आसन्न भव्य
From जैनकोष
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/62 ये पुनरिदंमिदानीमेव वचः प्रतीच्छंति ते शिवश्रियो भाजनं समासन्नभव्याः भवंति। ये तु पुरा प्रतीच्छंति ते दूरभव्या इति। = जो उस (केवली भगवान् का सुख सर्व सुखो में उत्कृष्ट है) वचन को इसी समय स्वीकार (श्रद्धा) करते हैं वे शिवश्री के भाजन आसन्न भव्य हैं। और जो आगे जाकर स्वीकार करेंगे वे दूर भव्य हैं।
गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/704/1144/2 जे थोरे काल में मुक्त होते होइ ते आसन्न भव्य हैं। जे बहुत काल में मुक्त होते होइ ते दूर भव्य हैं।
देखें भव्य 1.4।