राक्षस
From जैनकोष
- व्यन्तर देवों का एक भेद−देखें - व्यन्तर ।
- पिशाच जातीय व्यन्तर देवों का एक भेद−देखें - पिशाच ।
- मनोवेग विद्याधर का पुत्र था (प. पु./५/३७८) इसी के नाम पर राक्षस द्वीप में रहने वाले विद्याधरों का वंश राक्षस वंश कहलाने लगा ।− देखें - इतिहास / १० / १२ ।
- राक्षस का लक्षण
ध. १३/५, ५, १४०/३९१/१० भीषणरूपविकरणप्रियाः राक्षसा नाम । = जिन्हें भीषण रूप की विक्रिया करना प्रिय है, वे राक्षस कहलाते हैं ।
- राक्षस देव के भेद
ति. पं./६/४४ भीममहाभीमविग्घविणायका उदकरक्खसा तह य । रक्खसरक्खसणामा सत्तमया बम्हरक्खसया ।४४। = भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षसराक्षस और सातवाँ ब्रह्मराक्षस इस प्रकार ये सात भेद राक्षस देवों के हैं ।४४। (त्रि. सा./२६७) ।
- राक्षस देवों के वर्ण वैभव अवस्थान आदि−देखें - व्यंतर ।