काव्य
From जैनकोष
कवि का भाव अथवा कर्म काव्य कहलाता है । धर्म-तत्त्व का प्रतिपादन ही काव्य का प्रयोजन है । काव्य में अनुकरण और मौलिकता का सुन्दर समन्वय होता है विशाल शब्दराशि, स्वाधीन अर्थ, संवेद्य रस, उत्तमोत्तम छन्द और सहज प्रतिभा तथा उदारता काव्य-रचना के सहायक तत्त्व हैं । प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास काव्य-सूजन के हेतु हैं । काव्यगत सौन्दर्य शैली पर निर्भर करता है । महापुराण 1. 62-111