आसन्न मरण
From जैनकोष
(भगवती आराधना / विजयोदया टीका/25/88/12)
निर्वाणमार्गप्रस्थितात्संयतसार्थाद्योहीन: प्रच्युत: सोऽभिधीयते ओसण्ण इति। तस्य मरणमोसण्णमरणमिति। ओसण्णग्रहणेन पार्श्वस्था:, स्वच्छंदा:, कुशीला:, संसक्ताश्च गृह्यंते।
मोक्षमार्ग में स्थित मुनियों का संघ जिसने छोड़ दिया है ऐसे पार्श्वस्थ, स्वच्छंद, कुशील व संसक्त साधु अवसन्न कहलाते हैं। उनका मरण अवसन्नमरण है।
-अधिक जानकारी के लिए देखें मरण - 1.5।