सूक्ष्म
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
जो किसी द्वारा स्वयं बाधित न हों और न दूसरों को ही कोई बाधा पहुँचायें, वे पदार्थ या जीव सूक्ष्म हैं और इनसे विपरीत स्थूल या बादर। इन्द्रियग्राह्य पदार्थ को स्थूल और इन्द्रिय अग्राह्य को सूक्ष्म कहना व्यवहार है परमार्थ नहीं। सूक्ष्म व बादरपने में न अवगाहना की हीनाधिकता कारण है न प्रदेशों की, बल्कि नामकर्म ही कारण है। सूक्ष्म स्कन्ध व जीव लोक में सर्वत्र भरे हुए हैं, पर स्थूल आधार के बिना नहीं रह सकने के कारण त्रस नाली के यथायोग्य स्थानों में ही पाये जाते हैं।
सूक्ष्म के भेद व लक्षण
* सूक्ष्म जीवों का निर्देश-देखें इन्द्रिय , काय, समास।
1. सूक्ष्म सामान्य का लक्षण
1. बाधा रहित
स.सि./5/15/280/12/न ते परस्परेण बादरैश्च व्याहन्यन्त इति। = वे (सूक्ष्म जीव) परस्पर में और बादरों के साथ व्याघात को नहीं प्राप्त होते हैं। (रा.वा./5/15/5/458/11)।
ध.3/1,2,87/331/2 अण्णेहि पोग्गलेहिं अपडिहम्ममाणसरीरो जीवो सुहुमो त्ति घेत्तव्वं। = जिनका शरीर अन्य पुद्गलों से प्रतिघात रहित है वे सूक्ष्म जीव हैं, यह अर्थ यहाँ पर सूक्ष्म शब्द से लेना।
ध.13/5,3,22/23/12 पविसंतपरमाणुस्स परमाणू पडिबंधदि, सुहुमस्स सुहुमेण बादरक्खंधेण वा पडिबंधकरणाणुववत्तीदो। = प्रवेश करने वाले परमाणु को दूसरा परमाणु प्रतिबन्ध नहीं करता है, क्योंकि सूक्ष्म का दूसरे सूक्ष्म स्कन्ध के द्वारा या बादर के द्वारा प्रतिबन्ध करने का कोई कारण नहीं पाया जाता है।
का.अ./मू./127 ण य तेसिं जेसिं पडिखलणं पुढवी तोएहिं अग्गिवाएहिं। ते जाण सुहुम-काया इयरा पुण थूलकाया य।127। = जिन जीवों का पृथ्वी से, जल से, आग से और वायु से प्रतिघात नहीं होता, उन्हें सूक्ष्मकायिक जानो।127।
गो.जी./जी.प्र./184/419/14 आधारानपेक्षितशरीरा: जीवा: सूक्ष्मा भवन्ति। जलस्थलरूपाधारेण तेषां शरीरगतिप्रतिघातो नास्ति। अत्यन्तसूक्ष्मपरिणामत्वात्ते जीवा: सूक्ष्मा भवन्ति। =आधार की अपेक्षा रहित जिनका शरीर है वे सूक्ष्म जीव हैं। जिनकी गति का जल, स्थल आधारों के द्वारा प्रतिघात नहीं होता है। और अत्यन्त सूक्ष्म परिणमन के कारण वे जीव सूक्ष्म कहे हैं।
2. इन्द्रिय अग्राह्य
स.सि./5/28/299/9 सूक्ष्मपरिणामस्य स्कन्धस्य भेदौ सौक्ष्म्यापरित्यागादचाक्षुषत्वमेव। = सूक्ष्म परिणामवाले स्कन्ध का भेद होने पर वह अपनी सूक्ष्मता को नहीं छोड़ता, इसलिए उसमें अचाक्षुषपना ही रहता है। (रा.वा./5/28/-/494/17)
रा.वा./5/24/1/485/11 लिङ्गेन आत्मानं सूचयति, सूच्यतेऽसौ, सूच्यतेऽनेन, सूचनमात्रं वा सूक्ष्म: सूक्ष्मस्य भाव: कर्म वा सौक्ष्म्यम् । =जो लिंग के द्वारा अपने स्वरूप को सूचित करता है या जिसके द्वारा सूचित किया जाता है या सूचन मात्र है, वह सूक्ष्म है। सूक्ष्म के भाव वा कर्म को सौक्ष्म्य कहते हैं।
