योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 78
From जैनकोष
कोई किसी का कभी कोई कार्य करता ही नहीं -
पदार्थानां निमग्नानां स्वरूपं परमार्थत: ।
करोति कोsपि कस्यापि न किंचन कदाचन ।।७७।।
अन्वय :- परमार्थत: स्वरूपं निमग्नानां पदार्थानां क: अपि कस्य अपि कदाचन किंचन (अपि) न करोति ।
सरलार्थ :- सर्व पदार्थ अपने-अपने स्वभाव में मग्न/लीन हैं; इसकारण निश्चयनय से कोई पदार्थ किसी अन्य पदार्थ का कुछ भी कार्य कभी भी नहीं कर सकता ।