असद्भाव स्थापना
From जैनकोष
स्थापना निक्षेप के दो भेदों में से एक असद्भाव स्थापना है।
श्लोकवार्तिक 2/1/5/54/263/17 मुख्याकारशून्या वस्तुमात्रा पुनरसद्भावस्थापना परोपदेशादेव तत्र सोऽयमिति सप्रत्ययात् । = मुख्य आकारों से शून्य केवल वस्तु में ‘यह वही है’ ऐसी स्थापना कर लेना असद्भाव स्थापना है; क्योंकि मुख्य पदार्थ को देखने वाले भी जीव को दूसरों के उपदेश से ही ‘यह वही है’ ऐसा समीचीन ज्ञान होता है, परोपदेश के बिना नहीं। ( धवला 1/1,1,1/20/1 ), ( नयचक्र बृहद्/273 )
निक्षेप के सम्बन्ध में विशेष जानकारी हेतु देखें निक्षेप_4