दृष्टि सं.2 |
|
|
|
2 |
2 |
1670 |
8,9 |
|
|
|
|
विस्तार— |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
दृष्टि सं.1 |
4 या 2 |
1 |
3 |
× |
1 |
1667 1669 |
|
|
570-571 |
|
|
दृष्टि सं.2 |
4 |
1 |
3 |
1 |
2 |
1667+1670 |
8 |
128 |
|
3/74 |
नोट—*जल के भीतर 10 योजन या 40 कोस तथा ऊपर दो कोस ( राजवार्तिक/-/185/9 ); ( हरिवंशपुराण/5/128 ); ( त्रिलोकसार/571 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/3/74 ) |
|||||||||||
परिवार कमल |
— सर्वत्र उपरोक्त से आधा — |
|
16 |
|
|
|
|||||
आगे तिगिंछ द्रह तक |
— उत्तरोत्तर दूना — |
|
तत्त्वार्थसूत्र/3/18 |
|
|
3/127 |
|||||
केसरी आदि द्रह के |
— तिगिंछ आदि वत् — |
|
तत्त्वार्थसूत्र/3/26 |
|
|
|
|||||
हिमवान् पर |
ऊँचाई |
1 जल के ऊपर |
|
|
|
1 |
206 |
22/2/188/3 |
|
|
3/74 |
कमलाकार कूट |
विस्तार |
2 |
|
|
1/2 |
1 |
254 |
|
|
|
|
धातकीखंड के |
|
— जंबूद्वीप वालों से दूने — ( राजवार्तिक/3/33/5/195/23 ) |
|
|
|