प्र.सा./ता.वृ./168/230/13 इन्द्रियाग्रहणयोग्यै: सूक्ष्मै:। =जो इन्द्रियों के ग्रहण के अयोग्य हैं वे सूक्ष्म हैं।
पं.ध./उ./483 अस्ति सूक्ष्मत्वमेतेषां लिङ्गस्याक्षैरदर्शनात् ।483। =इसके साधक साधन का इन्द्रियों के द्वारा दर्शन नहीं होता, इसलिए इनमें (धर्मादि में) सूक्ष्मपना है।
3. सूक्ष्म दूरस्थ में सूक्ष्म का लक्षण
ध.13/5,5,59/313/3 किमेत्थ सुहुमत्तं ? दुगेज्झतं। = प्रश्न-यहाँ सूक्ष्म शब्द का क्या अर्थ है ? उत्तर-जिसका ग्रहण कठिन हो वह सूक्ष्म कहलाता है।
द्र.सं./टी./50/213/11/परचेतोवृत्तय: परमाण्वादयश्च सूक्ष्मपदार्था:। = पर पुरुषों के चित्तों के विकल्प और परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थ...।
न्या.दी./2/22/41/10 सूक्ष्मा: स्वभावविप्रकृष्टा: परमाण्वादय:। = सूक्ष्म पदार्थ वे हैं जो स्वभाव से विप्रकृष्ट हैं-दूर हैं जैसे परमाणु आदि।
रहस्यपूर्ण चिट्ठी/513 जो आप भी न जानै केवली भगवान् ही जानै सो ऐसे भाव का कथन सूक्ष्म जानना।
2. सूक्ष्म के भेद व उनके लक्षण
स.सि./5/24/295/10 सौक्ष्म्यं द्विविधं, अन्त्यमापेक्षिकं च। तत्रान्त्यं परमाणूनाम् । आपेक्षिकं विल्वामलकबदरादीनाम् । = सूक्ष्मता के दो भेद हैं-अन्त्य और आपेक्षिक। परमाणुओं में अन्त्य सूक्ष्मत्व है। तथा बेल, आँवला, और बेर आदि में आपेक्षिक सूक्ष्मत्व है। (रा.वा./5/24/10/488/30)
3. सूक्ष्म नामकर्म का लक्षण
स.सि./8/11/392/1 सूक्ष्मशरीर निर्वर्तकं सूक्ष्मनाम। = सूक्ष्म शरीर का निर्वर्तक कर्म सूक्ष्म नामकर्म है।
रा.वा./8/11/29/579/7 यदुदयादन्यजीवानुपग्रहोपघातायोग्यसूक्ष्मशरीरनिर्वृत्तिर्भवति तत्सूक्ष्मनाम। =जिसके उदय से अन्य जीवों के अनुग्रह या उपघात के अयोग्य सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति हो वह सूक्ष्म है। (गो.जी./जी.प्र./33/30/13)
ध.6/1,9-1,28/62/1 जस्स कम्मस्स उदएण जीवो सुहुमत्तं पडिवज्जदि तस्स कम्मस्स सुहुममिदि सण्णा। =जिस कर्म के उदय से जीव (एकेन्द्रिय ध.13) सूक्ष्मता को प्राप्त होता है उस कर्म की यह सूक्ष्म संज्ञा है।
4. सिद्धों के सूक्ष्मत्व गुण का लक्षण
द्र.सं./टी./14/42/12 सूक्ष्मातीन्द्रियकेवलज्ञानविषयत्वात्सिद्धस्वरूपस्य सूक्ष्मत्वं भण्यते। = सूक्ष्म अतीन्द्रिय केवलज्ञान का विषय होने के कारण सिद्धों के स्वरूप को अतीन्द्रिय कहा है।
प.प्र./टी./1/61/62/2 अतीन्द्रियज्ञानविषयं सूक्ष्मत्वम् । = अतीन्द्रिय ज्ञान का विषय होने से सूक्ष्मत्व है।
बादर के भेद व लक्षण
* बादर जीवों का निर्देश-देखें इन्द्रिय , काय, समास।
1. बादर व स्थूल सामान्य का लक्षण
1. सप्रतिघात
