बलभद्र
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
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- सुमेरु संबंधी नंदन वन में स्थित एक प्रधान कूट व उसका स्वामी देव । अपरनाम मणिभद्र है । - देखें जंबूद्वीप_निर्देश - 3.6.4 ।
- सनत्कुमार स्वर्ग का छठा पटल व इंद्रक - देखें स्वर्ग - 5.3 ।
पुराणकोष से
(1) सनत्कुमार और माहेंद्र स्वर्ग के इंद्र का विमान । महापुराण 76.199, हरिवंशपुराण 6.48
(2) नारायण के भ्राता । नियम से तद्भव मोक्षगामी पुरुष । ये नौ होते हैं― देखें बल । इनमें विजय आदि पाँच बलभद्र श्रेयांसनाथ से धर्मनाथ तीर्थंकर के अंतराल में हुए है । आरंभिक आठ बलभद्र मोक्ष गये और नवें बलभद्र ब्रह्म स्वर्ग । नियम से ये सभी ऊर्ध्वगामी स्वर्ग अथवा मोक्षगामी होते हैं, भवांतर में कोई निदान नहीं बाँधते । हरिवंशपुराण 60. 293-303 इन बलभद्रों में सुधर्म को धर्म तथा नांदी को नंदिषेण नाम से भी संबोधित किया गया है । महापुराण 59.271, 65.174 नामों में अंतर के साथ क्रम में भी अंतर प्राप्त होता है । पद्मपुराण में वे निम्न क्रम में मिलते हैं― अचल, विजय भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, नंदिमित्र, नंदिषेण, पद्म और बल । पद्मपुराण - 5.225-226,पद्मपुराण - 20.242 टिप्पणी । पूर्व जन्म संबंधी इनके नगर क्रमश: ये थे― पुंडरीकिणी, पृथिवीसुंदरी, आनंदपुरी, नंदपुरी, वीतशोका, विजयपुर, सुसीमा, क्षेमा और हस्तिनापुर । पूर्वजन्म के नाम क्रमश-बल, मारुतवेग, नंदिमित्र, महाबल, पुरुषर्षभ, सुदर्शन, वसुंधर, श्रीचंद्र और शंख । गुरु जिनसे पूर्वजन्म में ये दीक्षित हुए― अमृतार, महासुव्रत, सुव्रत, वृषभ, प्रजापाल, दमवर, सुधर्म, अर्णव और विद्रुम । स्वर्गों के नाम जहाँ से अवतरित हुए—तीन सहस्रार स्वर्ग से, तीन अनुत्तर विमान से, दो ब्रह्म स्वर्ग से और एक महाशुक्र स्वर्ग से । पूर्वजन्म की माताएँ-भद्रांभोजा, सुभद्रा, सुवेषा, सुदर्शना, सुप्रभा, विजया, वैजयंती, अपराजिता और रोहिणी । पद्मपुराण 20. 229-239 उत्सर्पिणीकाल में निम्न बलभद्र होंगे― चंद्र, महाचंद्र, चंद्रधर, सिंहचंद्र, हरिश्चंद्र, श्रीचंद्र, पूर्णचंद्र, सुचंद्र और बालचंद्र । हरिवंशपुराण 50. 96-566-569 इन बलभद्रों के नाम एवं कम परिवर्तित रूप में भी मिलते हैं जैसे― चंद्र, महाचंद्र, चक्रधर, हरिचंद्र, सिंहचंद्र, वरचंद्र, पूर्णचंद्र, सुचंद्र और श्रीचंद्र । महापुराण 76.485-486 बलभद्रों को राम भी कहते हैं । महापुराण 76.495, पद्मपुराण - 20.231,[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_123#15|पद्मपुराण - 123.15-]1
(3) अनागत सातवां नारायण । हरिवंशपुराण 60. 566