गणित I.1.5
From जैनकोष
- उपमा कालप्रमाण निर्देश
- पल्य सागर आदि का निर्देश
तिलोयपण्णत्ति/1/94‐130; ( सर्वार्थसिद्धि/3/38/233/5 ); ( राजवार्तिक/3/38/7/208/7 ); ( हरिवंशपुराण/7/47‐56 ); ( त्रिलोकसार/102 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/13/35‐42 ) ( गोम्मटसार जीवकाण्ड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/118 का उपोद्घात/पृ. 86/4)।
व्यवहार पल्य के वर्ष=1 प्रमाण योजन गोल व गहरे गर्त में 1‐7 दिन तक के उत्तम भोगभूमिया भेड़ के बच्चे के बालों के अग्रभागों का प्रमाण×100 वर्ष=<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0043.gif" alt="" width="17" height="30" /> × 43 × 20003 × 23 × 23 × 23 × 23 × 63 × 5003 × 83 × 83 × 83 × 83 × 83 × 83 × 83 = 45 अक्षर प्रमाण बालाग्र×100 वर्ष अथवा–4134,5263,0308,2031,7774,9512,192000000000000000000×100 वर्ष
व्यवहार पल्य के समय= उपरोक्त प्रमाण वर्ष×2×3×2×2×15×30×2×38 <img src="JSKHtmlSample_clip_image004_0006.gif" alt="" width="6" height="30" />×7×7×(आवलीप्रमाण संख्यात)×(जघन्य युक्तासंख्यात) समय
उद्धार पल्य के समय=उपरोक्त 45 अक्षर प्रमाण रोमराशि प्रमाण×असंख्यात क्रोड़ वर्षों के समय।
अद्धापल्य के समय=उद्धार पल्य के उपरोक्त समय×असंख्य वर्षों के समय।
व्यवहार उद्धार या अद्धासागर=10 कोड़ाकोड़ी विवक्षित पल्य
तिलोयपण्णत्ति/4/315‐319; ( राजवार्तिक/3/38/7/208/20 )
10 कोड़ाकोड़ी अद्धासागर=1 अवसर्पिणीकाल या 1 उत्सर्पिणीकाल
1 अवसर्पिणी या 1 उत्सर्पिणी=एक कल्प काल
2 कल्प (अव.+उत.)=1 युग
एक उत्सर्पिणी या एक अवसर्पिणी=छह काल–सुषमासुषमा, सुषमा, सुषमा दुषमा, दुषमा सुषमा, दुषमा, दुषमा दुषमा।
सुषमा सुषमा काल=4 कोड़ा कोड़ी अद्धा सागर
सुषमाकाल =3 कोड़ा कोड़ी अद्धा सागर
सुषमा दुषमा काल=2 कोड़ा कोड़ी अद्धा सागर
दुषमा सुषमा काल=1को. को. अद्धासागर‐42000 वर्ष
दुषमाकाल =21000 वर्ष
दुषमा दुषमा काल=21000 वर्ष - क्षेत्र प्रमाण का काल प्रमाण के रूप में प्रयोग
धवला 10/4;2,4,32/113/1 अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणी उस्सप्पिणीओ भागाहारो होदि।=अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है जो असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के समय, उतना भागाहार है। ( धवला 10/4,2,4,32/12 )।
गोम्मटसार जीवकाण्ड/ भाषा/117 का उपोद्घात/325/2 कालपरिमाणविषै जहाँ लोक परिमाण कहें तहाँ लोक के जितने प्रदेश होंहि तितने समय जानने।
- पल्य सागर आदि का निर्देश