स्थित द्रव्य निक्षेप
From जैनकोष
धवला 9/4,1,54/251/10 अवधृतमात्रं स्थितम्, जो पुरिसो भावागमम्मि वुड्ढओ गिलाणो व्व सणिं सणिं संचरदि सो तारिससंसकारजुत्तो पुरिसो तब्भावागमो च स्थित्वा वृत्ते: ट्ठिदं णाम। अवधारण किये हुए मात्र का नाम स्थितआगम है। अर्थात् जो पुरुष भावआगम में वृद्ध व व्याधिपीड़ित मनुष्य के समान धीरे-धीरे संचार करता है वह उस प्रकार के संस्कार से युक्त पुरुष और वह भावागम भी स्थित होकर प्रवृत्ति करने से अर्थात् रुक-रुककर चलने से स्थित कहलाता है।
अधिक जानकारी के लिए - देखें निक्षेप - 5.8। पूर्व पृष्ठ अगला पृष्ठ