स.सि./5/15/280/10 बादरास्तावत्सप्रतिघातशरीरा:। बादर जीवों का शरीर तो प्रतिघात सहित होता है। (रा.वा./5/15/5/458/10)
ध.1/1,1,45/276/7 बादर: स्थूल: सप्रतिघात: कायो येषां ते बादरकाया:। = जिन जीवों का शरीर बादर, स्थूल अर्थात् प्रतिघात सहित होता है उन्हें बादरकाय कहते हैं।
ध.3/1,2,87/331/1 तदो पडिहम्ममाणसरीरो बादरो। = जिनका शरीर प्रतिघात युक्त है वे बादर हैं।
गो.जी./मू./183...घादसरीरं थूलं। = जो दूसरों को रोके, तथा दूसरों से स्वयं रुके सो स्थूल कहलाता है।
2. इन्द्रिय ग्राह्य
स.सि./5/28/299/10 सौक्ष्म्यपरिणामोपरमे स्थौल्योत्पत्तौ चाक्षुषो भवति। = (सूक्ष्म स्कन्ध में से) सूक्ष्मपना निकलकर स्थूलपने की उत्पत्ति हो जाती है और इसलिए वह चाक्षुष हो जाता है।
रा.वा./5/24/1/485/12 स्थूलयते परिबृंहयति, स्थूल्यतेऽसौ स्थूलतेऽनेन, स्थूलनमात्रं वा स्थूल:। स्थूलस्य भाव: कर्म वा स्थौल्यम् । = जो स्थूल होता है, बढ़ता है या जिसके द्वारा स्थूल होता है या स्थूलन मात्र को स्थूल कहते हैं। स्थूल का भाव या कर्म स्थौल्य है।
प्र.सा./ता.वृ./268/230/14 तद्ग्रहणयोग्यैर्बादरै:। = जो इन्द्रियों के ग्रहण के योग्य होते हैं वे बादर होते हैं।
3. स्थूल के भेद व उनके लक्षण
स.सि./5/24/295/13 स्थौल्यमिदि द्विविधमन्त्यमापेक्षिकं चेति। तत्रान्त्यं जगद्व्यापिनि महास्कन्धे। आपेक्षिकं बादरामलकविल्वतालादिषु। = स्थौल्य भी दो प्रकार का है-अन्त्य और आपेक्षिक। जगव्यापी महास्कन्ध में अन्त्य स्थौल्य है। तथा बेर, आँवला, और बेल ताल आदि में आपेक्षिक स्थौल्य है। (रा.वा./5/24/11/488/33)।
4. बादर नामकर्म का लक्षण
स.सि./8/11/392/2 अन्यबाधाकरशरीरकारणं बादरनाम। = अन्य बाधाकर शरीर का निर्वर्तक कर्म बादर नामकर्म है। (रा.वा./8/11/30/579/10); (गो.क./जी.प्र./33/30/13)।
ध.6/1,9-1,28/61/8 जस्स कम्मस्स उदएण जीवो बादरेसु उप्पज्जदि तस्स कम्मस्स बादरमिदि सण्णा। = जिस कर्म के उदय से जीव बादर काय वालों में उत्पन्न होता है। उस कर्म की 'बादर' यह संज्ञा है। (ध.13/5,5,101/365/6)।
5. बादर कथन का लक्षण
रहस्य पूर्ण चिट्ठी। अपने तथा अन्य के जानने में आ सके ऐसे भाव का कथन स्थूल है।
सूक्ष्मत्व व बादरत्व निर्देश
1. सूक्ष्म व बादर में प्रतिघात सम्बन्धी विचार
स.सि./2/40/193/9 स नास्त्यनयोरित्यप्रतिघाते: सूक्ष्मपरिणामात् । अय:पिण्डे तेजोऽनुप्रवेशवत्तैजसकार्मणयोर्नास्ति वज्रपटलादिषु व्याघात:। = इन दोनों (कार्मण व तैजस) शरीरों का इस प्रकार का प्रतिघात नहीं होता इसलिए वे प्रतिघात रहित हैं। जिस प्रकार सूक्ष्म होने से अग्नि (लोहे के गोले में) प्रवेश कर जाती है उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीर का वज्रपटलादिक में भी व्याघात नहीं होता। (रा.वा./2/40/149/6)।
