गणित I.3
From जैनकोष
- गणित की प्रक्रियाओं की अपेक्षा सहनानियाँ
- परिकर्माष्टक की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
नोट—यहाँ ‘x’ को सहनानी का अंग न समझना। केवल आँकड़ों का अवस्थान दर्शाने को ग्रहण किया है।
- परिकर्माष्टक की अपेक्षा सहनानियाँ
व्यकलन (घटाना) |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0048.gif" alt="" width="6" height="30" /> |
गुणा |
: XI |
संकलन (जोड़ना) |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image004_0011.gif" alt="" width="8" height="24" /> |
मूल |
: मू. |
किंचिदून |
: x‒ |
वर्ग मूल |
: व.मू. |
एक घाट |
: 1<img src="JSKHtmlSample_clip_image006_0013.gif" alt="" width="10" height="30" /> |
प्रथम वर्गमूल |
: मू1 |
किंचिदधिक |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image008_0013.gif" alt="" width="11" height="35" /> |
द्वितीय वर्गमूल |
: मू2 |
संकलने में एक दो तीन आदि राशियाँ |
: ।,।।, ।।। |
घनमूल |
: घमू |
ऋण राशि |
: x. |
विरलन राशि |
: वि. |
पाँच घाट लक्ष या ल5 |
: ल 5 |
(विशेष देखो गणित/II/1) |
- लघुरिक्थ गणित की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
संकेत—अ.छे |
: अर्धच्छेद राशि |
|
व.श. |
: वर्ग शलाका राशि |
|
पल्य की अर्धच्छेद राशि |
: log2 of पल्य |
: प2 (गो.क/पृ 336)‒छे |
पल्य की व.श. (जघन्य वर्गणा) |
: log log2 of पल्य |
: व |
सागर की अ.छे |
: पल्य की अर्धच्छेद+संख्यात |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image010_0009.gif" alt="" width="9" height="28" /> |
सूच्यंगुल की अ.छे |
=(पल्य की अर्धच्छेद राशि)2 |
छे छे |
सूच्यंगुल की व.श. |
=पल्य की व.श.×2 |
: व2 |
प्रतरांगुल की अ.छे |
=सूच्यंगुल की अ.छे×2 |
: छे छे2 |
प्रतरांगुल की व.श. |
=सूच्यंगुल की व.श.+1 |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image012_0021.gif" alt="" width="17" height="38" /> |
घनांगुल की अ.छे. |
=सूच्यंगुल की अ.छे.×3 |
: छे छे3 |
घनांगुल की व.श. |
=(जातै द्विरूप वर्गधारा विषै जेते स्थान गये सूच्यंगुल हो है तेते ही स्थान गये द्विरूप घन धारा विषै घनांगुल हो है |
: व2 |
जगश्रेणी की अ.छे |
=पल्य की अ.छे÷असं/अथवा तीहि प्रमाण विरलन राशि, ताके आगे घनांगुल की अ.छे का गुणकार जानना। |
<img src="JSKHtmlSample_clip_image014_0008.gif" alt="" width="57" height="40" /> <img src="JSKHtmlSample_clip_image016_0006.gif" alt="" width="4" height="22" />या वि छे छे3 |
जगश्रेणी की व.श. |
=(घनांगुल की व.श. + ज. परीता2) x |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image018_0004.gif" alt="" width="46" height="56" /> |
जगप्रतर की अ.छे |
=जगश्रेणी की अ.छे×2 |
: [<img src="JSKHtmlSample_clip_image020_0002.gif" alt="" width="49" height="25" /> |
जगप्रतर की व.श |
=जगश्रेणी की व.श+1 |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image022_0000.gif" alt="" width="57" height="74" /> |
घनलोक की अ.छे |
=सूच्यंगुल की अ.छे×3 |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image024_0000.gif" alt="" width="45" height="23" /> |
घनलोक की व.श. |
=जातै द्विरूप वर्ग धाराविषै जेते स्थान गये जगश्रेणी हो है, तेते ही स्थान गये द्विरूप घनधारा विषै घनलोक हो है। |
: <img src="JSKHtmlSample_clip_image018_0005.gif" alt="" width="46" height="56" /> |
- श्रेणी गणित की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
एकगुणहानि |
: 8 |
एक गुणहानि विषै स्पर्धक |
: 9 |
ड्योढ़ गुणहानि |
: 12 |
दो गुणहानि (निषेकाहार) |
: 16 |
नाना गुणहानि |
: ना |
किंचिदून ड्योढ़ (द्वयर्ध.) गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध |
: ∂12᳢ |
उत्कृष्ट समयप्रबद्ध |
: स32 |
- षट्गुणहानि की अपेक्षा सहनानियाँ
(गो.सा./जी.का./की अर्थ संदृष्टि)
अनन्तभाग |
: उ |
संख्यातगुण |
: 6 |
असंख्यात भाग |
: 4 |
असंख्यातगुण |
: 7 |
संख्यातभाग |
: 5 |
अनन्त गुण |
: 8 |