अस्ति नास्ति भंग
From जैनकोष
स्याद्वादमंजरी/24/289/12 अमीषामेव त्रयाणां (अस्ति नास्ति अवक्तव्यानां) मुख्यत्वाच्छेषभंगानां च संयोगजत्वेनामीष्वेवांतर्भावादिति।
=क्योंकि आदि के (अस्ति, नास्ति व अवक्तव्य ये) तीन भंग ही मुख्य भंग हैं, शेष भंग इन्हीं तीनों के संयोग से बनते हैं, अतएव उनका इन्हीं में अंतर्भाव हो जाता है।
सप्तभंगीतरंगिणी/75/6 इत्येवं मूलभंगद्वये सिद्धे उत्तरे च भंगा एवमेव योजयितव्या:। =इस रीति से मूलभूत (अस्ति-नास्ति) दो भंग की सिद्धि होने से उत्तर भंगों की योजना करनी चाहिए।
देखें सप्तभंगी - 4।