हृदयधर्मा
From जैनकोष
सुग्रीव की तीसरी पुत्री । यह और इसकी बड़ी बहिन हृदयावली दोनों राम के गुणों को सुनकर स्वयं वरण की इच्छा से उनके पास आयी थी । (पद्मपुराण 47.136-137)
सुग्रीव की तीसरी पुत्री । यह और इसकी बड़ी बहिन हृदयावली दोनों राम के गुणों को सुनकर स्वयं वरण की इच्छा से उनके पास आयी थी । (पद्मपुराण 47.136-137)