कृषिव्यवसाय
From जैनकोष
कुरलकाव्य/१०४/१ नरो गच्छतु कुत्रापि सर्वत्रान्नमपेक्षते। तत्सिद्धिश्च कृषेस्तस्मात् सुभिक्षेऽपि हिताय सा।१।=आदमी जहाँ चाहे घूमे पर अन्त में अपने भोजन के लिए हल का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसलिए हर तरह की सस्ती होने पर भी कृषि सर्वोत्तम उद्यम है।
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