रा.वा./5/15/5/458/14 कथं सशरीरस्यात्मनोऽप्रतिघातत्वमिति चेत् दृष्टत्वात् । दृश्यते हि बालाग्रकोटिमात्रछिद्ररहिते घनबहलायसभित्तितले वज्रमयकपाटे बहि: समन्तात् वज्रलेपलिप्ते अपवरके देवदत्तस्य मृतस्य मूर्तिमज्ज्ञानावरणादिकर्मतैजसकार्मणशरीरसंबन्धित्वेऽपि गृहमभित्वैव निर्गमनम्, तथा सूक्ष्मनिगोदानामप्यप्रतिघातित्वं वेदितव्यम् । = प्रश्न-शरीर सहित आत्मा के अप्रतिघातपना कैसे है ? उत्तर-यह बात अनुभव सिद्ध है। निश्छिद्र लोहे के मकान से, जिसमें वज्र के किवाड़ लगे हों और वज्रलेप भी जिसमें किया गया हो, मर कर जीव कार्मणशरीर के साथ निकल जाता है। यह कार्मण शरीर मूर्तिमान् ज्ञानावरणादि कर्मों का पिण्ड है। तैजस् शरीर भी इसके साथ सदा रहता है। मरण काल में इन दोनों शरीरों के साथ जीव वज्रमय कमरे से निकल जाता है। और कमरे में छेद नहीं होता। इस तरह सूक्ष्म निगोद जीवों का शरीर भी अप्रतिघाती है।
2. सूक्ष्म व बादर में चाक्षुषत्व सम्बन्धी विचार
ध.1/1,1,34/249-250/6 बादरशब्द: स्थूलपर्याय: स्थूलत्वं चानियतम्, ततो न ज्ञायते के स्थूला इति। चक्षुर्ग्राह्याश्चेन्न, अचक्षुर्ग्राह्याणां स्थूलानां सूक्ष्मतोपपत्ते:। अचक्षुर्ग्राह्याणामपि बादरत्वे सूक्ष्मबादराणामविशेष: स्यादिति।249। स्थूलाश्च भवन्ति चक्षुर्ग्राह्याश्च न भवन्ति, को विरोध: स्यात् । = प्रश्न-जो चक्षु इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण करने योग्य हैं, वे स्थूल हैं। यदि ऐसा कहा जावे सो भी नहीं बनता है, क्योंकि, ऐसा मानने पर, जो स्थूल जीव चक्षु इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं हैं उन्हें सूक्ष्मपने की प्राप्ति हो जायेगी। और जिनका चक्षु इन्द्रिय से ग्रहण नहीं हो सकता है ऐसे जीवों को बादर मान लेने पर सूक्ष्म और बादरों में कोई भेद नहीं रह जाता ? उत्तर-ऐसा नहीं है, क्योंकि स्थूल तो हों और चक्षु से ग्रहण करने योग्य न हों, इस कथन में क्या विरोध है ? (अर्थात् कुछ नहीं)।
3. सूक्ष्म व बादर में अवगाहना सम्बन्धी विचार
ध.1/1,1,34/250-251/4 सूक्ष्मजीवशरीरादसंख्येयगुणं शरीरं बादरम्, तद्वन्तो जीवाश्च बादरा:। ततोऽसंख्येयगुणहीनं शरीरं सूक्ष्मम्, तद्वन्तो जीवाश्च सूक्ष्मा उपचारादित्यपि कल्पना न साध्वी, सर्वजघन्यबादराङ्गात्सूक्ष्मकर्मनिर्वर्तितस्य सूक्ष्मशरीरस्यासंख्येयगुणत्वतोऽनेकान्तात् ।250। तस्मात् (सूक्ष्मात्) अप्यसंख्येयगुणहीनस्य बादरकर्मनिर्वर्तितस्य शरीरस्योपलम्भात् । = प्रश्न-सूक्ष्म शरीर से असंख्यात गुणी अधिक अवगाहना वाले शरीर को बादर कहते हैं, और उस शरीर से असंख्यात गुणी हीन अवगाहना वाले शरीर को सूक्ष्म कहते हैं और उस शरीर से युक्त जीवों को उपचार से सूक्ष्म जीव कहते हैं। उत्तर-यह कल्पना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, सबसे जघन्य बादर शरीर से सूक्ष्म नामकर्म के द्वारा निर्मित सूक्ष्म शरीर की अवगाहना असंख्यातगुणी होने से ऊपर के कथन में दोष आता है।250। सूक्ष्म शरीर से भी असंख्यात गुणी हीन अवगाहना वाले और बादर नामकर्म के उदय से उत्पन्न हुए बादर शरीर की उपलब्धि होती है।251। और भी-देखें अवगाहना - 2।
