पण्हसवण
From जैनकोष
धरसेनाचार्य का ही दूसरा नाम पण्हसवण भी है, क्योंकि ‘प्रज्ञाश्रमण’ का प्राकृत रूप ‘पण्हसवण’ है। यह एक ऋद्धि है, जो सम्भवतः धरसेनाचार्य को थी, जिसके कारण उन्हें भी कदाचित् ‘पण्हसवण’ के नाम से पुकारा गया है। वि० १५५६ में लिखी गयी बृहट्टिप्पणिका नाम की ग्रन्थ सूची में जो ‘योनि प्राभृत’ ग्रन्थ का कर्ता ‘पण्हसवण’ को बताया है, वह वास्तव में धरसेनाचार्य की ही कृति थी। क्योंकि सूची में उसे भूतबलि के लिए लिखा गया सूचित किया गया है। (ष. खं.१/प्र.३०/H.L.) दे०-धरसेन।