लगी लो नाभिनंदनसों
From जैनकोष
लगी लो नाभिनंदनसों
(राग सोरठ)
लगी लो नाभिनंदन सों ।
जपत जेम चकोर चकई, चन्द भरता को ।।
जाउ तन-धन जाउ जोवन, प्रान जाउ न क्यों ।
एक प्रभु की भक्ति मेरे, रहो ज्यों की त्यों।।१ ।।
और देव अनेक सेवे, कछु न पायो हौं ।
ज्ञान खोयो गाँठिको, धन करत कुवनिज ज्यों ।।२ ।।
पुत्र-मित्र कलत्र ये सब, सगे अपनी गों ।
नरक कूप उद्धरन श्रीजिन, समझ `भूधर' यों।।३ ।।