ध.12/4,2,13,214/443/13 ण च सुहुमयोगाहणाए बादरोगाहणा सरिसा ऊणा वा होदि किं तु असंखेज्जगुणा चेव होदि। = बादर जीव की अवगाहना सूक्ष्म जीव की अवगाहना के बराबर या उससे हीन नहीं होती है, किन्तु वह उसमें असंख्यातगुणी ही होती है।
ध.13/5,3,21/24/2 सुहुमं णाम सण्णं, ण अपडिहण्णमाणमिदि चे-ण, आयासादीणं सुहुमत्ता भावप्पसंगादो। = प्रश्न-सूक्ष्म का अर्थ बारीक है। दूसरे के द्वारा नहीं रोका जाना, यह उसका अर्थ नहीं है ? उत्तर-नहीं, क्योंकि सूक्ष्म का अर्थ करने पर महान् आकाश आदि सूक्ष्म नहीं ठहरेंगे।
गो.जी./जी.प्र./184/419/15 यद्यपि बादरापर्याप्तवायुकायिकादीनां जघन्यशरीरावगाहनमल्पम् । ततोऽसंख्येयगुणत्वेन सूक्ष्मपर्याप्तकवायुकायिकादिपृथ्वीकायिकावसानजीवानां जघन्योत्कृष्टशरीरावगाहनानि महान्ति तथापि सूक्ष्मनामकर्मोदयसामर्थ्यात् अन्यतरतेषां प्रतिघाताभावात् निष्क्रम्य गच्छन्ति श्लक्ष्णवस्त्रनिष्क्रान्तजलबिन्दुवत् । बादराणां पुनरल्पशरीरत्वेऽपि बादरनामकर्मोदयवशादन्येन प्रतिघातो भवत्येव श्लक्ष्णवस्त्रानिष्क्रान्तसर्षपवत् । य (द्यपि) द्येवं ऋद्धिप्राप्तानां स्थूलशरीरस्य वज्रशिलादिनिष्क्रान्तिरस्ति सा कथं। इति चेत् तपोऽतिशयमाहात्म्येनेति ब्रूम:, अचिन्त्यं हि तपोविद्यामणिमन्त्रौषधिशक्त्यतिशयमाहात्म्यं दृष्टस्वभावत्वात् । 'स्वभावोऽतर्कगोचर:' इति समस्तवादिसमत्वात् । अतिशयरहितवस्तुविचारे पूर्वोक्तशास्त्रमार्ग एव बादरसूक्ष्माणां सिद्ध:। = यद्यपि बादर अपर्याप्त वायुकायिकादि जीवों की अवगाहना स्तोक है और इससे लेकर सूक्ष्म पर्याप्त वायुकायिकादिक पृथिवीकायिक पर्यन्त जीवों की जघन्य वा उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है, तो भी सूक्ष्म नामकर्म की सामर्थ्य से अन्य पर्वतादिक से भी इनका प्रतिघात नहीं होता है, उनमें वे निकलकर चले जाते हैं। जैसे-जल की बूँद वस्त्र से रुकती नहीं है निकल जाती है वैसे सूक्ष्म शरीर जानना। बादर नामकर्म कर्म के उदय से अल्प शरीर होने पर भी दूसरों के द्वारा प्रतिघात होता है जैसे सरसों वस्त्र से निकलती नहीं है तैसे ही बादर शरीर जानना। यद्यपि ऋद्धिप्राप्त मुनियों का शरीर बादर है तो भी वज्र पर्वत आदिकों में से निकल जाता है, रुकता नहीं है सो यह तपजनित अतिशय की ही महिमा है। क्योंकि तप, विद्या, मणि, मन्त्र, औषधि की शक्ति के अतिशय का माहात्म्य ही प्रगट होता है, ऐसा ही द्रव्य का स्वभाव है। स्वभाव तर्क के अगोचर है, ऐसा समस्त वादी मानते हैं। यहाँ पर अतिशयवानों का ग्रहण नहीं है, इसलिए अतिशय रहित वस्तु के विचार में पूर्वोक्त शास्त्र का उपदेश ही बादर सूक्ष्म जीवों का सिद्ध हुआ।
