व्यंजन
From जैनकोष
(1) स्वप्न, अन्तरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण और छिन्न इन अष्टांग निमित्तों में छठा निमित्त । शिर, मुख आदि में रहने वाले तिल आदि व्यंजन कहलाते हैं । इनसे स्थान, मान, ऐश्वर्य, लाभ-अलाभ आदि के संकेत मिलते है । महापुराण 62.181, 187, हरिवंशपुराण 10.117
(2) मसालों के साथ पकाये गये स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ । महापुराण 3.202