पत्तन
From जैनकोष
ति. प./४/१३९९ वररयणाणं जोणीपट्टणणामं विणिद्दिट्ठं। = जो उत्तम रत्नों की योनि होती है उसका नाम पट्टन कहा गया है। । १३९९। (त्रि. सा./भाषा./६७६)।
ध. १३/५,५,६३/३३५/९ नावा पादप्रचारेण च यत्र गमनं तत्पत्तनं नाम। = नौका के द्वारा और पैरों से चलकर जहाँ जाते हैं, उस नगर की पत्तन संज्ञा है।