4. सूक्ष्म व बादर प्रदेशों सम्बन्धी विचार
देखें शरीर - 1.4,5 औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस व कार्मण ये पाँचों शरीर यद्यपि उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं परन्तु प्रदेशों का प्रमाण उत्तरोत्तर असंख्यात व अनन्तगुणा है।
स.सि./2/38/192/10 यद्येवं, परम्परं (शरीरं) महापरिमाणं प्राप्नोति। नैवम्; बन्धविशेषात्परिमाणभेदाभावस्तूलनिचयाय:पिण्डवत् । = प्रश्न-यदि ऐसा है तो उत्तरोत्तर एक शरीर से दूसरा शरीर महापरिमाण वाला प्राप्त होता है ? उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि बन्ध-विशेष के कारण परिमाण में भेद नहीं होता। जैसे, रूई का ढेर और लोहे का गोला। (रा.वा./2/38/5/148/8)
रा.वा./2/39/6/148/31 स्यादेतत्-बहुद्रव्योपचितत्वात् तैजसकार्मणयोरुपलब्धि: प्राप्नोतीति। तन्न; किं कारणम् । उक्तमेतत्-प्रचयविशेषात् सूक्ष्मपरिणाम इति। = प्रश्न-बहुत परमाणु वाले होने के कारण तैजस और कार्मण शरीर की उपलब्धि (दृष्टिगोचर) होना प्राप्त है ? उत्तर-नहीं, पहले कहा जा चुका है कि उनका अति सघन और सूक्ष्म परिणमन होने से इन्द्रियों के द्वारा उपलब्धि नहीं हो सकती।
ध.13/5,4,24/50/4 ण च थूलेण बहुसंखेण चेव होदव्वमिदि णियमो अत्थि। थूलेरं डरुक्खादो सण्हलोहगोलएगरूवत्तण्णहाणुववत्तिबलेण पदेसबहुत्तुवलंभादो। = स्थूल बहुत संख्या वाला ही होना चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है क्योंकि स्थूल एरण्ड वृक्ष से, सूक्ष्म लोहे के गोले में एकरूपता अन्यथा बन नहीं सकती, इस युक्ति के बल से प्रदेशबहुत्व देखा जाता है।
5. सूक्ष्म व बादर में नामकर्म सम्बन्धी विचार
ध.1/1,1,34/249-251/9 न बादरशब्दोऽयं स्थूलपर्याय:, अपितु बादरनाम्न: कर्मणो वाचक:। तदुदयसहचरितत्वाज्जीवोऽपि बादर:।249। कोऽनयो: (बादर-सूक्ष्म) कर्मणोरुदयोर्भेदश्चेन्मूर्तैरन्यै: प्रतिहन्यमानशरीरनिर्वर्तको बादरकर्मोदय: अप्रतिहन्यमानशरीरनिर्वर्तक: सूक्ष्मकर्मोदय इति तयोर्भेद:। सूक्ष्मत्वात्सूक्ष्मजीवानां शरीरमन्यैर्न मूर्तद्रव्यैरभिहन्यते ततो न तदप्रतिघात: सूक्ष्मकर्मणो विपाकादिति चेन्न, अन्यैरप्रतिहन्यमानत्वेन प्रतिलब्धसूक्ष्मव्यपदेशभाज: सूक्ष्मशरीरादसंख्येयगुणहीनस्य बादरकर्मोदयत: प्राप्तबादरव्यपदेशस्य सूक्ष्मत्वप्रत्यविशेषतोऽप्रतिघाततापत्ते:। = बादर शब्द स्थूल का पर्यायवाची नहीं है, किन्तु बादर नामक नामकर्म का वाचक है, इसलिए उस बादर नामकर्म के उदय के सम्बन्ध से जीव भी बादर कहा जाता है। प्रश्न-सूक्ष्म नामकर्म