मधुकर
From जैनकोष
एक कीट-भ्रमर । यह मकरन्द के रस में इतना आसक्त हो जाता है कि उसे सूर्य कब अस्त हो गया यह ज्ञात नहीं हो पाता । रात्रि आरम्भ होते ही कमल संकुचित हो जाते हैं और यह उसमें बन्द होकर मर जाता है । इसका अपर नाम द्विरेफ है । पद्मपुराण 5.305-307