सुमति
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- पूर्व भव नं.2 में धातकी खंड में पुष्कलावती देश का राजा था। पूर्व भव में वैजयंत विमान में अहमिंद्र हुआ। वर्तमान भव में पंचम तीर्थंकर थे ( महापुराण/51/2-19 )। विशेष परिचय-देखें तीर्थंकर - 5।
- आप मल्लवादी नं.1 के शिष्य थे। समय-वि.439 (ई.383), ( सिद्धि विनिश्चय/ प्र.34 पं.महेंद्र)।
पुराणकोष से
(1) अवसर्पिणी काल के सुषमा-दु:षमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवें तीर्थंकर । ये जंबूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी क शाक्य राजा मेघरथ और रानी मंगला के पुत्र थे । ये श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि और मघा नक्षत्र में सोलह स्वप्नपूर्वक रानी मंगला के गर्भ में आये थे तथा चैत्र मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन इनका जन्म हुआ था । इंद्र ने जन्मोत्सव मनाकर इनका नाम ‘‘सुमति’’ रखा था । इनकी आयु चालीस लाख पूर्व की थी । शरीर तीन सौ धनुष ऊंचा था तथा कांति स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के दस लाख पूर्व वर्ष बाद इन्हें राज्य प्राप्त हुआ था । राज्य करते हुए उंतीस लाख पूर्व और बारह पूर्वांग वर्ष बीत जाने पर इन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ । सारस्वत देव की स्तुति करने के पश्चात् ये अभय नामक शिविका में सहेतुक वन ले जाये गये थे । वहाँ इन्होंने वैशाख सुदी नवमी के दिन मघा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ वेला का नियम लेकर दीक्षा ली थी । सौमनस नगर के राजा पद्मराज ने इनकी पारणा कराई थी । छद्मस्थ अवस्था में बीस वर्ष बीतने पर सहेतुक वन में प्रियंगुवृक्ष के नीचे इन्होंने दो दिन का उपवास धारण करके योग धारण किया था । चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन सूर्यास्त के समय इन्हें केवलज्ञान हुआ । केवली होने पर इनके संघ में अमर आदि एक सौ सोलह गणधर थे । मुनियों में दो हजार चार सौ पूर्वधारी दो लाख चौवन हजार तीन सौ पचास शिक्षक, ग्यारह हजार अवधिज्ञानी, तेरह हजार केवलज्ञानी, आठ हजार चार सौ विक्रियाऋद्धिधारी, दस हजार चार सौ पचास वादी कुल तीन लाख बीस हजार मूनि, अनंतमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पांच लाख श्राविकाएँ, असंख्यात देवदेवियों और संस्थान तिर्यंच थे । अंत में एक मास की आयु शेष रहने पर ये सम्मेदगिरि पर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में स्थिर हुए तथा चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । महापुराण 51.19-26, 55. 68-85, हरिवंशपुराण 1.7, 13, 31, 60.156-186, 341-349, वोवच0 18.87, 101-105
(2) जंबूद्वीप की पुंडरीकिणी नगरी के वज्रमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री । इसने सुंदरी आर्यिका से प्रेरित होकर रत्नावली तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अंत में यह ब्रह्मेंद्र की इंद्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जांबवती हुई । महापुराण 71.366-369, हरिवंशपुराण 60.50-53
(3) धातकीखंडद्वीप क पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मंत्री । युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था । हरिवंशपुराण 60.57-60
(4) जंबूद्वीप के वत्सदेश की कौशांबी नगरी के राजा सुमुख का मंत्री । इसने राजा का वनमाला से मिलन कराया था । हरिवंशपुराण 14.1-2, 6, 53-95
(5) एक मुनि । इन्होंने वशिष्ठ मुनि को अपने पास छ: मास रखकर मुनि-चर्या सिखाई थी । हरिवंशपुराण 23.73
(6) राजा अकंपन की पुत्री सुलोचना की धाय । यह सुलोचना का लालन-पालन करती थी । महापुराण 43.124-127, 136-137, पांडवपुराण 3.26
(7) राजा अकंपन का एक मंत्री । इसने सुलोचना का परिचय स्वयंवर विधि से करने का राजा से आग्रह किया था । महापुराण 43. 127, 182, 194-197 पद्मपुराण 3. 32, पांडवपुराण 3.39-40
(8) भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित रथनूपुर नगर के राजा ज्वलनजटी का मंत्री । इसने राजा की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह करने के लिए राजा से स्वयंवर विधि का प्रस्ताव रखा था जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार किया था । महापुराण 62.25-30, 81-82, पांडवपुराण 4.11-13, 37-39
(9) पोदनपुर के राजा श्रीविजय का मंत्री । इसने राजा को मरने से बचाने के लिए पानी के भीतर पेटी में बंद रखने का उपाय बताया था । पांडवपुराण 4. 96-97, 114
(10) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा दृढ़रथ की रानी । वरसेन इसका पुत्र था । महापुराण 63.142-148, पांडवपुराण 5.53-57
(11) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पाटलीग्राम के वणिक् नागदत्ता की स्त्री । इसके नंद, नंदिमित्र, नंदिषेण, वरसेन और जयसेन ये पाँच पुत्र और मदनकांता तथा श्रीकांता ये दो पुत्रियाँ थी । महापुराण 6.126-130
(12) विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के पलाल पर्वत ग्राम के देवलिग्राम पटेल की स्त्री । धनश्री इसकी पुत्री थी । महापुराण 6.134-135
(13) तीर्थंकर पुष्पदंत का पुत्र । पुष्पदंत ने इसे ही राज्य भार सौंपकर दीक्षा ली थी । महापुराण 55.45
(14) अपराजित बलभद्र और रानी विजया की पुत्री । इसने एक देवी से अपने पूर्वभव सुनकर सुव्रता आर्यिका के पास सात सौ कन्याओं के साथ दीक्षा ले ली थी । आयु के अंत में यह आनत स्वर्ग के अनुदिश विभान में देव हुई । महापुराण 63. 2-4, 12-24
(15) कौशांबी नगरी का एक सेठ । इसकी स्त्री सुभद्रा थी । महापुराण 71. 437
(16) साकेत नगर के राजा दिव्यबल की रानी । हिरण्यवती इसकी पुत्री थी । महापुराण 59.208-209
(17) एक गणनी । धातकीखंडद्वीप के तिलकनगर की रानी सुवर्णतिलका ने इन्हीं से दीक्षा ली थी । महापुराण 63. 175
(18) रावण का सारथी । रावण ने अपना रथ इससे इंद्र के समक्ष ले जाने को कहा था । पद्मपुराण 12.305-306
(19) महेंद्र विद्याधर का मंत्री । इसने रावण को अंजना का पति होने योग्य नहीं बताया था । पद्मपुराण 15.25,31
(20) एक राजा । यह भरत के साथ दीक्षित हो गया था । पद्मपुराण 88.1-2, 4