के उदय और बादर नामकर्म के उदय में क्या भेद है? उत्तर-बादर नामकर्म का उदय दूसरे मूर्त पदार्थों से आघात करने योग्य शरीर को उत्पन्न करता है। और सूक्ष्म नामकर्म का उदय दूसरे मूर्त पदार्थों के द्वारा आघात नहीं करने योग्य शरीर को उत्पन्न करता है। यही उन दोनों में भेद है। प्रश्न-सूक्ष्म जीवों का शरीर सूक्ष्म होने से ही अन्य मूर्त द्रव्यों के द्वारा आघात को प्राप्त नहीं होता है, इसलिए मूर्त द्रव्यों के साथ प्रतिघात का नहीं होना सूक्ष्म नामकर्म के उदय से नहीं मानना चाहिए ? उत्तर-नहीं, क्योंकि, ऐसा मानने पर दूसरे मूर्त पदार्थों के द्वारा आघात को नहीं प्राप्त होने से सूक्ष्म संज्ञा को प्राप्त होने वाले सूक्ष्म शरीर से असंख्यात गुणी हीन अवगाहना वाले और नामकर्म के उदय से बादर संज्ञा को प्राप्त होने वाले बादर शरीर की सूक्ष्मता के प्रति कोई विशेषता नहीं रह जाती है, अतएव उसका भी मूर्त पदार्थों से प्रतिघात नहीं होगा, ऐसी आपत्ति आयेगी।
6. बादर जीव आश्रय से ही रहते हैं
ध.7/2,6,48/339/1 पुढवीओ चेवस्सिदूण बादराणमवट्ठाणादो। =पृथिवियों का आश्रय करके ही बादर जीवों का अवस्थान है। (ध.4/1,3,25/100/10) (गो.जी./मू./184/419) (का.अ./टी./122)
7. सूक्ष्म व बादर जीवों का लोक में अवस्थान
मू.आ./1202 एइंदिया य जीवा पंचविधा वादरा य सुहुमा य। देसेहिं वादरा खलु सुहुमेहिं णिरंतरो लोओ।1202। = एकेन्द्रिय जीव पृथिवीकायादि पाँच प्रकार के हैं और वे प्रत्येक बादर सूक्ष्म हैं, बादर जीव लोक के एक देश में हैं तथा सूक्ष्म जीवों से सब लोक ठसाठस भरा हुआ है।1202। (और भी देखें क्षेत्र )
* अन्य सम्बन्धित विषय
- बादर वनस्पति कायिक जीवों का लोक में अवस्थान।-देखें वनस्पति - 2.10।
- बादर तैजस कायिकादिकों का लोक में अवस्थान।-देखें काय - 2.5।
- स्थूल पर से सूक्ष्म का अनुमान।-देखें अनुमान - 2.5।
- सूक्ष्म व स्थूल दृष्टि।-देखें परमाणु - 1.6।
- सूक्ष्म व बादर जीवों सम्बन्धी गुणस्थान, जीवसमास, मार्गणा स्थान आदि 20 प्ररूपणाएँ।-देखें सत् ।
- सूक्ष्म बादर जीवों की सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ।-देखें वह वह नाम ।
- सूक्ष्म बादर जीवों में कर्मों का बन्ध उदय सत्त्व।-देखें वह वह नाम ।
- स्कन्ध के सूक्ष्म स्थूल आदि भेद।
पुराणकोष से
(1) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.38, 25.105
(2) पुद्गल द्रव्य के छ: भेदों में दूसरा भेद । अनन्त प्रदेशों के समुदाय रूप होने से कर्मों के इन्द्रिय अगोचर स्कन्ध सूक्ष्म होते हैं । महापुराण 24. 149-150, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.120
(3) एकेन्द्रिय जीवों के सूक्ष्म और बादर इन दो भेदों में प्रथम भेद । महापुराण 17.24, पद्मपुराण 105.145