आनंद
From जैनकोष
१. भगवान् वीरके तीर्थमें अनुत्तरोपपादक हुए..दे. अनुत्तरोपपादक; २. विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर - दे. विद्याधर; ३. विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर - दे. विद्याधर; ४. गन्धमादन विजयार्धपर स्थित एक कूट व उसका रक्षक देव - दे. लोक। ५/४; ५. म.प्र.७३/श्लोक अयोध्यानगरके राजा वज्रबाहुका पुत्र था (४१-४२) दीक्षा धारण कर ११ अंगोंके अध्ययनपूर्वक तीर्थँकर प्रकृतिका बन्ध किया। संन्यासके समय पूर्वके आठवें भवके बैरी भाई कमठने सिंह बनकर इनको भख लिया। इन्होंने फिर प्राणतेन्द्र पद पाया (६१-६८) यह पार्श्वनाथ भगवानका पूर्वका तीसरा भव है - दे. पार्श्वनाथ; ६. परमानन्दके अपर नाम - दे. मोक्षमार्ग २/५।