आर्ययज्ञ
From जैनकोष
तीर्थंकर, गणधर तथा अन्य केवलियों के शारीरिक दाहसंस्कार के लिए अग्निकुमार इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न त्रिविघ अग्नियों में मंत्रों के उच्चारण पूर्वक भक्तिसहित पुष्प, गन्ध, अक्षत तथा फल आदि से आहुति देना आर्षयज्ञ है । महापुराण 67.204-206